मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 59 का 100

सब्त का विश्राम

पुरानी वाचा की अन्तर्गत परमेश्वर अपने लोगों से अपेक्षा रखता था कि वे प्रत्येक सप्ताह सब्त का पालन करें। शुक्रवार की सूर्यास्त से शनिवार की सुर्यास्त तक कोई भी काम नहीं करना था। यह उनके लिये विश्राम का संकेत था। पुराना नियम में वह कहता है, कि उसने छः दिन में संसार को बनाया और सातवें दिन अपने कार्य से विश्राम लिया।

इब्रानियों के लेखक ने सब्त के विषय में यह विचार रखा कि यह परमेश्वर के लोगों को मिलनेवाले कहने का एक तरीका है। अध्याय तीन में उसने इस्राएल के अविश्वास के बारे में लिखा और भजन 95ः11 का उद्धरण दिया। ‘‘इस कारण मैंने क्रोध में आकर शपथ खाई कि ये मेरे विश्रामस्थान में कभी प्रवेश न करने पाएँगे।'' (भजन 95ः11)। ‘‘तब मैंने क्रोध में आकर शपथ खाई, कि वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएंगे। हे भाइयों, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो जीवत परमेश्वर से दूर हट जाए।'' (इब्रानियों 3ः11—12)।

इब्रानियों की पुस्तक यह स्पष्ट करती है, यद्यपि पुराने इस्राएल ने परमेश्वर को अपने जीवन प्रतिदिन काम करते हुए देखा, और मन्ना और पानी और अन्य सभी जरूरतों के लिए परमेश्वर के सभी ईश्वरीय प्रबन्ध का आनन्द उठाया। परन्तु उन्होंने विश्वास नहीं किया। इस्राएली लोग विश्राम में अर्थात सब्त में प्रवेश नहीं कर सके।

इब्रानियों 4ः1 स्पष्ट करता है कि सब्त का विश्राम या परमेश्वर की शान्ति सभी विश्वासियों के लिये उपलब्ध है। हर विश्वासी के लिये सुभअवसर है, कि वह चिन्ता करने और व्याकुल होने से इनकार करे। विश्वासी के रूप में हम परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश कर सकते हैं। प्रतिज्ञा अपरिवर्तनीय है। खतरा यह है कि हम वहां तक पहुँचने में पराजित हो जाएँ, अविश्वास और अनाज्ञाकारिता के कारण।

लेखक विश्राम शब्द का इस्तेमाल यह बताने के लिए कर रहा है, कि यह काम करने से काम नहीं करने से भी बढ़कर है। यह हमारे मनों को परेशानी में डालनेवाली बातों से अलग रखने पर भी लागू होता है। दूसरे शब्दों में सब्त या विश्राम में प्रवेश करने के लिए हमें अवश्य ही किसी ऐसी बातों को अपने मन में प्रवेश करने से रोकना चाहिए, जो हमें परमेश्वर की शान्ति का पूर्ण आनन्द उठाने से रोकती हो।

यह रोचक नहीं है कि यद्यपि इस्राएलियों ने लगातार दस आज्ञाओ को पढ़ा और महसूस किया कि वे व्यवस्था का पालन कर रहे हैं, वे या तो परमेश्वर क्या कह रहा है, उसे प्राप्त नहीं कर पाए। यह बहुत सम्भव है कि उन्होंने विश्वास नहीं किया। परमेश्वर ने उनसे कार्य नहीं करने के लिये कहा, केवल इतना ही नहीं, वे चाहते थे कि वे कुछ विश्राम करे। वे अपने व्यस्त जीवन के दिनचर्या से हटें और उसके अद्‌भूत प्रबन्ध को प्रतिविम्बत करते हुए सब्त का विश्राम लें।

मैं कुछ लोगों को जानती हूँ और मैं निश्चय हूँ, और आप भी जानते हैं जो साल की प्रत्येक दिन काम करते हैं। वे आराम करने से डरते हैं मानो वे सम्पत्ति को खो देंगे कि वे अपने जरूरतों के लिये अच्छा प्रबन्ध नहीं कर पाएँगे। कुछ लोग अलग से कमाई के लिये दो या तीन शायद जॉब भी करते हैं। यद्यपि उन्हें वास्तव में पैसे की आवश्यकता नहीं होती है। वे सोचते हैं कि यदि वे जीवन में कुछ और चीजें इकट्ठा कर लें तो और ज्यादा खुशी और आनन्द उन्हें प्राप्त होगा।

जल्द या बाद में वे समझ जाते हैं कि शान्ति इस प्रकार से नहीं आती है। सब्त या विश्राम परमेश्वर का यह कहने का तरीका है, मैं प्रभावी हूँ, यदि तुम मुझ पे भरोसा करोगे तो मैं तुम्हारी चिन्ता करूंगा। और हम कैसे परमेश्वर पर भरोसा रखते हैं? एक तरीका यह है कि हम परमेश्वर को समझना। एक तरीका यह है कि हम निश्चित रूप से इस चीज को पहचानना शुरू करते हैं, कि परमेश्वर हमारे साथ है और अपने मन को इस बात के समझने के महत्व को समझना प्रारम्भ करते हैं। बिल के भूगतान या पर्याप्त भोजन की विषय में चिन्तित या व्याकुल होने की आवश्यकता नहीं है। जब तक हम इन चीजों के बारे में चिन्ता करते और व्याकुल होते हैं, हम परमेश्वर के सब्त में विश्राम नहीं किए होते हैं।

मैं यह सलाह नहीं दे रही हूँ कि लोग अपनी नौकरी छोड़ दें और बैठ कर परमेश्वर की भलाई को ही देखते रहें। मैं विश्वास करती हूँ कि हमें कठिन परिश्रम करना है, और परमेश्वर ने जो हमें दिया है उसका सही उपयोग करना है। परन्तु अन्ततः यह परमेश्वर का प्रेम, उसकी शान्ति और उसका प्रबन्ध है जो हम देखते हैं। शैतान फुसफुसाएगा। यह हम पर निर्भर है, यह हमे हीे करना है। लेकिन यदि हम एक बार सब्त के विश्राम में प्रवेश करते हैं, तो हम जानते हैं कि परमेश्वर ही प्रबन्ध करनेवाला है। और हम निश्चित ही विश्राम पाएँगे और जीवन का आनन्द उठाएँगे।

‘‘इस्राएल का पवित्र मुझे क्षमा कर। बहुधा मै चिन्तित होता हूँ और पर्याप्त न होने का विषय में परेशान भी होती हूँ। तू मेरा परमेश्वर है, तू मुझे हमेशा निश्चिन्त करता है कि मेरी जगह पे तू ही होंगी। मेरी चिन्ता तेरी सब्त में प्रवेश करने से है और तेरी उपस्थिति में आनन्द उठाने से है। यीशु मसीह के नाम से सब्त के विश्राम में मुझे जीने की योग्य बना। आमीन।''


पवित्र शास्त्र

दिन 58दिन 60

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/