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जीवन के सफर में हमें एक दूसरे की आवश्यकता है!

कुलुस्सियों 2:6-7 में बाइबल कहती है, “अत: जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो”। बाइबल अक्सर जीवन की तुलना एक सफर से करती है, क्योंकि हम जीवन में यूंही नहीं बैठे रहते। हम एक सफर तय कर रहे हैं! पूरे नए नियम में हम से विवेक के साथ, प्रेम में, ज्योति में, आज्ञापालन में व आत्मा में चलने को कहा जाता है।

परन्तु सफर तय करने कहा एक अहम ढंग जो परमेश्वर हमें बताते हैं वह यह है: जीवन के सफर में अकेले चलने के लिए आप को कतई नहीं रचा गया था। इसका आपके विवाहित होने या अविवाहित होने से संबंध नहीं है। विवाह इस समस्या का हल नहीं है, समुदाय है। और समुदाय आप अपने आत्मिक परिवार — अर्थात मसीह की देह — में पाएंगे

आप में से कुछ कहते हो, “अकेले सफर तय करने में क्या बुराई है? मुझे अकेले चलना पसंद है। बल्कि, मैं तो इसी में अधिक संतुष्ट हूं। मैं अपनी रफ्तार से बढ़ सकता हूं। मुझे किसी की प्रतीक्षा करने की भी आवश्यकता नहीं।”

आप अकेले चलना पसंद करते होंगे परन्तु जीवन का सफर तय करने के लिए आप को अन्य जनों की आवश्यकता है। इसके लिए मैं आपको तीन तर्काधार बताना चाहूंगा।

1. यह अधिक सुरक्षित है।क्या कभी आप को किसी ग्रामीण क्षेत्र में रात के समय किसी अंधियारी गली से या किसी लंबी राह पर अकेले गुजरना पड़ा है? यह भयानक हो सकता है। जीवन के सफर में अन्य लोगों के संग चलना सुरक्षित होता है।

2. यह सहयोग प्रदान करता है। ज़ांबिया में एक पुरानी कहावत है, “जब आप अकेले दौड़ते हैं तो तेज़ी से दौड़ते हैं। परन्तु, जब आप मिलजुल कर दौड़ते हैं तो लंबी दूरी तय कर पाते हैं।” जीवन 50 गज की कोई छोटी दौड़ नहीं है, यह एक लम्बी दौड़ है। इसे अच्छे से, बिना उत्स्त्रावित हुए पूरा करने का एक ही मार्ग है, वह है अन्य लोगों को अर्थपूर्ण रिश्तों के द्वारा अपने जीवन का भाग बनाना।

3. इसी में समझदारी है अकेले चलने की तुलना में, आप दूसरों के संग चलने से अधिक सीखते हैं। नीतिवचन 28:26 कहता है, “जो अपने ऊपर भरोसा रखता है, वह मूर्ख है।” यदि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो यदि किसी विषय पर केवल आप ही ऐसा समझते हों कि वह ठीक है और कोई अन्य व्यक्ति इससे सहमत न हो, तो हो सकता है कि आप गलत दिशा में बढ़ रहे हों। जब आप अकेले चलते हैं, तो आपके साथ कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होता जो आपको स्मरण कराए, “हम भटक गए हैं। हमें सही राह की ओर लौटने व सही दिशा में बढ़ने की आवश्यकता है।”

इफिसियों 4:16 कहता है, “सारी देह, हर एक जोड़ की सहायता से एक साथ मिलकर और एक साथ गठकर, अपने आप को बढ़ाती है कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए।”

जैसा व्यक्ति बनने के लिए परमेश्वर ने आपको रचा था, वैसा बनने के लिए आपको अपने जीवन में अन्य लोगों की उपस्थिति की आवश्यकता है। जीवन का मूल विषय है रिश्ते। परमेश्वर प्रेम हैं, तथा वे चाहते हैं कि आप उनसे व अन्य लोगों से प्रेम करना सीखें। जीवन के दो मुख्य सबक यही हैं।

पास्टर रिक द्वारा आज का श्रव्य संदेश सुनें >>

 

दिन 2

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आप बिना किसी मदद के वो नहीं बन सकते जो परमेश्वर आपसे चाहता है की आप बनें और ना ही इसके बिना आप इस ग्रह पर अपने उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं. हमें एक दुसरे की ज़रुरत है और हम मसीह में एक दुसरे से सम्बन्ध रखते हैं. इस श्रृंखला में पास्टर रिक बताते हैं की दुसरे लोगों के साथ अपने संबंधो को जीवंत कैसे रखें.

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