मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 100 का 100

यह मेरे बस में नहीं है!

जब परमेश्वर हमारे गलत व्यवहार पर कार्य करना प्रारंभ करता है, तो यह कहना आसान होता है, ‘‘यह मेरे बस में नहीं है। परन्तु यह कहने में बहुत साहस और विश्वास चाहिए कि ‘‘मैं इसका उत्तरदायित्त्व लेता हूँ और अपने जीवन को ठीक करना चाहता हूँ‘‘।

मुद्दों का सामना न करना और उनसे हट जाना एक बहुत बड़ी समस्या है। गलत बातें इसलिए नहीं चली जायेंगी कि हम उन्हें मानते नहीं है। बहुधा हम चीजों को बहुत बड़ा समझते हैं। हम उनसे छुप जाते हैं, और जब तक हम ऐसा करते हैं तो उनका हम पर अधिकार होता है। समस्याओं को यदि जीवित दफन किया जाए तो वे कभी मरते नहीं हैं।

बहुत वषोर्ं तक मैं बचपन में अपने साथ हुए यौन शोषण से कतराती रही। मेरे पिता ने मेरा यौन शोषण किया था। इसलिए 18 साल की होते ही मैंने घर छोड़ दिया था। मैंने सोचा कि इस प्रकार मैं समस्या से दूर जा रही हूँ। परन्तु वह समस्या तो मेरे आत्मा में थी। मेरे विचारों, कायोर्ं और स्वभाव में भी थी। इसका प्रभाव व्यवहार और मेरे सरे संबंधों पर पड़ा। मैंने अपने भूतकाल को दफना दिया था। यह सच है कि हमें भूतकाल में जीने की आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर का वचन हमें प्रोत्साहित करता है कि हम बीती हुई बातों को भूल जाएँ और उन्हे छोड़ दें। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हम इनके परिणामों का इन्कार करने के लिए स्वतंत्र हैं और जब हमें दर्द हो रहा हो तो हम यह दिखाता करे कि हमे दुख नहीं रहा है।

मेरे जीवन में बहुत सी गलत और नकारात्मक अभिवृत्तियाँ थे। मेरे पास बहुत से बहाने भी थे। मैं अपने साथ घटित किसी भी बात पर विचार नहीं कर रही थी। मैं अपने लिए बहुत दुखी होती और मैं कहती थी कि यह मेरे बस की बात नहीं हैय यह मेरी गलती नहीं कि मेरा शोषण हुआ। और सच में यह मेरी गलती नहीं थी। परन्तु यह मेरा उत्तरदायित्व था कि में देह शोषण के परिणमस्वरूप अनुभव कर रहें बंधन से मुक्त होने के लिए परमेश्वर की सहायता लेती।

परमेश्वर ने मेरे साथ कार्य कर मुझे उन गलत विचारों से जिन्हे मैंने भीतर आने की अनुमति दी थी स्वतंत्र करना प्रारंभ किया। मेरे जीवन से पहले मेरे विचारों को बदलना था। पहले मैं इन विचारों लिए उत्तरदायित्व लेना नहीं चाहती थी। मैं सोचती थी कि विचारों पर नियंत्रण मेरे बस में नहीं हैं। विचार यूँ ही अनायास मेरे दिमाग में आ जाते हैं। धीरे धीरे मैंने सीखा कि मैं अपने विचारों को न उन्हें उद्देश्य पूर्ण बना सकती हूँ। मैंने सीखा कि मुझे हर उस विचार को स्वीकार करने की आवश्यकता नहीं है जो मेरे मन में आते हैं। हम गलत विचारों को दूर भगा सकते हैं और उनकी जगह भले विचारों को रख सकते हैं।

मैंने सीखा कि अपने मन में आनेवाले गलत विचारों के प्रति असहाय महसूस करने के बजाय मैं कुछ सकारात्मक कर सकती हूँ और मुझे करना चाहिए।

हमारी बहुत सी सोच आदतन होती है। यदि हम लगातार परमेश्वर और भली बातों पर विचार करेंगें तो ईश्वरीय विचार हमारे लिए स्वाभाविक हो जाते हैं। हजारों विचार प्रतिदिन हमारे मन से होकर गुजरते हैं। हम ऐसा महसूस होता हैं कि उन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं है। यद्यपि हमें बुरे विचार सोचने के लिए कुछ भी प्रयास नहीं करना पड़ता है लेकिन अच्छे विचार सोचने के लिए हमें बहुत प्रयास करने पड़ते हैं। जब हम परिवर्तन लाना प्रारंभ करते है तब हमें युद्ध लड़ना पड़ता।

