मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 15 का 100

दोषी न ठहराना

‘‘मुझे और अच्छी रीति से पहचानना चाहिये था।'' सिंडि जोर जोर से रोने लगी। ‘‘इस बात के सारे संकेत थे कि वह पुरूष मेरे लिये नहीं है।'' उसने दो साल के दुःखदायी वैवाहिक जीवन को बिताया था। उसे शारीरिक और शाब्दिक पीड़ा झेलनी पड़ी थी। और तब उसका पति उसे छोड़ कर दूसरी महिला के पीछे चला गया। तब वह अपने आप को दुगुना दोषी ठहराने लगी। उस पुरूष से विवाह करने के फैसले को वह दोष देने लगी और अपने विवाह को बचाने में असफल रहने को भी वह दोषी ठहराने लगी।

‘‘यदि मैं एक अच्छी मसीही होती तो मैं उसे बदल सकती थी।'' उसने दुख भरे शब्दों में कहा।

मैं उस से कह सकती थी ‘‘हाँ, तुमने उन संकेतों को देखा, लेकिन उनको नजर अंदाज किया। तुमने ही इन कठिनाइयों को अपने ऊपर बुलाया है।'' मैंने उस से ऐसे शब्द नहीं कहे और न ही कहती। इस प्रकार के शब्द सिंडि की सहायता नहीं करते। उस समय आवश्यक यह था कि मैं उसे हाथ बढ़ाकर सांत्वना देती। वह अपने आपको इतना अधिक दोषी ठहरा रही थी, कि अन्ततः उसने पूछा, ‘‘क्या परमेश्वर मुझे माफ करेगा?''

प्रारम्भ में उसके शब्द मुझे परेशान करने लगे थे। बाइबल इस बात में स्पष्ट है कि परमेश्वर प्रत्येक पाप को क्षमा करता है। सिंडि बाइबल जानती थी इसलिये उसका यह प्रश्न बाइबल की जानकारी के कमी के कारण नहीं था यह एक प्रेमी और संभालनेवाले परमेश्वर में उसके विश्वास की कमी के कारण था। उसने अपने आपको तिरस्कृत पाया और नहीं जानती थी कि परमेश्वर उसे इतना प्यार करता है कि उसे क्षमा करे।

मैंने सिंडि को परमेश्वर की क्षमा के बारे में निश्चय दिलाया, लेकिन उसकी वास्तविक समस्या यह नही थी। शैतान ने उसके मन में बहुत समय से फुसफुसाया था कि उसने जानबूझ के परमेश्वर की आज्ञा का उलंघन किया। परमेश्वर उससे गुस्सा है।

‘‘शैतान अब हमारे विरूद्ध अपने हर मौके को इस्तेमाल करता है। मैं हमेशा एक बच्चे का उदाहरण देती हूँ जो चलना सीखता है। हम यह अपेक्षा नहीं करते हैं कि बच्चा पहले ही दिन किसी वयस्क व्यक्ति के समान खड़ा हो जाये और चले। यह छोटे बच्चे बार बार गिरेंगे और कभी वे रोएँगे। लेकिन पुनः वो अपने पैरों पर खड़े हो जाएँगे। यह कुछ जन्म जात विशेषता हो सकती है। पर मेरा शक है कि यह इसलिये होता है कि माता—पिता वहाँ पर है और कहते हैं, हाँ तुम कर सकते हो। उठो बेटा, उठो, तुम चलो।''

आत्मिक दुनिया में भी ऐसा ही होता है। हम सब गिरते हैं। लेकिन जब हमें उत्साहित किया जाता है, हम उठते हैं और फिर से प्रयास करते हैं। यदि हमें उत्साहित नहीं किया जाता तो हम वहीं पे पड़े रहते और काफी समय तक इन्तजार करते हैं, कि हम फिर से उठकर प्रयास करें।

कभी भी शैतान को वास्तविकता से कम न आँके। वह हमें गिराने को भरसक प्रयास करता है और वह दोषी ठहराने का प्रयास करता है कि हम फिर कभी नहीं उठना चाएँगे। वह जानता है कि एक बार यदि आपने सही विचारों को चुन लिया तो उसका नियंत्रण फिर आपके ऊपर से चला जायेगा और आप बुरे विचारों को त्याग देंगे। वह आपको गलत सोच से चोट पहुँचाना चाहता है। वह दोष और निराशा से आप पे अड़चन डालने का प्रयास करेंगा।

मैं आपको बताना चाहती हूँ कि सिंडि ने क्या किया। उसने रोमियों 8रू1 को तीन 3/5 के कार्ड़ पर लिखी और अपने आईने पर एक कागज को लगा दी, एक अपने कमप्यूटर पर और एक अपने अलमारी पर। जब भी उसके निगाह उस पर पड़ती तो वह उसे जोर से दोहराती। ‘‘अतः अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं। (क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते है)।

रोमियों 8:1—2 का सन्देश इस प्रकार से है—यीशु के आगमन से मसीह, वह महत्तवपूर्ण दुविधा समाप्त हुआ। जो लोग मसीह— हमारे—लिये—है, में प्रवेश करते हैं उन्हे लगातार काले बादलों में जीने की आवश्यकता नहीं है। एक नया सामर्थ कार्य में है। मसीह में जीवन की आत्मा, जो एक शक्तिशाली आन्धी के समान है, उसने अद्‌भूत रीति से हवा को शुद्ध कर दिया है, जो पाप और मृत्यु के कठिन और दुरूखदायी दुर्दशा से हमें स्वतन्त्र कर दिया है।

हम मसीह यीशु में स्वतंत्र हैं, और हमें शैतान के दोषी ठहराने पर ध्यान नहीं देना है। जब हम हारते हैं, और हारेंगे उसका यह तात्पर्य नहीं हैं, कि हम असफल है। इसका मतलब है कि हम किसी कार्य में एक बार असफल हुएँ। इसका मतलब है कि हमने सब कुछ सही नहीं किया हैं। यह हमें असफल नहीं करता है। 

आपके कमजोरी में मसीह को सामर्थी बनने दीजिये। आपके कमजोर दिनों में उसे आपका सामर्थ बनने दीजिये। 

‘‘प्रभु यीशु मसीह, तेरे नाम में मैं विजय के लिये प्रार्थना करती हूँ। जब मैं पराजित होता हूँ, तब मुझे स्मरण दिलाएँ कि तू केवल क्षमा ही नहीं करता है। लेकिन तू दोष और अपराध को भी पोंछकर साफ कर देता है। मेरे धन्यवाद को ग्रहण करें। आमीन।''


पवित्र शास्त्र

दिन 14दिन 16

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/