मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 65 का 100

सीधे हृदय से

परमेश्वर के वचन को केवल सुननेवाले ही नहीं बल्कि करनेवाले बनकर सही रीति से जीने का—उत्तरदायित्व प्रत्येक विश्वासी का है। परमेश्वर के भययोग्य आदर से प्रेरित होकर, हम सतर्कता पूर्वक जीना और जिस दुनिया में हम रहते हैं उस में एक अन्तर लाने का प्रारम्भ करना सिख सकते हैं। आपको और मुझ को इस बारे में सावधान होने की आवश्यकता है, कि हम किस को अपने आत्मा में अनुमति देते हैं और अपना जीवन किस प्रकार जीते हैं। नीतिवचन 4:23 कहता है, ‘‘सब से अधिक अपने मन की रक्षा करय क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।'' मैं विश्वास करती हूँ कि हमें एक सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिये कि हम किस प्रकार जीते हैं, असावधानी से या लापरवाही से। हमें इस बात में सावधान होना है कि हम क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, किस विषय में सोचते हैं और हमारा मित्र कौन हैं।

मैं नहीं कहती हूँ कि हमें मनुष्यों के द्वारा बनाएँ गए कठोर नियमों के अनुसार जीना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि हमें मैकअप नहीं करना चाहिये। कुछ लोग कहते हैं कि हमें रंगिन कपड़े नहीं पहनना चाहिये। कुछ लोग कहते हैं कि हमें रंगहीन कपड़े सिर से लेकर पाँव तक पहनना चाहिये। यह नियमों की गुलामी के अलावा और कुछ नहीं है। परमेश्वर के साथ मेरा संबन्ध बहुत वषोर्ं से नियमों से बन्धा हुआ था और यह बहुत ही कष्टदायक थी, इसलिये मेरी अन्तिम प्राथमिकता नियम सिखाना होगा। मैं यह कह रही हूँ कि हमें समझौता नहीं करना चाहिए। हमें एक मसीही के रूप में अपने उत्तरदायित्व को पहचानना है, कि हम इस प्रकार जिएँ, कि अविश्वासी भी हमारे व्यवहार से परमेश्वर की ओर आकर्षित हों।

याकूब 4:17 कहता है, ‘‘इसलिये जो कोई भलाई करना जानता है और नहीं करता, उसके लिये यह पाप है।'' दूसरे शब्दों में यदि हम इस बात से कायल हो जाते हैं कि कोई चीज गलत है, तो हमें वह नहीं करना चाहिये। चाहे हम सैकड़ों अन्य लोगों को ऐसा करते और उस के साथ देखें। वह उसके साथ ऐसा करते हुए दिखे परन्तु बहुत जल्द ही वे जैसा बोये हैं वैसा काटेंगे।

हम जानते हैं कि चिन्ताएँ और व्याकुलताएँ एक ईश्वरीय मसीही की विशेषताएँ नहीं हैं। फिर भी बहुत सारे मसीही चिन्ता करते हैं। आप चिन्ता करना चुन सकते हैं अथवा आप चिन्ता करने से इनकार कर सकते हैं और आनन्द और शान्ति के साथ जीने का चुनाव कर सकते हैं। बहुत से लोग वह सन्देश नहीं सुनना चाहते हैं, और वे इस बात को सोचने में एक अजीव सा सांत्वना पाते हैं कि, चिन्ताएँ उन के नियंत्रण के बाहर है। ऐसा नहीं है। चिन्ता करना परमेश्वर के विरूद्ध पाप है। 

हमारा उत्तरदायित्व, परमेश्वर का उत्तरदायित्व जब तक मैं कलीसिया में रही, मैं नहीं सोचती कि किसी ने कभी ऐसी बात कही हो। परन्तु यह पाप है। यह परमेश्वर को झूठा कहना है। यह ऐसा कहना है मानो परमेश्वर आपकी चिन्ता करने के लिये योग्य नहीं है, और आपकी सहायता करने के लिये योग्य नहीं है। 

विश्वास कहता है, परमेश्वर यह कर सकता है। चिन्ता कहती है परमेश्वर मेरी सहायता करने की योग्य नहीं है। 

