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निःस्वार्थ भाव से बोएँ और अनंत जीवन रूपी फसल काटें

स्वार्थीपन/स्वार्थपरता रिश्तों को तोड़ देता है। किसी भी बहस, झगडे, तलाक,और यहाँ तक की युद्ध की भी नंबर एक वजह यही है।

याकूब 4:1 में लिखा है, "आप लोगों में द्वेष और लड़ाई-झगड़ा कहाँ से आता है? क्या इसका कारण यह नहीं कि आपकी अभिलाषाएँ आपके अंदर लड़ाई करतीं हैं?" हरेक समस्या के शुरू होने की मुख्य वजह है हमारा आत्म-केंद्रित होना।

किसी भी रिश्ते को बनाना स्वार्थी लोगो के लिए बहुत आसान होता है। जब आप किसी रिश्ते की शुरुआत करतें हैं, तो निःस्वार्थ भाव से उसे बनाये रखने के लिए आप काफी मेहनत करतें हैं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जाता है स्वार्थीपन धीरे-धीरे पनपने लगता है। हम रिश्तों को बनाने में जितनी ऊर्जा/शक्ति लगाते हैं उतनी ऊर्जा उन्हें बनाये रखने में नहीं लगाते।

यदि स्वार्थीपन/स्वार्थपरता रिश्तों को तोड़ती है, तो यह निस्वार्थभाव है जो इन्हें मज़बूत बनाता है। निस्वार्थभाव का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है "मैं" का कम होना तथा "आप" का अधिक होना। इसका अर्थ है अपने बारे में सोचने से पहले दूसरों के बारे में सोचना और अपनी स्वयं की ज़रूरतों/आवश्यकताओं से पहले दूसरों की ज़रूरतों को रखना या पूरा करना (फिलिप्पियों 2:4)।

निःस्वार्थ भाव दूसरों के भीतर छिपी बेहतर प्रतिभा को बाहर लाने में सहायक होता है। यह रिश्तों में भरोसा लाता है। वास्तव में, रिश्तों में यदि आप निःस्वार्थ भाव से काम करने लगेंगें, तो यह बात दूसरे लोगों को बदलने के लिए मजबूर कर देगी, क्योंकि अब आप पहले जैसे व्यक्ति नहीं रहे, और अब उन्हें आपसे अलग तरीके से सम्बद्ध होना पड़ेगा। दरअसल, मैंने ऐसा कई बार देखा है — कुछ ऐसे लोग, जिन्हें ना तो कोई प्रेम नहीं करता, और ना ही उनके पास जाना चाहता है, वो तब बदल/परिवर्तित हो जाते हैं जब कोई उनके प्रति दयालु तथा निःस्वार्थ होता है और उन्हें वो चीज़ें उपलब्ध कराता है जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है ना की जिसके वो योग्य होतें हैं।

गलातियों 6:7-8 में बाइबिल बताती है, "धोख़ा ना खाइये। परमेश्वर का उपहास नहीं किया जा सकता। मनुष्य जो बोता है, वही काटता है। जो अपनी शारीरिक प्रवृत्ति के लिए बोता है, वह शरीर की भूमि में विनाश की फ़सल काटेगा; किन्तु जो पवित्र आत्मा के लिए बोता है, वह पवित्र आत्मा की भूमि में शाश्वत जीवन की फसल काटेगा।"

बोने और काटने का सिद्धांत यही है। आप जो बोएंगें, उसे ही काटेंगे। परमेश्वर निःस्वार्थ भाव वालों को अनन्त जीवन रूपी प्रतिफ़ल देता है। परमेश्वर ने जगत को कुछ इस तरह से जोड़ा हुआ है कि आप जितना अधिक स्वार्थरहित होंगे, उतना ही परमेश्वर आपको आशीषित करेंगें।क्यों? क्योंकि वह चाहतें हैं कि आप उनके जैसे बन जाएँ, और परमेश्वर निःस्वार्थी हैं। इस जीवन में आपके पास जो कुछ भी है, वो परमेश्वर की ओर से आपको उपहार के रूप में मिला है, क्योंकि वो आपके साथ निःस्वार्थ रहें हैं।

जब आप अपने-आप को दूसरों के लिए देतें हैं, तो इस जीवन में आप पूरी तरह से भरपूर होतें हैं। यीशु ने कहा, "केवल वो जो मेरे तथा सुसमाचार के कारण अपना प्राण खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा" (मरकुस 8:35b)।

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आप बिना किसी मदद के वो नहीं बन सकते जो परमेश्वर आपसे चाहता है की आप बनें और ना ही इसके बिना आप इस ग्रह पर अपने उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं. हमें एक दुसरे की ज़रुरत है और हम मसीह में एक दुसरे से सम्बन्ध रखते हैं. इस श्रृंखला में पास्टर रिक बताते हैं की दुसरे लोगों के साथ अपने संबंधो को जीवंत कैसे रखें.

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