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समानुभूतिपूर्ण व्यक्ति बनना सीखें

बिना समानुभूति के आप कभी भी अपनी पत्नी, अपने मित्र, और किसी के साथ मधुर संबंध में नही रह सकते हैं। आप एक मण्डली बना नहीं सकते जब तक कि आप इस बात से अवगत नहीं हैं कि प्रत्येक मण्डली के सदस्य के जीवन में क्या चल रहा है। इसी लिए जब लोग कार्यालय में एक साथ कार्य करते है, वे एक साथ कार्य करते तो हैं, परन्तु वे एक सफल दल नहीं है तबतक जब तक वे यह नहीं जान पाते है कि एक दूसरे के जीवन में क्या हो रहा हैI

समानुभूति इसलिए अति महत्तवपूर्ण हैं क्यूंकि ये हमारी दो गम्भीर ज़रूरतों की पूर्ति करती हैं: मौलिक आवश्यकताओं को समझने की और गंभीरता से हमारी भावनाओं को विधिमान्य करने की I

यदि आप अपने मित्रों के साथ, अपने कार्यस्थल में या अपनी छोटी सी मण्डली के बीच एक दल बनाने पर है, तो आपको उसका स्वरूप समानुभूति पर बनाना होगा। तो आप कैसे एक समानुभूति वाले व्यक्ति बन सकते हैं?

1- धीमे हो। क्योंकि हमारी सभ्यता हमको सिखाती हैं तेज चलना( बनना), जिसके चलते हम तर्कसंगत किन्तु बेतरतीब तरीकों में फंस जाते हैं, अर्थात् कि आप ऊंचे अंकों की ओर निशाना कर रहे हैं और जिनकी आप सबसे ज्यादा चिंता करते हैं उनके जीवनो की सभी प्रकार की विस्तृत जानकारियों से अनभिज्ञ हैं। याकूब1:19 में लिखा हैं, "..हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो,(Hindi-BSI)

2- प्रश्न पूछेंI नीतिवचन 20:5 में लिखा है,"मनुष्य के मन की युक्‍ति अथाह तो है,तौभी समझवाला मनुष्य उसको निकाल लेता है।"।(Hindi-BSI) बहुत से लोग अपनी भावनाओं को अपने तक ही समिति रखते हैं, और वह स्वतः ही किसी को नहीं कहते कि वह किस हाल मैं हैं।" मैं ठीक हूं" एक स्तर-मान प्रतिउत्तर है, लेकिन ये वास्तव में आपको बताता नहीं है की वे किस अनुभव से गुजर रहें हैं।

अगर आप पूछते है," आप कैसे है?" और दूसरा व्यक्ति कहता है," मैं अच्छा हूं", यहीं पर आप दूबारा प्रश्न पूछ कर उनसे अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे करके आप समानुभूति विकसित कर सकते हैं। विराम लेकर कहें," सच में, आप कैसे हैं?"

दूसरी बात आप ये करें आप रुकना सीख़ेंI इसका मतलब उनके चुप रहने से ना घबराएं। उस क्षण में बने रहें, प्रश्न पूछें, और वहां बैठकर प्रतिक्षा करने से न घबराएं। और जल्दबाजी न करें अपने कार्यक्रम के लिएI सिर्फ सुऩें और सीख़ें I

3-मनोभाव दिखाए I बाईबल बताती है रोगियों की पुस्तक 12:15 में,"जो प्रसन्न है अनेक साथ प्रसन्न रहोI जो दुःख़ी है, उनके दुःख में दुःख़ी होओ "I समानुभूति सिर्फ ये ही कहना भर नहीं है,"कि मैं आपकी पीड़ा में दुःरवी हूँ I" बल्कि ये कहना है, "मैं भी आपकी पीड़ा से पीड़ित हूं I" आप इच्छुक हैं उनके साथ रोने के लिए और साथ में हंसने के लिए भी।

सिर्फ एक ही रीति से आप इतने समानुभूति वाले हों सकते हैं और वह हैं परमेश्वर के द्वारा भरे रहने से I अगर आप परमेश्वर के लिए हल्के पड़ने लगेंगे तो आप कभी भी समानुभूति वाले व्यक्ति नहीं बन सकते हैं। आपको परमेश्वर से हमेशा भरा रहना होगा।

" अन्त में तुम सब कों समानविचार, सहानुभूतिशील, अपने बन्धुओं से प्रेम करने वाला, दयालु और नम्र बनना चाहिए" (1 पतरस 3:8)I

पास्टर रिक वॉरेन द्वारा आज का श्रव्य संदेश सुनें >>

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आप बिना किसी मदद के वो नहीं बन सकते जो परमेश्वर आपसे चाहता है की आप बनें और ना ही इसके बिना आप इस ग्रह पर अपने उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं. हमें एक दुसरे की ज़रुरत है और हम मसीह में एक दुसरे से सम्बन्ध रखते हैं. इस श्रृंखला में पास्टर रिक बताते हैं की दुसरे लोगों के साथ अपने संबंधो को जीवंत कैसे रखें.

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यह डिवोशनल रिक वॉरेन द्वारा © 2015 प्रकाशनाधिकृत है। सर्वाधिकार सुरक्षित। अनुमति द्वारा प्रयुक्त। अधिक जानकारी के लिए, कृपया यहां देखें: www.rickwarren.org