दुख का सामनानमूना

दुख का सामना

दिन 6 का 10

प्रभु सिंहासन पे अभी भी विराजमान हैं

जब मृत्यु अप्रत्यक्ष रूप से आती हैं, उदाहरण अचानक कोई दुर्घटना, या फिर किसी जवान बालक की अचानक मृत्यु, तब हमें ऐसा लगता हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। हम इसी विचार में फंसे रह जाते हैं। अचानक आई परिस्थितियों से झुंझलाते हुए हमें ऐसा लगने लगता हैं की परमेश्वर भी आश्चर्य में होंगे , क्योंकि उन्होंने हमें तैयारी का समय नहीं दिया, जब हमें किसी लाइलाज बीमारी के बारे में बताया जाता हैं और हमारे पास समय का अभाव होता हैं।

परंतु बाइबल हमें बताती हैं कि परमेश्वर जीवन और मृत्यु पर पूर्ण प्रभुता रखते हैं। उनके लिए कुछ भी अचानक से नहीं होता, वो घटित बातों से आश्चर्यचकित नहीं होते। परंतु, परमेश्वर हर बातों को बड़ी बारीकी से अंजाम देते हैं। यही सत्य हमारे हृदय को, जो किसी प्रिय के खोने से असमंजस में होता हैं, तस्सली देता हैं।

मत्ती १०:२९ -३१ में लिखा हैं “क्या पैसे से दो गौरैये नहीं बिकती? तो भी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उन में से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। तुम्हारे सिर के बाल भी सब गिने हुए हैं। इसलिए, डरो नहीं; तुम बहुत गौरैये से बढ़कर हो।“

यह बहुत बहुमूल्य और गहरा सत्य हैं, जिसे प्रत्येक दुखी हृदय में बसना चाहिए ।

श्री जे. सी. राएल लिखते हैं“जो मनुष्य परमेश्वर के पद चिन्हों पर चल सकता है, वो खुश रहता हैं, और कहता हैं, “मेरे लिए जो उत्तम हैं मुझे मिलेगा। इस पृथ्वी पर मैं तब तक जीवित रहूँगा जब तक मेरा कार्य पूरा नहीं होता, एक क्षण भी ज्यादा नहीं । जब मैं स्वर्ग के लिए तैयार हो जाऊंगा तब मैं उठा लिया जाऊंगा , एक मिनट पहले भी नहीं। संसार की कोई भी सामर्थ्य मेरा जीवन नहीं ले सकती जब तक परमेश्वर इजाजत नहीं देते। दुनिया के सारे डाक्टर नहीं रोक पाएंगे अगर परमेश्वर मुझे बुलाते हैं । “

लाजर की घटना में बाइबल हमें बताती हैं, “जब उसने यह सुना, तब यीशु बोले , “यह बीमारी मृत्यु में खत्म नहीं होगी। नहीं, यह परमेश्वर की महिमा के लिए हैं जिसके द्वारा पुत्र की महिमा हो ।“

परमेश्वर का हमारी किसी विशेष प्रार्थना का उत्तर हाँ में देना, और अपनी महिमा के लिए प्रार्थना का उत्तर हाँ में देतना, इस दोनो बातों में विभिन्नता हैं। हमें इस बात का आश्वासन हैं कि यीशु मसीह के वादे पर हमारे विश्वास होने का अर्थ है कि, एक दिन हम समझ पाएंगे की कैसे परमेश्वर को हमारे दुख में भी महिमा मिली।

जीवन में हमारा दु:ख कम नहीं होगा, परंतु यीशु हमारी सुधी लेना भी नहीं छोड़ेंगे। अगर आप उन पर भरोसा रखोगे, तो वो अपनी महिमा आपको दिखाएंगे।

स्मरण रखें, मृत्यु अंत नहीं हैं। यह भी स्मरण रखें, उस दुखद घटना के पीछे अर्थ होगा।इससे मृत्यु अर्थहीन नहीं होती।

यह दु:ख की बात हैं कि नास्तिकों के लिए, सब बाते अंत में अर्थहीन होती हैं। मृत्यु सबसे बड़ी त्रासदी बन जाती हैं, क्योंकि मृत्यु उनके लिए जीवन का अंत हैं।पर हमारे हृदय इसका विरोध करते हैं। क्योंकि हम दु:ख में भी अर्थ ढूँढना चाहते हैं। और सुसमाचार हमें अर्थ प्रदान करता हैं ।

रोमियो ८:२८ हमें यह आश्वासन देता हैं “और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उनके लिए सब बाते मिलकर भलाई ही को उत्तपन करती हैं, अर्थात उनके लिए जो उन की इच्छा के अनुसार बुलाए गए हुए हैं।“

प्रभु इस मनन का इस्तेमाल कर, आपको कायल करें कि, प्रभु अभी भी सिंहासन में विराजमान हैं और आप के जीवन के बहुत सारे सुनहरे पल अभी बाकी हैं। ऐसे दिन जो अर्थपूर्ण और महत्वपूर्ण हैं, जब आप परमेश्वर को अपने दुख को दूसरों के लिए सहायक और प्रोत्साहन का कारण बनने देते हैं। और इस महिमा के लिए जीवन जीने योग्य हैं।

उल्लेख: “परमेश्वर हमारे सुखों में फुसफुसा कर, पर दुख के समय चिल्लाकर हमसे बात करते हैं: यह उस मेगाफोन की तरह हैं जो बहरे संसार को जगाता हैं। श्री सी.एस.लुईस

प्रार्थना: प्रभु जी आप का धन्यवाद हो कि आप अभी भी सिंहासन पर विराजमान हैं और मेरे प्रियजन की मृत्यु से भी आप के नाम को महिमा मिले और मेरे जीवन से कुछ सुंदर प्रदर्शित हो। आमीन।

पवित्र शास्त्र

दिन 5दिन 7

इस योजना के बारें में

दुख का सामना

जब हमारे किसी प्रियजन की मृत्यु होती हैं, हम में विभिन्न भावनाएँ होती हैं। इस १० दिन के मनन में, अपने दुख को संभालना सीखे, जब हमारा कोई प्रियजन प्रभु के पाए चला जाते हैं। मेरी यह प्रार्थना हैं की जैसे आप इस मनन को करते हैं , प्रभु इसे आप को प्रोत्साहित करे। शोक करना ठीक हैं। प्रश्न पूछना ठीक हैं।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए विजय थंगैया को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://www.facebook.com/ThangiahVijay