परमेश्वर की सामर्थ और उपस्थिति का अनुभव करना नमूना
जब समस्याएँ विशाल दिख पड़ती हैं
एल एल्योन का शाब्दिक अर्थ है “सर्वोच्च परमेश्वर।” यह परमेश्वर के रचयिता और सारे जगत की देखरेख करने वाला होने को संदर्भित करता है, इस बात को मानते हुए कि वह हर एक व्यक्ति, सामर्थ, पद, और समस्या पर सर्वोपरि है। अतः जब आसाप ने परमेश्वर को भजन 77:10 में एल्योन कहकर सम्बोधित किया, तो वह एक अति शक्तिशाली बात को बोल रहा था। वह अपने आप को स्मरण करवा रहा था कि उसका परमेश्वर उन देवी-देवताओं के समान नहीं था जिनमें कनानी लोग की आस्था थी कि वे उनके नगरों पर और प्रकृति की स्थानीय शक्तियों पर शासन किया करते थे। आसाप अपने मन को एक नवीन और सच्चे दृष्टिकोण पर प्रशिक्षित कर रहा था जो परमेश्वर के महान् कामों और उसके तरीकों के प्रति जागरुकता पर आधारित था।
आसाप यहीं पर नहीं रुक गया था। उसने इस बात पर भी विचार किया - “चमत्कारों को करने वाला परमेश्वर (पद 14)। उसने परमेश्वर की “सामर्थी भुजा” की कल्पना की (पद 15)। उसने स्मरण किया कि जब-जब परमेश्वर के लोगों को सहायता की आवश्यकता हुई, तो कैसे परमेश्वर ने उसकी सहायता की—जल दो भाग हो गया, आकाश थरथरा उठा, और पृथ्वी हिल गई (पद 16-18)। वह अपने विचारों को परमेश्वर की मूल विशेषताओं पर लेकर आता है: उसकी पवित्रता, उसकी सामर्थ्य, और वह प्रेम और तरस जो उनको छुड़ा लेने हेतु उसे विवश करता है। अपने गहन निराशा में, आसाप ने अपने मन को अत्यन्त सख्ती से परमेश्वर की इस विशेषता पर स्थिर किया कि वह लोगों को बाहर निकालता है। उसके लिए कुछ भी अत्यन्त कठिन नहीं है।
जिस समय आप उदास होते हैं तब मिट्टी के ढेर भी पहाड़ सरीखे लगते हैं। जब आप आराधना में दृढ़ रहते हैं तब यह मिट्टी के ढेर अपने सामान्य आकार में आ जाते हैं, और आप के हृदय और मस्तिष्क में परमेश्वर उन पर पर दृढ़ता से खड़ा हो जाता है। दृष्टिकोण एक असाधारण बदलाव को लेकर आता है। हमारी आँखों के बिलकुल पास में रखी हुई समस्या बाकी सब चीजों को हमारी नजरों से छिपा देती है। यदि आप किसी भी अन्य भी चीज को देख पाते हैं तो आप उसे उस समस्या के पारदर्शी शीशे के माध्यम से देख पाते हैं। आसाप यह परिभाषित करता है कि वापस जाकर सही दृष्टिकोण से देखना किसके समान है। निराशा के लिए आशा ही एक शक्तिशाली तोड़ है, परन्तु यह आपको तब तक प्राप्त नहीं होगी जब तक कि आप यह न जान लें कि परमेश्वर एक बड़ा परमेश्वर है और उसकी तुलना में समस्याएँ एक छोटा सा अक्षर हैं।
भजन 77 का आरम्भ विराट समस्याओं और एक छोटे से परमेश्वर के साथ होता है। और इसका समापन एक विराट परमेश्वर और छोटी समस्याओं से होता है। इसी प्रकार से दृष्टिकोण कार्य करता है। इसी प्रकार से हमारी आशा को पुनर्जागृत किया जाया है। और इसी प्रकार से निराशा की शक्ति क्षीण होती है। हर एक बात, यहाँ तक कि बुरी से बुरी समस्याएँ और पीड़ा भी, परमेश्वर के सम्मुख में उस समय घुटने टिका देती है जब हम जान जाते हैं कि वह वह कौन है।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
आपको चोट लगने पर ,परमेश्वर कहाँ होते हैं ? समस्याओं में,उसे कैसे महसूस कर सकते हैं? वह दुविधाओं और भय को कैसे स्पष्टता और शान्ति में बदल देता है ? अनेकों भजन क्लेशों से प्रारंभ होकर परमेश्वर की उपस्तिथि और सामर्थ्य पे समाप्त होते हैं। उनकी शिक्षाओं को सीखने और पालन करने से, हमारी गवाही भी उनके समान हो जाती है। हम गहन आवश्यकताओं में परमेश्वर को पा सकते हैं।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए एज पर लिविंग को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://livingontheedge.org/