दुख का सामनानमूना

दुख का सामना

दिन 7 का 10

हम शीघ्र फिर मिलेंगे

दुनिया के विरोधाभास में एक बात यह हैं कि खुशी और गम एक दूसरे के विपरीत नहीं हैं।वास्तविकता यह है की दुख वो मार्ग हैं जो नई आशा की ओर ले जाता हैं – अगर हम काम करने दे।

जितनी जल्द हम अपने दुख को महसूस करते हैं, उसके बारे में बात करते हैं, और उसे समझते हैं, उतनी ही जल्दी हम उसकी परछाई से, अखंडता स्थिर और विश्वास प्रत्यार्थी रहेगा।

अपने सबसे अंधकारमय समय में, हम जीवन को आक्रोश से भरा जी सकते हैं, जमीन पर पैर पटक कर और हाथों कीमुट्ठी बनाकर अपना गुस्सा परमेश्वर को दिखा सकते हैं। या फिर हम अपना विश्वास परमेश्वर पर रख सकते हैं, जो जीवन और मृत्यु पर प्रभुता रखते हैं। हमारे पास यह आश्वासन हैं की परमेश्वर हमारे साथ हैं। हम यीशु के वचनों पर भरोसा रख सकते हैं, जिन्होंने कहा, “देखो, मैं जगत के अंत तक सदैव तुम्हारे साथ हूँ।“

लाजर का मरे हुओ में से जिलाया जाना, उन सात आश्चर्य कर्मों में अंतिम हैं, जो यहून्ना अपने सुसमाचार में लिखते हैं। और वो इन्हें “चिन्ह” कहते हैं। चिन्ह अपने से बढ़ कर किसी महान और विशाल सत्य की ओर इशारा करते हैं।

मारथा और मरियम आश्चर्यकर्म चाहते थे, और उन्हें वो मिला। उनका निवेदन स्वीकार किया गया और उन्हें अपनी प्रार्थना का उत्तर मिला। परंतु यहून्ना हमें बताते हैं कि यह एक चिन्ह हैं। और चिन्ह अपने से बढ़ किसी और बात की ओर इशारा करते हैं, कुछ जो ज्यादा महत्वपूर्ण और वास्तविक हैं।

अकसर हम घटनाओं को उलटना चाहते हैं या फिर पुनर्जीवन की कामना करते हैं; परंतु यीशु हमें पुनरुत्थान का वादा करते हैं। यीशु ने लाजर को पुनर्जीवन दिया, यह अंतिम और उत्तम चिन्ह हैं ; पर यीशु स्वयं पुनरुत्थान और जीवन हैं।

यीशु इससे कुछ ज्यादा और बेहतर देते हैं। अच्छा जीवन नहीं परंतु नया जीवन। वो स्वयं इस घटना के सच्चे आश्चर्य क्रम हैं; वो ही हमारी प्रार्थनाओं के अंतिम और सर्वोत्तम उत्तर हैं। वे ही पुनरुत्थान और जीवन हैं। पुनर्जीवन नहीं परंतु पुनरुत्थान। उलट नहीं नवीनीकरण। यीशु ने पाप और मृत्यु और अधोलोक को हरा दिया हैं।

अगर हम उस पर विश्वास करेंगे, तो हम भी वास्तविक जीवन पाएंगे, स्थायी, प्रचुर, पर्याप्त, अनंतकाल जीवन। अगर हम मर भी जाए, हम फिर भी उस जीवन का अनुभव करेंगे।पर हम अभी भी उस जीवन का अनुभव कर सकते हैं क्योंकि वह वर्तमान जीवन और मृत्यु, जिससे हम डरते हैं, दोनों से बढ़ कर है।

यह आनंद केवल उन विश्वासियों को अनुभव होता हैं, जिनके प्रियजनों ने मृत्यु से पहले, यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार किया था। खुशी केवल इस बात की नहीं हैं कि, हम यीशु को आमने सामने देखेंगे, पर इस बात की भी हैं कि, हम अपने भाई बहनों से, जो प्रभु में हम से पहले यरदन पार चले गए हैं, एक बार फिर मिलेंगे।

१ थिसल। ४:१३-१४ कहता हैं “हे भाइयों, हम नहीं चाहते, कि तुम उनके विषय में जो सो गए हैं, अज्ञान रहो; ऐसा ना हो, कि तुम औरों की नाई शोक करो जिन्हें आशा नहीं हैं। क्योंकि यदि हम प्रतीति करते हैं, कि यीशु मरा ,और जी भी उठा, तो वैसे ही परमेश्वर उन्हें भी जो यीशु में सो गए हैं, उसी के साथ ले आएगा।“

हम देखते हैं की राजा दाऊद भी इस बात से संतोष पाए, जब उन के नवजात बेटे की मृत्यु हो गई थी। उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा “मैं उसके पास जाऊंगा, परंतु वह मेरे पास लौट न आएगा“ ( शमूएल १२:२०-२३)।

यह वो सुनहरी लकीर हैं, जिसकी तरफ हमें अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जब जीवन में आई आंधियों के बदल हमें ढाँप लेते हैं।

अपने प्रियजनों को मृत और गुजरे समय में देखने की बजाय, उन्हें “स्वर्ग में पूर्ण जीवित” के रूप में देखना प्रारंभ करना शुरू करें-और समझे कि कुछ समय में हम एक बार फिर उनसे मिलेंगे.

स्वर्गीय अनंत जीवन की तुलना में, हमारा यह सांसारिक जीवन पलक झपकते ही खत्म हो जाएगा।

शीर्षक: जैसे मैं कब्रिस्तान जाता हूँ, मैं इस बात की कल्पना करता हूँ जब सारे मृत अपनी कब्र से जी उठेंगे ... प्रभु का धन्यवाद हो, हमारे दोस्त दफनाए नहीं गए; पर बोए गए हैं! – श्री डी. एल. मुड़ी

प्रार्थना: प्रभु, मैं धन्यवाद देता हूँ आप के आश्वासन के लिए कि, हम अपने प्रिय जनों से शीघ्र मिलेंगे।

दिन 6दिन 8

इस योजना के बारें में

दुख का सामना

जब हमारे किसी प्रियजन की मृत्यु होती हैं, हम में विभिन्न भावनाएँ होती हैं। इस १० दिन के मनन में, अपने दुख को संभालना सीखे, जब हमारा कोई प्रियजन प्रभु के पाए चला जाते हैं। मेरी यह प्रार्थना हैं की जैसे आप इस मनन को करते हैं , प्रभु इसे आप को प्रोत्साहित करे। शोक करना ठीक हैं। प्रश्न पूछना ठीक हैं।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए विजय थंगैया को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://www.facebook.com/ThangiahVijay