मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 70 का 100

बर्बाद जीवन

अपने पुस्तक मन की युद्धभूमि में मैं स्वीकार करती हूँ। मैंने अपने जीवन के बहुत से वर्ष उन बातों के विषय में चिन्ता करते हुए व्यर्थ कर दिया, जिनके विषय मैं कुछ नहीं कर सकती थी। मैं उन वषोर्ं को वापस चाहती हूँ कि मैं उन्हें एक दूसरे प्रकार से जी सकूँ। फिर भी परमेश्वर ने आपको जो समय दिया है यदि उसे आपने एक बार खर्च कर दिया तो उसे वापस पाना और भीन्न प्रकार से जीना असम्भव है।

बहुत वषोर्ं तक मैं जिन बातों को नहीं समझ पाई, वह यह था कि यीशु की शान्ति हमेशा मेरे साथ थी, जो तैयार और हमारे लिये इन्तजार कर रही थी। उसकी शान्ति आत्मिक है, और उसका विश्राम कष्ट, शोर और सन्देह के बीच में काम करता है। बहुधा हम सोचते हैं, कि यदि जीवन में आन्धी, तुफान नहीं होते तो हम ठीक होते। परन्तु यह सच नहीं है, वास्तविक शान्ति आन्धी, तुफान से गूजरने में और जीवन के युद्ध को जीतने से आती है।

बहुत वषोर्ं पूर्व मैं एक बुजुर्ग व्यक्ति के दाह संस्कार में शामिल हुई। कब्र के पास उनकी 84 वर्ष की विधवा खड़ी थी। जिसने अभी अभी अपनी पति को एक अग्नि काण्ड में खो दिया था, जिसनें उनके घर को भी नाश कर दिया था। केवल वही जीवित बच पाई थी। मात्र एक सप्ताह पहले ही उनके बेटे की कैंसर के कारण मृत्यु हो गई थी, और उनकी बेटी एक दर्दनाक कार दुर्घटना में मारी गई थी। मात्र दो सप्ताह के दौरान उन्होंने अपने सभी प्रियों को खो दिया था।

आप इन सारी घटनाओं को कैसे सह रही हैं? मैंने किसी को उनसे पूछते हुए सुना। ‘‘एक व्यक्ति इतना अधिक कैसे सह सकता है?''

जवाब देते हुए उस महिला की आँखें नम थी। परन्तु उनकी आवाज में दृढ़ता थी। उन्होंने कहा, ‘‘यह आसान नहीं था।'' मैंने महसूस किया कि मानो मैं एक नदी में होकर चल रही हूँ जो निरन्तर गहरा होता जा रहा है, और मुझे निश्चय था कि मैं डूब जाऊँगी। मैं लगातार परमेश्वर की सहायता के लिये चिल्लाती रही। और क्या आप जानते हैं? मेरे कदम नदी के तल को छू लिये और मेरा सिर अभी भी पानी के ऊपर था। मैं नदी को पार कर चुकी थी। परमेश्वर मेरे साथ था। उसकी शान्ति ने मुझे लगातार चलने की योग्य बनाया। जब कि मुझे निश्चय था कि मैं डूब जाऊंगी।

इसी प्रकार परमेश्वर की शान्ति काम करती है। यीशु ने यह स्पष्ट किया कि हमें चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह हमारे साथ है। पानी चाहे कितना भी गहरा हो, वह हमेशा हमारे साथ है।

मैंने पुनः अपने उन वषोर्ं के बारे में विचार किया, जब मैं चिन्ता में परमेश्वर के शान्ति के बिना जी रही थी। मैं एक मसीही थी, और मैं हर उन तरीकों से परमेश्वर का अनुसरण करने का प्रयास कर रही थी, जिन्हें मैं जानती थी। यद्यपि उन दिनों धन एक बहुत बड़ी समस्या थी और बहुत बार हमें मालूम नहीं होता था कि हम अपने बिलों का भूगतान कर पाएँगे कि नहीं।

मेरा पति देव कभी भी किसी बात पर चिन्तित दिखाई नहीं देते थे। मैं तनावग्रस्त होकर बेहोश होने लगती थी, और वे दूसरे कमरे में बच्चों के साथ खेलते और मल्लयुद्ध करते थे। एक बार मैंने तनावग्रस्त होकर पूछा, ‘‘आप मेरी इन बातों में सहायता क्यों नहीं करते, बजाय बच्चों के साथ खेलने के?''

‘तुम मुझ से क्या चाहती हो?'' उन्होंने पूछा।

मुझे नहीं मालूम था कि क्या कहूँ। कुछ भी तो ऐसा नहीं था जो वे कर सकते थे और मैं यह बात जानती थी। परन्तु मैं इस बात से निराश थी, कि वे जीवन का आनन्द ले सक रहे थे मानो हम किसी आर्थिक परिस्थिति में न हों। परन्तु ये ऐसे क्षण थे जो मुझे जगाने के लिये काफी थे।

मैं रसोई घर में कम से कम एक घण्टा इस चिन्ता में गूंजती रहती, और जोड़ तोड़ करने का प्रयास करती रहती कि कैसे हम अपने बिलों का भूगतान करेंगे। चाहे मैं कुछ भी करती, उस महीने में हमारे पास पर्याप्त पैसा नहीं होता। देव समस्या को समझते थे और मेरे जितना  वह भी उसे पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वे परेशान नहीं रहते थे। वे जानते थे कि इसे बदलने के लिये वे कुछ नहीं कर सकते हैं।

उन्होंने कुछ नहीं कहा, परन्तु मैं समझ गई कि उनका तात्पर्य क्या है। यदि हम किसी चीज को बदल नहीं सकते, तो आप उन चीजो को बदलने के लिये क्यों समय बर्बाद करते हैं, जो बदल नहीं सकते?

मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो शर्मिन्दा होती हूँ। मैंने अपने विवाहिक जीवन के बहुत सारे शुरूवाति वर्ष व्यर्थ गवां दिए। अपने जीवन, बच्चों और पति का आनन्द उठाने बजाय मैं उन चीजों को बदलने में ऊर्जा गवाती रही, जिन्हें मैं नहीं बदल सकती थी।

परमेश्वर ने हमारे आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा किया, कभी कभी तो अद्‌भूत आश्चर्यकमोर्ं के द्वारा और मेरी सारी चिन्ताएँ व्यर्थ साबित हुई। मैंने अपने जीवन में एक बहुमूल्य समय बर्वाद कर दिया, जो यीशु द्वारा प्रदत्त, बहुतायत जीवन का एक भाग था। अभी वह मेरे पास है और मैं धन्यवादी हूँ। लेकिन पीछले समय यह मेरे साथ और बहुतायत से हो सकता था। मुझे थोड़ा समय लगा, परन्तु अन्ततः मैंने अपने स्वर्गीय पिता के विश्वासयोग्यता का आनन्द उठाना सीख लिया।

सारी शान्ति के परमेश्वर अपने जीवन में तेरी उपस्थिति का आनन्द उठाने और उसे पहचानने में मेरी सहायता कर। और तुझे तेरी सारी आशीषों के लिये धन्यवादी होने में मेरी सहायता कर। उन बातों पर चिन्ता करते हुए जीवन को बर्बाद करने की मुझे अनुमति न दे, जिन्हें केवल तू ही नियंत्रित कर सकता है। यीशु के नाम में मैं तुझ से माँगती हूँ कि तू मुझे चिन्ता से मुक्त करे।

पवित्र शास्त्र

दिन 69दिन 71

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/