दुख का सामनानमूना

दुख का सामना

दिन 1 का 10

शोकित होना ठीक हैं

जब हमारे किसी प्रिय का स्वर्गवास होता हैं, हमारे भीतर विभिन्न भावनाएँ उत्तपन होती हैं। रोना और शोकित होना गलत नहीं हैं। इस सच्चाई का, कि परमेश्वर नियंत्रण में हैं और सब बात भलाई को उत्तपन करेगी, हमारे दुख को कम नहीं करती, जो हमारे लिए अभी वास्तविक हैं।

प्रभु जानते हैं कि मृत्यु के दुख का सामना करना कितना दर्दनाक होता हैं। परमेश्वर कादुख के प्रति क्या दृष्टिकोण हैं इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण मिलता हैं, जब यीशु मसीह लाजर को मृतक में से जिलाते हैं।

यीशु हमें दर्शाते हैं की दुख मनाना ठीक हैं जब वे लाजर की कब्र में रोए, जैसे हम रोते हैं। उन्होंने दिखाया की शोकित होना पाप नहीं हैं। उन्होंने दिखाया की तीव्र रूप से भावनात्मक होना शर्मिंदा होने की बात नहीं हैं।

उन्होंने आंसू बहाया जैसे हम बहाते हैं। वो वैसे ही विचलित हुए जैसे हम होते हैं। यीशु रोए इस से यह प्रदर्शित होता हैं की उनका भी हृदय था। हमें यह बात दर्शाती हैं कि, हम ऐसे परमेश्वर की सेवा नहीं करते जो हमारी भावनाओं को ना समझे। अतः हमें अपनी चिंताओ को प्रभु के सम्मुख ले जाने में संकोच नहीं करना चाहिए।

इब्रानियो४:१५ बताता हैं “क्योंकि हमारा ऐसा महायाजक नहीं जो हमारे निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके , वरन वह सब बातों में हमारे समान परखा तो गया तो भी निष्पाप निकला। दुख के समय यीशु हमारी चिंता करते हैं।

यीशु अपने प्रिय मित्र और भाई, यहून्ना बपतिस्मा देने वाले की मृत्यु पर भी शोकित हुए थे।

मत्ती १४:१३, में हम पाते हैं कि “जब यीशु ने यह सुना, तो वह नाव पर चढ़कर वहाँ से किसी सुनसान जगह को, एकांत में चला गया। “यीशु दुखी थे”। जो यहून्ना बपतिस्मा देने वाले से साथ हुआ था, उसे सुनकर उनका दिल टूट गया था। यीशु एकांत में कुछ समय प्रार्थना और चिंतन में बिताना चाहते थे।

कई बार आप भी, कुछ समय एकांत में अपने दुख और चिंताओ को प्रभु के सम्मुख रख उनके साथ समय बिताए और उनसे प्रश्न पूछे। ये बिल्कुल उचित हैं।

क्या आपने ऐसा महसूस किया हैं? सब जिम्मेदारियों से दूर एकांत में, अकेले दुख मनाए, परंतु जीवन कि जिम्मेदारियों ने आप को अनुमति नहीं दी?

यीशु ने ऐसी परिस्थितियों का कैसे समाधान निकाला? बाइबल बताती हैं यीशु ने जब भीड़ की ओर दृष्टि की और उन पर तरस खाया, और तुरंत उन्हें चंगाई देने के काम पर लग पड़े। यीशु अपने दोस्त की मृत्यु का शोक तो माना रहे थे, परंतु इस शोक ने उन्हें सेवा के लिये और बल दिया। अपने भावनात्मक दुख के मध्य यीशु ने स्वयं पर नहीं परंतु दूसरों की जरूरतों पर ध्यान दिया। स्वयं को कोसने के बजाए दूसरों पर दया की और प्रेम बांटा।

हम दुखी हो तब हमें सावधान रहना हैं कि, ऐसे समय हम स्वयं पर ध्यान केन्द्रीत कर स्वार्थी न बन जाए। अपने सारे दुख और भावनाओं से साथ, आप लोगों के ओर दया दृष्टि करें, लोग जो प्रभु यीशु के प्रेम के लिये बेकरार हैं ।

दुख के समय, जीवन में आगे बढ़ने का आधारभूत यही हैं। बाहर की ओर देखे, अथवा आप भूतकाल में फंसे रहेंगे। जब हम दूसरों की ओर देखते हैं और सेवा में लगे रहते हैं, तब हम भविष्य के ओर अग्रसर होते हैं ।

उल्लेख: जब हम परमेश्वर के काल्पनिक तस्वीर की जगह वचन में दिए परमेश्वर की तस्वीर रखेंगे कि, वो वचन जो स्वयं परमेश्वर हैं, रोते हैं, इस संसार के साथ वे दुख मानते हैं। तब हम ‘परमेश्वर “ शब्द के सही अर्थ को समझ पाएंगे। - श्री टॉम राइट

प्रार्थना: प्रभु, मैं आप का धन्यवाद देता हूँ क्योंकि आप मेरे दर्द को समझते हैं। अपने दुख के समय मैं आपके पास मदद और सामर्थ्य के लिए आता हूँ। आमीन

दिन 2

इस योजना के बारें में

दुख का सामना

जब हमारे किसी प्रियजन की मृत्यु होती हैं, हम में विभिन्न भावनाएँ होती हैं। इस १० दिन के मनन में, अपने दुख को संभालना सीखे, जब हमारा कोई प्रियजन प्रभु के पाए चला जाते हैं। मेरी यह प्रार्थना हैं की जैसे आप इस मनन को करते हैं , प्रभु इसे आप को प्रोत्साहित करे। शोक करना ठीक हैं। प्रश्न पूछना ठीक हैं।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए विजय थंगैया को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://www.facebook.com/ThangiahVijay