मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 74 का 100

जब कोई हार जाता है

पौलुस के यह शब्द मुझे यह कहावत स्मरण दिलाती है जिसे मैं अक्सर सुना करती। जैसा मैं करता हूँ वैसे मत करो, जैसा मैं कहता हूँ वैसे करो। यह कहनेवाले लोग चाहते हैं कि अन्य लोग उन नियमों के अनुसार जिएँ जिनका पालन वे स्वयं नहीं करना चाहते।

बहुत से असुरक्षित या जवान मसीही स्वयं को यहीं पर पाते हैं। वे कुछ कलीसियाई अगुवों को या अधिकारियों को ऐसा कुछ करते हुए देखते हैं जिसके विषय में वे जानते हैं कि यह सही नहीं है। और वे सोचते हैं, ठीक है वे यदि बड़े मसीही हैं और वे ऐसा कर सकते हैं तो यह सही होगा। यह स्वभाव उन्हें ऐसा ही करने को या परमेश्वर से दूर जाने को अगुवाई प्रदान करता है।

हमें यह स्मरण करने की आवश्यकता है कि परमेश्वर ने हमें अपने कायोर्ं पर उत्तरदायी होने को बुलाया है। परमेश्वर हमें हर एक कार्य के लिये और विचार के लिये उत्तरदायी बनाता है। परन्तु हमारा उत्तरदायित्व यहीं पर समाप्त नहीं हो जाता है। अन्य लोग जब गिर जाते हैं तो उन्हें उठाने के लिये भी हम उत्तरदायी हैं।

गलातियों 6:1—3 के वर्णन के तुलना में बाइबल में और कहीं भी इस धारणा को और स्पष्ट नहीं किया गया है। प्रेरित पौलुस तीन महत्वपूर्ण सिद्धान्तों को वर्णन करता है जिन्हें शैतान नहीं चाहता है कि हम समझें। पहला, जब हम इस बात को जान जाते हैं कि एक भाई या बहन पाप में पड़ गया है, तो हमें हर संभव कार्य उस व्यक्ति को उठाने के लिये करना चाहिये। पौलुस ने लिखा, यदि कोई व्यक्ति गलत आचरण में या किसी प्रकार के पाप में फंसा जाए तो यदि आम आत्मिक हैं (जो उत्तरदायी हैं और आत्मा के द्वारा नियंत्रित हैं) उस व्यक्ति को सही रास्ते पर लाना और पुनर्स्‌थापित करना चाहिये। किन्तु उसके भीतर कोई भी उच्चता की भावना नहीं होना चाहिये और संपूर्ण सज्जनता और स्वयं पर एक दृष्टि के साथ करना चाहिये, क्योंकि हम भी परीक्षा में पड़ सकते हैं। दूसरे के बोझ, समस्याएँ और नैतिक पतन की बातें सहो और इस प्रकार से मसीह की सिद्ध व्यवस्था को पूरा करो, जो हमारी आज्ञाकारिता में कम है। यदि कोई व्यक्ति अपने आपको कुछ समझता है, जबकि वह है नहीं तो वह स्वयं को धोखा देता है।

यहाँ तक कि हम में से श्रेष्ठ लोग भी कभी कभी हार जाते हैं, परन्तु यह ध्यान देना महत्पूर्ण है, कि पड़ जाए शब्द जानबूझकर पाप में पड़ने के बारे में नहीं कहता है। यह ऐसा है मानो कोई बर्फ पर चल रहा हो और फिसल कर गिर जाता हो। उसी प्रकार मसीही जीवन कार्य करता है—लगभग सभी लोग कभी ना कभी फिसल जाते हैं।

जब ऐसा होता हैं, तो हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिये? उसे ही हमें सहायता देना चाहिये, यदि कोई बर्फ पर गिर जाता है, तो स्वभाविक रूप से क्या आप उसे उठाने के लिये दौड़ नहीं पड़ेंगे? यह एक मसीही सिद्धान्त है। परन्तु शत्रु यह सुनिश्चित करना चाहता है कि आप ऐसा ही करने न पाएँ। वह आपके कान में यह भी कह सकता है, उसकी तरफ मत देखो, उसे अनदेखा कर दो। तुम उसकी सहायता करने के लिये, उसे उठाने के लिये वाध्य नहीं हो। क्यों, तुम उसे जानते भी नहीं हो। सहायतामन्द लोगों को अनदेखा करना आसान है।

यूनानी शब्द पुनः स्थापित करना, एक समय पर शैल्य चिकित्सकों द्वारा इस्तेमाल किया जानेवाला चिकित्सकिय शब्द था जिसका इस्तेमाल वे टूटी हुई बाँह को जोड़ना या शरीर के किसी बढ़े हुए भाग को निकालने में करते थे। उस व्यक्ति को दण्ड प्राप्त करते हुए देखना उद्देश्य नहीं था, परन्तु यह था कि वह व्यक्ति चंगाई प्राप्त करे।

दूसरी पंक्ति में, जो पौलुस ने कहा, वह है, ‘‘कि जब हम जान जाते हैं कि कोई व्यक्ति गिर गया है, तो उसकी ओर उँगली उठाने की बजाय, उस पर तिरछी दृष्टि डालने के बजाय हमें स्वयं को देखना है। शैतान ने हमें परीक्षा में डाला, तो हो सकता है, कि हम भी ऐसा ही कार्य या उससे भी बुरा। हमें साहसपूर्वक उस व्यक्ति की तरफ देखना है और स्वयं को याद दिलाना है, परमेश्वर के अनुग्रह के बिना, मैं भी वहां हो सकता था।

तीसरी बात, घमण्ड को अपने जीवन से दूर हटाना, जो हमारी सफलता के परिणाम स्वरूप आती है। यदि हम सोचते हैं कि हम अधिक आत्मिक हैं, तो हम स्वयं को धोखा देते हैं। नीतिवचन 16ः18 एक चेतावनी देता है, ‘‘विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है।'' हमें अपनी सफलता की तुलना दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये। बल्कि अपने आप से पूछना चाहिये कि मुझे जो कुछ करना चाहिए उसे मैंने किया है या नहीं। शैतान बहुत उत्सुक होता है, जब हम अपना तुलना उन लोगों के साथ करते हैं, जो गिर गए होते हैं, और स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं। लेकिन जब हम, स्वयं की तुलना यीशु मसीह की स्तर से करते हैं, तो घमण्ड करने का कोई कारण हम नहीं पाते हैं। बल्कि हम दीनता पूर्वक परमेश्वर की उन कार्य को देखकर धन्यवाद कर सकते हैं।

प्रभु यीशु, यह मुझे स्मरण दिला कि मैं उन गिरे हुए लोगों की सहायता करूँ। मुझे यह स्मरण करने में सहायता कर, कि आपके करूणा के बिना मैं भी गिर सकता था। परन्तु सबसे बढ़कर यह स्मरण करने में मेरी सहयता कर कि तू सदा मेरे साथ है और दुष्ट पर विजय पाने में मेरी सहायता करेगा। मैं तुझे इन सब बातों के लिये स्तुति करता हूँ। आमीन।।

पवित्र शास्त्र

दिन 73दिन 75

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/