मन की युद्धभूमिनमूना
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नाजुक मन
क्या कभी आप ऐसे व्यक्ति से मिले हैं जिस के पास सन्देह करने का वरदान था? वे हर कहीं है, कलीसिया में भी। हाल ही में मैंने एक व्यक्ति को अपनी कलीसिया के एक ऐसी महिला के बारे में बात करते हुए सुना। उसने कहा, ऐसा लगता है कि वह हमेंशा दूसरों के बारे में बुरा ही सोचती है। यदि कोई किसी के बारे में उदारता पूर्वक कुछ करता तो वह कहती वह इसमें क्या फायदा चाहता है? मैं अनुमान लगाती हूँ कि वह चाहता कि हम सब उठके उसके सामने झूकें और उसे धन्यवाद दें।
एक अवसर पर किसी ने कहा कि कलीसिया का कोई व्यक्ति कैसे मित्रता का व्यवहार करता है, वह कैसा खुश रहनेवाला इनसान है। यह उसका लोगों को दिखाने का चेहरा है, महिला ने कहा। वह हमेशा मुस्कुराता है, परन्तु मैं शर्त लगा सकती हूँ, जब वह अपने घर लोगो से दूर होता है तो ऐसा नहीं मस्कुराता है।
उसने कहना जारी रखा कि यदि कोई उस महिला की या उसके आलोचनात्मक स्वभाव के बारे में या उस पर टोकता, तो वह यह कहने के द्वारा उस पर प्रतिक्रिया दिखाती, मैं अक्सर जैसे चीजों को देखती हूँ वैसे ही बोलती हूँ। तुम हमेशा चीजों को और अच्छा बनाने का प्रयास करते हो जितना वे नहीं हैं।
उस व्यक्ति ने अतः समझ लिया कि इस महिला की आस पास रहना अच्छा नहीं है। और वह जितना संभव हो सके उतना दूर रहने लगा। मैं विश्वास करती हूँ कि इस व्यक्ति ने एक अच्छा निर्णय लिया। सेवकाई में मेरे इतने वषोर्ं के दौरान मैंने यह पाया है कि ऐसे आलोचनात्मक आत्मा के साथ जब कोई समूह में या सभा में आता है, तो बहुत जल्द ही दूसरे लोग भी उसके प्रभाव में प्रभावित हो जाते हैं। यह कहावा मुझे स्मरण दिलाती है कि एक मरी हुई मछली सारे तलाब को गन्दा कर देती है।
पीछले वषोर्ं में मैं ऐसे लोगों से मिली हूँ जो इस महिला के समान थे। वे अक्सर अपने दोषी ठहरानेवाले स्वभाव, आलोचनात्मक आत्मा और सन्देही मन के द्वारा यातनाग्रस्त होते थे। वे अपने शब्दो के द्वारा बहुत से संबन्धों को नाश करते हैं।
मत्ती 7:18 कहता है यह बुरे फल हमें पेड़ के बारे में बहुत कुछ बताते हैं। परन्तु यह हमें न्याय करने का अधिकार नहीं देता है। हमें यह अवश्य ही स्मरण करना चाहिये कि कोई भी सिद्ध नहीं है। हम में से प्रत्येक उन्नति करनेवाले कार्य हैं। जब कि यह बुद्धिमानी है कि हम ऐसे लोगों से निकट संबन्ध न रखें। हमे इस बात में भी सावधान होना चाहिये कि हमें अपने स्तर और विश्वास के अनुसार उनका न्याय नहीं करना चाहिए। हमें उनके लिए प्रार्थना करना और ईश्वरीय स्वभाव रखना चाहिये। एक प्रेमी और चिन्ता करनेवाले मसीही का भाग बनना यह समझना है कि लोग ठीक उस तरीके से सोचते नहीं होंगे, जैसा हम सोचते हों। हम सब एक समान मसीही परिपक्व नहीं हैं परन्तु हम निश्चिन्त हो सकते हैं कि परमेश्वर हम में से प्रत्येक के बारे में सब कुछ जानता है। हमें सब न्याय केवल उस धर्मी न्यायी यीशु मसीह पर छोड़ देना चाहिये।
याकूब लिखता है, ‘‘हे भाइयो, एक दूसरी की बदनामी न करो। जो अपने भाई की बदनामी करता है या अपने भाई पर दोष लगाता है, वह व्यवस्था की बदनामी करता है और व्यवस्था पर दोष लगाता है, तो तू व्यवस्था पर चलनेवाला नहीं पर उस पर हाकिम ठहरा। व्यवस्था देनेवाला और हाकिम तो एक ही है, जो बचाने और नाश करने में समर्थ है। पर तू कौन है, जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाता है?'' (याकूब 4:11—12)।
पौलुस कहता है, ‘‘तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या उसका गिर जाना उसके स्वामी से ही संबन्ध रखता है; वरन वह स्थिर ही कर दिया जाएँगा, क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।'' (रोमियों 14:4)।
प्रिय स्वर्गीय पिता, दूसरों की आलोचना करने के लिये मुझे क्षमा कीजिये। मैं जानती हूँ कि केवल तू ही अपने सन्तानों को न्याय करने के योग्य है। मेरी सहायता कर कि मैं स्मरण करूँ कि मैं और हम सब को अपना हिसाब तुझे देना है और केवल तुझे ही। प्रभु यीश मेरी सहायता कर कि मेरे जीवन में अच्छा फल लाऊं जो तुझे महिमा दे। आमीन।।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
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जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/