जब आप चिन्ता करते हैं तो न आप केवल परमेश्वर को झूठा कहते हैं, परन्तु आप ने शैतान को आपके मन में चिन्ता और व्याकुल विचारों को भरने भी देते हैं। जितना अधिक आप समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करेंगे वे उतना ही पराजय बनते जाते हैं। आप परेशान होना शुरू करते हैं और आप निराशा में पहुँच जाते हैं।

महान प्रेरित के वचनों के विषय सोचिये, ‘‘जो मुझे सामर्थ देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ।'' (फिलिप्पियों 4:13)। या भजनकार के शब्दों पर ध्यान दीजिये, ‘‘अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़य और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।'' (भजनसंहिता 37:5)।

यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे चिन्ता न करें, जैसा कि ऊपर कहा गया, कि वे कल के लिये चिन्ता न करें। लेकिन इन वचनों को सिखाने से बढ़कर उसने कियाय वह ऐसा जी कर दिखाया; यीशु ने उससे कहा, ‘‘लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैंय परन्तु मनुष्य के पुत्र के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।'' (मत्ती 8:20)। यह एक शिकायत नहीं था परन्तु जीवन का एक साधारण सत्य था। यीशु ने उसके लिये अपने पिता के प्रबन्ध पर भरोसा किया। चाहे वह नहीं जानता था कि वह कहां सोएँगा, या क्या खाएँगा?

यीशु ने कहा कि हमें जीवन में किसी बात की चिन्ता नहीं करना हैं। वह योजना बनाने या आगे के सोचने के बारे में नहीं कह रहा था। वह कह रहा था कि कुछ लोग कभी भी कुछ करते नहीं हैं। क्योंकि भय उन्हें पकड़े रहता है और नीचे की ओर खींचता है। वो आपको हमेशा दस बातें बता सकते हैं कि आपकी योजनाओं के साथ क्या गलत होनेवाला है। यीशु चाहता है कि हम एक तनाव रहित जीवन जीएँ।

मैंने एक दंपति के बारे में सुना जिन की बेटी एक ऐसी गंभीर बिमारी से पीड़ित थी, इसके इलाज का खर्चा उनके इनशुअरन्स पालिसी से पूरा नहीं हो रहा था। माता पिता अस्पताल का बिल भरने में संघर्ष कर रहे थे। यह न जानकर कि और क्या करना चाहिये, वे दोनो अपने शयनकक्ष में गए और लम्बी प्रार्थना करने लगे। इसके पश्चात पति ने कहा, ‘‘यह बहुत साधारण बात है, मैं परमेश्वर का सेवक हूँ और मेरा उत्तरदायित्व है कि मैं अपने स्वामी की सेवा करूँ। उसका उत्तरदायित्व है वह मुझे संभाले।''

अगले दिन सुबह डाक्टरों ने उनसे कहा कि उनकी बेटी किसी प्रायोगिक शैलिक विभाग के लिये योग्य चुनी गई है और सारी खर्चे चुका दिये जाएँगे। पत्नी मुस्कुराई और कही, ‘‘परमेश्वर उत्तरदायी है, है ना?'' उनके विश्वास और भरोसा की कितनी अच्छी गवाही है, कि परमेश्वर है जो विश्वासयोग्य और सभी समय पर उत्तरदायी ठहरता है। परमेश्वर व्यक्तिओं का कायल नहीं है। वह एक व्यक्ति के लिये जो करता है, दूसरे व्यक्ति के लिये भी वह करेगा। (रोमियों 2:11 देखें)। मैं आपको उत्साहित करूंगी कि आप चिन्ता करना छोड़ें और परमेश्वर पर भरोसा करना प्रारंभ करें।

‘‘प्रभु परमेश्वर, मैं जानती हूँ चिन्ता करना आपके विरूद्ध पाप है। यीशु मसीह के नाम में चिन्ताओं पर विजय पाने के लिए मेरी सहायता करें। और हर आवश्यकता के लिये आप प्रबन्ध करते हैं, यह भरोसा करने के लिये मुझे सहायता करें। आमीन।”

पवित्र शास्त्र

दिन 64दिन 66

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/