दुख का सामनानमूना

दुख का सामना

दिन 3 का 10

“इन सब में परमेश्वर कहाँ थे?”

जीवन के कठिन समय में, हम अपने जीवन को, रोष से भर कर, पैरो को जमीन पर पटक कर और गुस्से से परमेश्वर पर झुंझलाते हुए व्यतीत कर सकते हैं, और यह प्रश्न भी पूछते सकते हैं “इन सब में परमेश्वर कहाँ थे?” या फिर हम जीवन और मृत्यु पर यीशु मसीह के प्रभुत्व पर विश्वास कर सकते हैं।

जब परमेश्वर हमारी इच्छा के अनुरूप हमें प्रति उत्तर नहीं देते, तब हम उत्तेजित होने लगते है और इसके पीछे का कारण यह होता हैं कि, हम चाहते हैं की परमेश्वर हमारे इशारों पर कार्य करें, और जो हम चाहते हैं, वो वैसा करें, हम उन पर प्रभुता करना चाहते हैं। यही कारण हैं की हम निरंतर शिकायत करते रहते हैं।

हम सब अपने जीवन में आश्चर्य कर्म देखना चाहते हैं। आश्चर्य कर्म अच्छे हैं, परंतु वो हमारे गहरी समस्याओं का समाधान नहीं करते हैं। यह उचित होता की हम दुखी जीवन के बजाए खुशहाल जीवन जीए, उतार-चढ़ाव भरे जीवन की जगह हम एक सामान्य जीवन जीए। परंतु अंत में, हमारी इच्छा के अनुसार सब हमारे नियंत्रण में नहीं होता हैं। हमें क्षति का सामना करना पड़ेगा, हमें अपने प्रिय की मृत्यु का सामना करना पड़ेगा, हमारे बच्चों को दुख और हताशा का सामना पड़ेगा; जीवन हमारी योजना के अनुरूप नहीं होगा। जीवन हमेशा हमारी कल्पनाओं, आशाओं और उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता।

डालेस विलार्ड लिखते हैं, “एक व्यक्ति जिसने जीवन में दुख का ज्यादा सामना नहीं किया हैं, वो उसके औचित्य को नहीं समझता हैं”, और वे सही हैं। हमें, अपने हमारे प्रिय जन की मृत्यु कब और कैसे होगी, या हमारा दुख कैसे और कितना होगा, इससे जुड़ी अपनी पूर्वधारणाओं को अलग करना होगा।

इनके बावजूद, खूबसूरत बात यह हैं कि, यीशु मसीह हमें इस संसार में आश्चर्य कर्म और चंगाई से बढ़ कर कुछ प्रदान करते हैं। मरियम और मार्था के जैसे हमें पुनः जीवित होने के गवाह नहीं बनना। हमें विश्वास हैं की परमेश्वर हमारे साथ हैं। हम यीशु के शब्दों पर भरोसा कर सकते हैं कि “मैं जगत के अंत तक , तुम्हारे साथ हूँ।”

स्मरण रखे परमेश्वर ना सिर्फ हमारे साथ रोते हैं , वे मृत्यु से पुनरुत्थान और जीवन प्रदान करते हैं।

यीशु और लाजर की घटना में, यीशु स्वयं चमत्कार हैं, वे ही हमारी प्रार्थनाओं का अंतिम और सर्वोत्तम जवाब हैं। वे ही पुनरुत्थान और जीवन हैं। पुनर्जीवन नहीं परंतु पुनरुत्थान, परिवर्तन नहीं परंतु नवीनीकरण। यीशु ने पाप, मृत्यु, और अंधकार की शक्तियों को हरा दिया हैं।

अगर हम उस पर विश्वास करते हैं – यूहन्ना पूरी घटना से हमें बताते हैं – कि हमारे पास जीवन, जो वास्तविक, स्थायी, बहुतायत का ,संतोषजनक और अनंतकाल का जीवन होगा । अगर हमारी मृत्यु हो जाती हैं तब भी हम उस जीवन का अनुभव करेंगे। वर्तमान में भी हम उस जीवन का अनुभव कर सकते हैं, क्योंकि यह जीवन से बड़ा हैं जो हम जानते हैं और वह मृत्यु जिससे हम डरते हैं। “पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ। जो मुझ पर विश्वास करते हैं, भले ही मर जाएं, तो भी जीवित रहेंगे, और जो जीवित हैं और मुझ पर विश्वास करते हैं, वो कभी नहीं मरेंगे।”

फिर यीशु आगे कहते हैं, “ क्या तुम इस पर विश्वास करते हो?” यह वो प्रश्न हैं जो हमें स्वयं से पूछना हैं “ इन सब में परमेश्वर कहाँ थे”

इस प्रश्न का उत्तर यह हैं कि, वो हमारे साथ थे और हैं, वे हमें अपना पुनरुत्थान जीवन प्रदान करते हैं। क्या आप उसे स्वीकार कर उस नये जीवन का अनुभव करना चाहेंगे?

उल्लेख: जब दुख और तकलीफ हमारे जीवन में आती हैं तब हमें एहसास होता हैं की, जीवन हमारे नियंत्रण में नहीं हैं बल्कि हम कभी नियंत्रण में नहीं थे । “ श्री टीमोथी केलर

प्रार्थना: प्रभु मैं आप का धन्यवाद करता हूँ, कि मैं यह समझ सका, जब मैं आप के उपस्थिति पर प्रश्न उठा रहा था तब आप मेरे साथ थे। मुझे इस बात पर विश्वास और अनुभव करने के लिए मेरे मदद करें। आमीन !

पवित्र शास्त्र

दिन 2दिन 4

इस योजना के बारें में

दुख का सामना

जब हमारे किसी प्रियजन की मृत्यु होती हैं, हम में विभिन्न भावनाएँ होती हैं। इस १० दिन के मनन में, अपने दुख को संभालना सीखे, जब हमारा कोई प्रियजन प्रभु के पाए चला जाते हैं। मेरी यह प्रार्थना हैं की जैसे आप इस मनन को करते हैं , प्रभु इसे आप को प्रोत्साहित करे। शोक करना ठीक हैं। प्रश्न पूछना ठीक हैं।

More

हम इस योजना को प्रदान करने के लिए विजय थंगैया को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://www.facebook.com/ThangiahVijay