परमेश्वर की सामर्थ और उपस्थिति का अनुभव करना नमूना
जब आप मायूस होते हैं।
मैं इस बात को स्वीकार करता हूं। मैं मायूस हुआ हूं। जब हम बाइबल के उन प्रमुख पात्रों को देखते हैं जो अपने जीवन में घोर अन्धकारमय व निराशाजनक समय से होकर गुजरे हैं जैसे कि- दाऊद, योना, एलिय्याह, यिर्मयाह और दूसरे लोग- इन सभी के जीवन में मायूसी एक सामान्य चर्चा का विषय नज़र आता है। दुर्भाग्यवश इसे विसंगति के रूप में देखा जाता है। लेकिन ज्यादा तर लोग अपने जीवन में, तनाव, थकान, निरूत्साह, प्रेरणा के अभाव को जिसके कारण रिश्ते टूट जाते हैं या गहन निराशा को महसूस करते हैं। मैं ने अपने जीवन में तब तक एक लम्बा समय सुन्न अवस्था, थकावट, नीरसता में बिताया है, लेकिन मैं ने अपने कदमों को पीछे खींचा,आराम किया, और मुझे आशा की किरणें फिर से दिखाई देने लगीं। इस पतित संसार में इस प्रकार के अनुभव असाधारण नहीं हैं।
परमेश्वर का वचन हमें हमारे जीवन के हर एक पहलू और उनमें महसूस किये जाने वाली वेदनाओं को दिखाता है। उनमें से एक वेदना को हम भजन संहिता 77 में पढ़ते हैं। वह केवल मनुष्य की वेदना या दुःख को ही नहीं दर्शाता वरन उससे बाहर आने का मार्ग भी दिखाता है। यह हमें सिखाता है कि जब हम में उठ खड़े होने की ताकत नहीं होती तो हमें प्रहार कैसे करना चाहिए। परमेश्वर हमें कोई चमत्कारी उपचार या हमारे हाथों में कोई जादूई छड़ी नहीं पकड़ाताः मायूसी या निराशा एक जटिल विषय है, और वह लोगों की इस समस्या से कई तरीकों से बाहर आने में मदद करता है। लेकिन यह भजन हमें कुछ ऐसे सिद्धान्तों के बारे में बताता है जो उन सभी लोगों में सामान्य हैं।
इस भजन का लेखक, आसाप, भजन की शुरूआत परमेश्वर को पुकारने के द्वारा करता है (पद 1-3) लेकिन वहां से हम एक महत्पूर्ण प्रगति को देखते हैं: परमेश्वर को पुकारने से लेकर बीते काल में परमेश्वर द्वारा दी गयी आशीशों का स्मरण (पद 4-6) उसके बाद वह परमेश्वर से कठोर प्रश्न पूछता है (पद 4-6) वह हमारे विचारों को पुनः दिशा देने के लिए प्रार्थना करता है ( पद10-12) वह परमेश्वर को बड़ा और समस्याओं को छोटा करके देखने का चुनाव करता है (पद 13-18) और उसके बाद वह परमेश्वर को अपना उद्धारकर्ता करके मानता है। नजरिये को परिवर्तित करने वाली यह प्रक्रिया हमारे दिमाग और हमारी आत्मा को सोचने और भिन्न तरीके से देखना सिखाती है। जब हम अपने जीवन में इस सोच को बदलने की प्रक्रिया को काम करने देते हैं तो प्रायः निराशा गायब होती चली जाती है।
निराशा एक ठण्डी, अन्धियारी गुफा के जैसी लगती है जिसके अन्त में कोई प्रकाश नहीं होता है। दिमाग बड़ी आसानी से यह स्वीकार करने लगता है कि चीजें या परिस्थितियां बुरी हैं और वह इस निष्कर्ष पर पहुंच जाता है कि भविष्य में भी सब ऐसे ही होने जा रहा है।
केवल अन्धकार से ज्योति की ओर, वर्तमान परिस्थितियों से पुराने समय में परमेश्वर की दया, परेशानियों से प्रतिज्ञाओं की ओर दिशा निर्धारण हमें बाहर निकाल सकता है। आसाप के समान, हम भी सोचने के लिए समय निकालते हैं और अलग अलग बातों पर विचार करते हैंः “मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा।”( पद 12) हमारे विचारों को पुनः दिशा निर्धारित करने का यह चुनाव, चाहे हमें महसूस हो या ना हो, हमारे नज़रियें को बदल देता है। और अन्धकार ज्योति को रास्ता प्रदान करने लगता है।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
आपको चोट लगने पर ,परमेश्वर कहाँ होते हैं ? समस्याओं में,उसे कैसे महसूस कर सकते हैं? वह दुविधाओं और भय को कैसे स्पष्टता और शान्ति में बदल देता है ? अनेकों भजन क्लेशों से प्रारंभ होकर परमेश्वर की उपस्तिथि और सामर्थ्य पे समाप्त होते हैं। उनकी शिक्षाओं को सीखने और पालन करने से, हमारी गवाही भी उनके समान हो जाती है। हम गहन आवश्यकताओं में परमेश्वर को पा सकते हैं।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए एज पर लिविंग को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://livingontheedge.org/