दुख का सामनानमूना
प्रश्न करना ठीक है
आप के मन में भी, मृत्यु और उसके कारण के विषय में, अनेक प्रश्न होंगे। जब किसी की मृत्यु होती है, तब विचलित, दुखी और गुस्सा होना सामान्य हैं। ये ठीक है कि हमारे मन में प्रश्न उठे।
मार्था और मरियम दुख मना रहे हैं। उनके भाई लाजर की मृत्यु हो गयी थी और चार दिन पहले उन्होंने उसको दफना दिया था। उन्होंने यीशु को संदेश भेज, उसकी बीमारी के बारे में बताया था। उन्हें आशा थी कि यीशु तुरंत आकर उनकी सहायता करेंगे। निश्चित वे कुछ कर सकते थे। परंतु काफी दिन गुजर गए और यीशु नहीं आए, और अब लाजर की मृत्यु हो चुकी थी और उसे दफनाया जा चुका था। अब वे और उनके दोस्त दुख मना रहे थे।
लाजर की मृत्यु के पश्चात, यीशु जब वहाँ आये, तो मार्था ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।”
मार्था ने अपने भाई की मृत्यु पर क्रोध दिखाया। अनेक लोग मार्था की तरह – किसी प्रिय जन की मृत्यु होने पर क्रोधित होते हैं। और यह बहुत अद्भुत बात है कि यीशु मार्था के क्रोधित होने पर निराश नहीं हुए। यीशु समझते हैं की जब किसी प्रिय की मृत्यु होती है, तो क्रोधित होना स्वाभाविक है। परमेश्वर हमारी भावनाओं को समझते हैं।
क्या आपके पास भी कभी “यदि“ या “क्यों ” जैसे प्रश्न थे, प्रश्न जैसे “प्रभु यदि आप यहाँ होते, मेरी माँ बीमार नहीं होती।” “वो हादसा नहीं हुआ होता।” मेरे प्रिय जन की मृत्यु क्यों हुई? मेरे पति की मृत्यु क्यों हुई? मेरी पत्नी क्यों? ये त्रासदी हम पर क्यों? अगर मैं अपने पति को पहले अस्पताल ले जाती, तो क्या वे बच जाते? अगर मैं उनका बेहतर ख्याल रखती तो क्या वे आज जीवित रहते? परमेश्वर ने मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर क्यों नहीं दिया? इन सब के बीच में परमेश्वर कहाँ थे? परमेश्वर क्यों नहीं आए?
क्यों वाले प्रश्न पूछें। चाहे जिन बातों को आप जानते हैं, उनका बौद्धिक रूप से कोई अर्थ न हो। आप को मृत्यु के चिकित्सकीय कारण और अन्य सूचनाएँ जो उन्हें समझा सके मिल सकती हैं, फिर भी वे संतोषजनक नहीं होते।
मरियम की प्रतिक्रिया मार्था से भिन्न थी। मरियम अत्यधिक विलाप और शोक कर रही थी। वो शायद क्रोधित भी होगी, परंतु मरियम ज्यादातर दुखी और निराश थी। बाइबल बताती है कि मरियम, यीशु के पाव पर गिर कर बहुत रोई। उसके आँसू नहीं रुके। ध्यान दे कि यीशु ने उसे रोने से नहीं रोका। यीशु मसीह दुख समझते हैं। ये प्राकृतिक और स्वाभाविक हैं की, जब हमारे किसी प्रिय की मृत्यु हो तो हम शोकित हो।
मृत्यु हम में विभिन्न भावना उत्पन्न करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की मृत्यु के प्रति विभिन्न प्रतिक्रिया होती हैं ।
अपने मित्रों के शोक देख यीशु कहते हैं “यह ठीक हैं, सब की विभिन्न प्रतिक्रिया होती हैं”।
यीशु ने मार्था के क्रोध और मरियम के दुख की निंदा नहीं की। यीशु चाहते हैं की हम ये जाने कि, वो सदा हमारे साथ हैं, हम जब शोकित होते हैं, तब वे हमें सांत्वना और प्रोत्साहन देते हैं।
तो, बढ़िए , परमेश्वर पिता के साथ एकांत में समय बिताए और अपने प्रश्न पुछिए। वो समझते हैं। जब आप को इस बात का एहसास हो जाएगा कि आप के “क्यों “ प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर आपको कभी नहीं मिल सकता, तब आप अपने आप को “कैसे” वाले प्रश्नों के ओर ले जाए। इस हानि के पश्चात अपने जीवन में मैं कैसे आगे बढ़ूँ?
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि, आप आशंका करने वाले अकेले व्यक्ति नहीं हैं, और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आप परमेश्वर के सम्मुख स्वतंत्र हैं। आप को ये जानकर शांति मिलेगी की जब आप का दिल शोकित होता हैं तब यीशु मसीह का दिल भी शोकित होता हैं। और जब आप इस बात को समझ लेते हैं, कि परमेश्वर के घनिष्ठ और निजी प्रेम का अनुभव कैसे करना है आपको अनुभव होता हैं कि, परमेश्वर को आपकी अंतरंग चिंता है, तब आप समझ पाएंगे कि दुख में भी परमेश्वर की सामर्थ्य और प्रभाव आपके सामने मौजूद हैं।
उल्लेख : विश्वास, परमेश्वर और उसके चरित्र पर सोच – समझ कर भरोसा रखना हैं, जिसके मार्गों को आप, इस वक्त शायद नहीं समझ नहीं पाएंगे। श्री औसवाल्ड चेंबर
प्रार्थना : प्रभु मैं आप का धन्यवाद करता हूँ कि, आप मेरे प्रश्नों से कुंठित नहीं होते, मेरी सहायता करें की यह जानते हुए की, मुझे सारे उत्तर नहीं मिलेंगे और आप नियंत्रण में हैं, मैं आप में शांति पाऊँ। आमीन
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
जब हमारे किसी प्रियजन की मृत्यु होती हैं, हम में विभिन्न भावनाएँ होती हैं। इस १० दिन के मनन में, अपने दुख को संभालना सीखे, जब हमारा कोई प्रियजन प्रभु के पाए चला जाते हैं। मेरी यह प्रार्थना हैं की जैसे आप इस मनन को करते हैं , प्रभु इसे आप को प्रोत्साहित करे। शोक करना ठीक हैं। प्रश्न पूछना ठीक हैं।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए विजय थंगैया को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://www.facebook.com/ThangiahVijay