मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 60 का 100

विश्वास से विश्वास की ओर

विश्वास एक ऐसा शब्द है जिसको प्रेरित पौलुस ने अपने लेखों में अक्सर इस्तेमाल किया है। थिस्सलुनिकियों को लिखते हुए वह उनके विश्वास में जानना चाहता था। जब कि विश्वास का अर्थ है, विश्वास या सम्पूर्ण भरोसा यह उस शब्द से भी बढ़कर है। इस शब्द का अर्थ वफादारी और समर्पण भी है।

विश्वास का अर्थ है इस बात के प्रति कायल होना कि कोई चीज सही है। 1 कुरिन्थियों 15ः17 में प्रेरित ने कुरिन्थ की लोगों से कहा, यदि यीशु मरे हुओं में से जी नहीं उठा, तो उनका विश्वास करना व्यर्थ है। वह कह रहा था कि जो कुछ उन्होंने विश्वास किया सब कुछ बेकार हो जाएगा। सच्चा विश्वास इस बात को मानता है, कि यीशु की मृत्यु और पुनरूत्थान सच्च है।

सच्चा विश्वास तब शुरू होता है जब हम सुनने के लिये तैयार होते हैं। यह एक प्रकार का मानसिक तैयारी है। हमें उचित लगता है कि यह सच है। परंतु यह सच्चा विश्वास नहीं है। सच्चा विश्वास तब आता है, जब हम कहते हैं, मुझे लगता है कि यह मुझे न केवल अर्थगत लगता है, बल्कि अपने जीवन को इस पर बनाना चाहता हूँ।

पौलुस ने हबक्कुक 2ः4 से उद्धरण दिया, यह कहते हुए कि धर्मीजन विश्वास से जीवित रहेगा। एक तरीका धर्मी ठहराएँ हुए लोगों के बारे में सोचना है, या जो यीशु के क्रूसीकरण के द्वारा धर्मी ठहराए गए हैं। यदि हम धर्मी ठहराये गए हैं, इस का अर्थ यह है, परमेश्वर हम से इस प्रकार व्यवहार करता है, मानो कि हम ने कभी पाप नहीं किया हो। वह हमें अपने निज प्रिय सन्तान जैसे व्यवहार करता है। परमेश्वर के शत्रु होने के बजाय हम उसके मित्र बनते हैं। उस से लड़ने के बजाय, हम उस की सेवा करते हैं।

जब परमेश्वर हमें न्यायी या धर्मी करके पुकारता है, तब हम एक विश्वास भरोसा और मित्रता के सम्बन्ध में प्रवेश करते हैं। हमें डरने या व्याकुल होने की कोई आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि अब हमारे लिए कोई दण्ड नहीं है।

जब पौलुस कहता है, कि उस एक के द्वारा और विश्वास के द्वारा जीएंगे। इसका अर्थ है कि हम में से जो परमेश्वर के साथ सही सम्बन्ध में बनाए गए हैं वह विश्वास के साथ जीएँगे। कि हम परमेश्वर के साथ अपने भरोसे में जीते हैं जो हमारे पास हमें ढूँढते हुए आता है।

यहीं पर बहुत लोगों को शैतान के साथ लड़ने की आवश्यकता होती है। परमेश्वर ने जो कुछ हमारे लिये किया है उस पर ध्यान देने के बजाय, वे शैतान के फुसफुसाहट को ध्यान देतें हैं। क्या तुम को याद है जब तुम ने अपना धैर्य खो दिया था? तुम अपने बिल के भूगतान के बारे में चिन्तित थे और यदि तुम चिन्तित होते हो तो तुम्हारे भीतर विश्वास नहीं है, ठीक? यदि तुम एक मसीही हो, तो तुम कैसे कह सकते थे कि तुम ने किया?