हमारा मन युद्धभूमि है और शैतान को अपने बुरे कामों को पूरा करने का मार्ग हमारे विचार हैं। यदि हम महसूस करते हैं कि हमारा अपने विचारों पर कोई अधिकार नहीं है शैतान हमें फंसा लेगा और पराजित करेगा। इसलिए हमें ईश्वरीय विचारों को सोचने का निर्णय लेना है। हम लगातार चुनाव करते हैं। यह चुनाव कहाँ से आते हैं। वे हमारे वैचारिक जीवन में ही उत्पन्न होते हैं। हमारे विचार ही हमारे शब्द और व्यवहार बनते है।

परमेश्वर ने हमें चुनाव करने का सामर्थ दिया है—कि हम गलत सोच पर सही सोच को चुने। परंतु जब हम सही चुनाव करते है, तो हमें उस सही चुनाव पर कायम रहना है। यह एक बार और हमेशा का निर्णय नहीं है लेकिन यह आसान होता जाता है। जितना अधिक हम स्वयं को परमेश्वर के वचन को पढ़ने, प्रार्थना, स्तुति, और अन्य विश्वासियों की संगति से भरेंगे, हमारे लिए आसान होता जाएगा कि हम अच्छे विचारों का चुनाव करें।

मेरा यह कहना ऐसा लग सकता है मानो मैं कह रही हूँ कि मसीही जीवन एक लगातार संघर्ष के अलावा और कुछ नहीं है। यह आंशिक रूप से सच है लेकिन यह कहानी का एक टुकड़ा मात्र है। बहुत से लोग विजयी मसीही जीवन जीना चाहते हैं किन्तु लड़ाई लड़ना नहीं चाहते हैं। विजय का अर्थ है जीतना या बाधाओं पर विजय पाना। हमे यह भी स्मरण रखना है कि विजय में जीवन जीने का चुनाव करने से परमेश्वर के साथ अनाज्ञाकारिता के साथ जीना कठिन है। हाँ, संघर्ष तो है परंतु अंत में सफलता प्राप्त होती है।

सही रीति से सोचने के लिए अभ्यास की आवश्यकता है। और यह हमेशा आसान नहीं होता है न ही यह हमारे लिए स्वाभाविक है कि हम भली बातों पर ही ध्यान लगाएँ। पर यदि हम जान लेते हैं कि यह अभी और अनंतता के लिए जीवन का मार्ग है तो अच्छे और सकारात्मक विचारों को सोचने का प्रयास उपयोगी होता है।

जब हम पर भय और संदेह की बमबारी होती है तो हमें दृढ़ रहने की आवश्यकता होती है। हमे फिर कभी यह नहीं कहते है कि ‘‘यह मेरे बस की नहीं है। हमें विश्वास कर यह कहना चाहिए कि परमेश्वर मेरे साथ है और वह मुझे सामर्थी जीतने योग्य बनाता है‘‘। प्रेरित पौलुस ने इस प्रकार कहा, ‘‘परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें जयवन्त करता हैय इसलिए हे मेरे प्रिय भाईयों, दृढ़ और अटल रहो और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ क्योंकि यह जानते हो कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नही है।'' 1 कुरिन्थियों 15ः57—58। न सिर्फ हम चुनाव कर सकते हैं परन्तु हम चुनते हैं। अपने मन से बुरे विचारों को बाहर न निकालने के द्वारा हम उन्हें हमारे अंदर बैठने देते है और उनकी गुलामी करते हैं। बुरे का त्याग कर भले का चुनाव करने सीखनें में समय लगता है। यह आसान नहीं होता, किन्तु हम तब सही दिशा में बढ़ रहे है जब हम सही चुनाव करते और उत्तरदायित्व लेते हैं।

सामर्थी परमेश्वर, मुझे स्मरण दिला कि मैं प्रतिदिन चुनाव कर सकती हूँ। मुझे अपने विचारों पर निगाह रखने में और शैतान को पराजित करने वाले विचारों को ही चुनने में सहायता कर। यीशु के नाम में, आमीन।

पवित्र शास्त्र

दिन 99

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/