दुख का सामनानमूना
अविश्वास को विश्वास की ओर ले जाए
जब मारथा और मरियम , यीशु से कब्र के पास मिले तब दोनों ने यीशु से कहा “अगर आप यहाँ होते तो मेरे भाई की मृत्यु नहीं होती । “
यीशु उन्हें अविश्वास को विश्वास की ओर ले जाना चाहते थे ।
जब यीशु उनसे शांति और प्यार से यह कहते हैं, “तुम्हारा भाई फिर से जी उठेगा,” उन्होंने व्यंग से कहा “ हाँ हाँ , हमें पता हैं!” परंतु अपने दिल की हर धड़कन के साथ, वो वास्तव में कह रही थी, “ मैं चाहती थी की आप यहाँ होते, ताकि इस भयानक परिस्थिति को कभी नहीं होने देते। “
इसी मध्य यीशु बोलते रहे “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ। जो मुझ पर विश्वास करेगा वोमर भी जाए तो भी जीएगा !” फिर यीशु ने उससे सीधे प्रश्न पूछा “मारथा क्या तुम इस पर विश्वास करती हो? “ मारथा ने उत्तर दिया “ हाँ प्रभु मैं करती हूँ।“
बाइबल इस बात को स्पष्ट रूप से बताती हैं की मृत्यु के उपरांत मनुष्य की दो निश्चित नियति हैं: अनंत काल का जीवन या फिर अनंत काल की मृत्यु (रोमी ६:२३ )। जो यीशु मसीह पर विश्वास रखते हैं उन्हें अनंत काल का जीवन मिलता हैं । जब एक विश्वासी की मृत्यु होती हैं, उनका शरीर कब्र में रहता हैं, परंतु उनकी आत्मा सजग रूप से और तुरंत यीशु की उपस्थिति में ले ली जाती हैं। हमारी आत्मा की नियति तुरंत स्वर्ग जाना हैं, जैसे स्वयं यीशु का स्वर्गारोहण हुआ (प्रेरित १:११) और अब वो हमारे लिये वहाँ घर बना रहे हैं ।
जब हमारी मृत्यु होती हैं तब हम सजग रूप से और तुरंत यीशु की उपस्थिति में स्वर्ग में ले लिए जाते हैं। हमारे प्रियजन जिनकी मृत्यु हो गई हैं, वो हमसे पहले स्वर्ग में प्रवेश कर चुके हैं । वे अतीत में नहीं परंतु भविष्य में हैं ।
हमें अपने प्रियजनों की मृत्यु के बारे में हमारी “दृष्टिकोण” को बदलना हैं, उन्हें अतीत में मृत के रूप में नहीं परंतु “स्वर्ग में पूर्ण रूप से जीवित“ रूप में देखना चाहिए और समझना हैं कि, हम कुछ समय पश्चात उनसे एक बार फिर मिलेंगे।
यीशु मसीह स्वर्ग के विषय में बहुत बार चर्चा करते हैं। उन्हें स्वर्ग के बारे में धार्मिक रूप से यह शिक्षा नहीं दी कि वो एक निराकार स्थान हैं। उन्होंने इसे अपने घर से तुलना किया हैं – जो वास्तविकता हैं। उनके पिता इस घर में हैं (लुका १०:२१), जहां सब कुछ वैसा ही हैं जैसा वो चाहते हैं (मत्ती ६:१०)। वो अपने चेलों को, उस स्थान में निवेश करने को प्रोत्साहित करते हैं (मत्ती ६:१९-२१)। वो वहाँ से आए (यहून्ना ३:१३) और वापस जाने के लिए उत्सुक हैं। और उनका यह वादा हैं की अपने चेलों को भी वहाँ ले जाएंगे (१४:१-३)।
यीशु ने मारथा से जो प्रश्न पूछा, उससे वो जिस निर्णय में आयी जो, मानव जाती को विभाजित करता हैं: “क्या तुम्हें इस पर विश्वास हैं?” (यहून्ना ११:२६)
यह गंभीर पर साधारण रचना हैं जो हमारे हृदय में दर्द के बावजूद, स्वर्गीय आशा उत्पन्न करती हैं। अगरआप इस पर विश्वास करते हैं तो, वो आप के पुनरुत्थान और जीवन होंगे।
मारथा का जवाब उसके विश्वास को प्रदर्शित करता हैं।
“ हाँ प्रभु मैं विश्वास करती हूँ की आप ही क्रिस्ट हैं, परमेश्वर के पुत्र, जो इस संसार में आए।“(यहून्ना ११:२७)
मारथा के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण दिन वो नहीं था, जब यीशु ने उसके दर्द को दूर कर लाजर जो जिलाया, परंतु वो दिन जब उसने यीशु के सामने खेड़े हो कर उन पर विश्वास की। वो दिन जब वो, उसकी बहन और भाई जीवन पाए और दो हजार वर्षों से प्रतिदिन यीशु के साथ स्वर्ग में आनंद मना रहे हैं।
आज का दिन आप के लिए भी आनंद का दिन हो सकता हैं, जैसे आप यीशु को अपना उद्धारकर्ता और स्वामी स्वीकार करते हैं और इस बात को जाने कि; एक दिन शीघ्र आप यीशु से और सब प्रियजन जिन्होंने उस पर विश्वास किया, मिलेंगे और अनंत जीवन उनके साथ व्यतीत करेंगे।
उल्लेख: “विश्वास वो कला हैं जो हमारे तर्क के बावजूद, उन बातों पर भरोसा करता हैं, जो हमारे समझ से परे हैं। ” - श्री सी एस् लुईस
प्रार्थना: प्रभु जी मैं निवेदन करता हूँ की मेरे दुख को आप आनंद में बदले, मैं विश्वास करता हूँ की आप कौन हैं और आप पर भरोसा रखता हूँ। आमीन
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
जब हमारे किसी प्रियजन की मृत्यु होती हैं, हम में विभिन्न भावनाएँ होती हैं। इस १० दिन के मनन में, अपने दुख को संभालना सीखे, जब हमारा कोई प्रियजन प्रभु के पाए चला जाते हैं। मेरी यह प्रार्थना हैं की जैसे आप इस मनन को करते हैं , प्रभु इसे आप को प्रोत्साहित करे। शोक करना ठीक हैं। प्रश्न पूछना ठीक हैं।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए विजय थंगैया को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://www.facebook.com/ThangiahVijay