यातनाएँ आती हैं, और हमारे पुराने जीवन को याद दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। सब पराजित हुए हैं, और हम लगातार पराजित होंगे। और जब हम ऐसा करते हैं तो हमें पश्चाताप करना और आगे बढ़ना है।

मैं बहुत वषोर्ं पूर्व एक विशेष कठिनाई की दौर से गूजरी, जब मेरे जीवन में कोई भी आनन्द और शान्ति नहीं थी। मेरे जीवन के बहुत से दिन नाखुशी से भरे हुए थे। मैं लगातार परमेश्वर से पूछती थी कि मेरे साथ क्या गलत है? और मैं सच में यह जानना चाहती थी कि मेरा समस्या क्या है? मैं परमेश्वर को प्रसन्न करने में बहुत कठिन परिश्रम करती थी, और जैसा ही मैं स्वयं को देखना चाहती थी, वैसा ही मसीही बनने का प्रयास करती थी। लेकिन मैं अपने जीवन में निश्चित तौर पर कोई भी विकास या प्रगति नहीं पाती थी।

तब एक दिन मैं रोमियों 15ः13 एक कार्ड़ पर लिखे हुए देखा, ‘‘सो परमेश्वर जो आशा का दाता है, तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे, कि पवित्र आत्मा की सामर्थ से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए।''

मैं सन्देह और अविश्वास से गिर गई थी और शैतान को अपने झूठ के द्वारा मुझे यातना देने की अनुमति दे दी थी। परिणाम स्वरूप मैं नकारात्मक, क्रोधी और अधैर्यवान हो गई थी। मैं स्वयं का जीवन दुखदायी बना रही थी, और शैतान का जो दृढ़ गढ़ मुझ पर था उस के द्वारा वह उत्साहित था।

इस पद ने मेरे सारे पुराने विचारों को परिवर्तित कर दिया। मैं उस पल जान गई यीशु मुझ से इतना प्रेम किया, कि न केवल उस ने मेरे सारे पुराने पापों को माफ कर दिया। परन्तु आगे उस ने मेरे उन सारे कमजोर क्षणों को भी क्षमा कर दिया, जब मैं भविष्य में गिर सकती थी। मैं जानबूझकर किए गए पापों का वर्णन नहीं कर रही हूँ। लेकिन मानवीय कमजोरियों और उन क्षणों के बारे में कह रही हूँ, जब मैं सारे सच्चाई के साथ नहीं जी पाती थी, जिनको मैं जानती हूँ।

मैंने अपने पति से कहा, ‘‘सोचिये।'' दो हजार वर्ष पूर्व न केवल वह मेरे सभी पापों के लिये मरा, इस से पहले कि मैं उस को जानती। परन्तु वह मेरे सारे पापों और पराजयों के लिये भी, कि जब तक मैं उसे आमने सामने न देखूं। यह सचमूच में एक शक्तिशाली विचार था जो मेरे भीतर आया।

तब मैं इस सन्देश से आगे दिए गए पद का उद्धरण किया। क्योंकि सुसमाचार में एक ऐसी धार्मिकता प्रकट की गई है, जिस का वर्णन परमेश्वर करता है, जो विश्वास से आता है और विश्वास की ओर ले जाता है। अन्ततः मैं विश्वास से विश्वास तक का धारणा को समझी। मुझे शैतान को अविश्वास के प्रश्नों के द्वारा अपने भीतर प्रवेश करने देने की आवश्यकता नहीं है। मैं हर क्षण विश्वास से विश्वास की ओर बढ़ते हुए जी सकती हूँ।

‘‘प्रभ यीशु मसीह, मैं तेरे प्रेम की खोजी हूँ जो महान और सामर्थी है। कि तू मेरे जनम से पहले के सारे पापों के लिये ही नहीं मरा। बल्कि मेरे भविष्य के कमजोर क्षणों की भी तू ने प्रबन्ध किया है। मैं तेरा धन्यवादी हूँ, तेरे प्रेम के लिए और मैं तेरे पवित्र नाम में आनन्दित हूँ। आमीन।।

पवित्र शास्त्र

दिन 59दिन 61

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/