मन की युद्धभूमिनमूना
![मन की युद्धभूमि](/_next/image?url=https%3A%2F%2Fimageproxy.youversionapi.com%2Fhttps%3A%2F%2Fs3.amazonaws.com%2Fyvplans%2F11206%2F1280x720.jpg&w=3840&q=75)
सब बातों में भलाई
मसीहियों के बीच में यूहन्ना 3:16 और रोमियों 8:28 सब से अधिक बोले जानेवाला पद है। पौलुस के शब्द हम मे से बहुतों को कठिानाई और परेशानियों के समय शान्ति और सात्वना देता है। वे हमें आशा देती हैं, चाहे कोइ भी बात हमें परेशान या निराश या चोट पहुचाई हो। अनन्त सब कुछ भला ही होगा।
रोमियों 8:28 के ......दोनो पद प्रार्थना के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि जब हम नहीं जानते हैं कि कैसे प्रार्थना करना चाहिये, पवित्र आत्मा हमारे जीवन में आता है और हम में से होके प्रार्थना करता है। और इन पवित्र आत्मा से भरे हुए प्राथनाओं के कारण सारी बातें मिलके भलाई को ही उत्पन्न करती है, चाहे वह कुछ भी हो। हमारे साथ होनेवाले हर बातें भली नहीं होती हैं। लेकिन परमेश्वर भला है, और परमेश्वर इन बातों को हमारी भलाई के लिये ही कर सकता है, यदि हम उस पर विश्वास करें।
दुख और अन्याय के समय में विजय पाने का रहस्य है परमेश्वर पर लगातार भरोसा रखना। विश्वास और प्रार्थना परमेश्वर के हाथ को कार्य में लाता है। यदि हम लगातार विश्वास करते हैं, तो वह प्रतिज्ञा करता है कि लगातार वह हमारे भलाई के लिये सब कुछ करता रहेगा।
परमेश्वर उनसे प्रतिज्ञा करता है जो उनसे प्रेम करते और उसकी योजना के अनुसार बुलाए गए हैं। हमें परमेश्वर से अवश्य प्रेम करना चाहिये। हमें परमेश्वर से सारे हृदय और सारे मन के साथ अवश्य प्रेम करना चाहिये, और हमें उसकी इच्छा को अवश्य पाना चाहिये। हमें उसकी योजना के प्रति अपने आपको हमेंशा समर्पित करने की इच्छुक होनी चाहिये।
हमारे लिये परमेश्वर की जो योजना है वह हमें क्रमशः उसकी स्वरूप में बदलता जाता है। हमारी मंजील उसकी स्वरूप में बदलना है। यह आत्मिक लगता है लेकिन वास्तव में यह चोट पहुँचाने वाली बात है। मैं अक्सर मिट्टी के बारे में सोचती हूँ, जिसे कुम्हार पीसता है, मोड़ता है। यदि उनके अन्दर भावनाएँ होती, तो वह कैसे महसूस करती। एक भिन्न स्वरूप में बदल देना निश्चय ही दुख दायक होगा। यदि हम एक मिटटी का गोला लें और उसे दूसरे स्वरूप में मोड़े, तो उसमे दबाने के लिए मिटटी ज्यादा होता है, और उसमें से कुछ तुकडों को फेकना पड़ता है। मैंने पाया कि यीशु मसीह के स्वरूप में मेरी बहुत सारी बातें उसमें नहीं बस्ते। इसलिए मेरी बहुत सारी विचार, शब्द और गतिविधियों को निकालना पड़ा।
हमे कठिन बातों से होकर अवश्य गूजरना है और सीखना है कि कैसे हम उन बातों के प्रति यीशु के समान प्रतिक्रिया दे सकते हैं। हमें भयभित होनेवाले विचार और भावनाओं को अपने ऊपर आक्रमण करने नहीं देना चाहिये। हमें स्थिर रहना सीखना है, यह जान कर कि जैसे भी बातें अब दिखती हों, परन्तु परमेश्वर उन्हें हमारी भलाई के लिये इस्तेमाल करेगा और इस दौरान परमेश्वर उन बातों को हमें अच्छा बनाने के लिये इस्तेमाल करेगा।
सब बातों में परमेश्वर की योजना जो हमारे साथ होती है, वह हमें यीशु के समान बनाती जाती है। यीशु मसीह सम्पूर्ण आज्ञाकारी था। ‘‘पुत्र होने पर भी उसने दुख उठा—उठाकर आज्ञा माननी सीखी।'' इब्रानियों 5ः8।
हम भी अपने कठिन समयों से सीखते हैं। हम परमेश्वर के वचन और जीवन के अनुभवों से सीखते हैं। हमारे पापमय स्वभाव के कारण हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमेशा हर कदम पर लढ़ाई करे। लेकिन यह इस प्रक्रिया को और लंबा और दुरूखदायी बनाता है। तुरन्त आधिन होना सीखें और स्वयं को बहुत सारे दुख से बचाए। मैंने सीखा है कि परमेश्वर अन्त में रास्ता निकालता है। तो फिर हम प्रक्रिया को लंबा क्यों खींचे।
जहाँ मन जाता है, वहाँ मनुष्य जाता है। अपने मन को सही दिशा में ले जाएँ, और आपका जीवन उसके पीछे जायेगा। एक व्यक्ति जिसने अन्ततः परमेश्वर पर अपना भरोसा रखा है, वह पराजित नहीं होता है। बाइबल कहती है, कि यूसुफ के भाई उससे घृणा करते थे, लेकिन परमेश्वर उसके साथ था। परमेश्वर ने उस पर अनुग्रह किया और उसे उन्नति दी। इसलिये हम देखते हैं कि परमेश्वर पर उसका भरोसा उसे सारी परिस्थितियों से ऊपर ले गया।
वह कुछ भयानक बाते यूसुफ के साथ हुई। उसकी भाइयों ने उसे गुलामों के व्यापारियों के हाथ बेच दिया और उसके पिता से कहा कि जंगली जानवरों ने उसे मार डाला। वह उनके द्वारा धोखा पाया, जिनकी वह सेवा करता था और जिनकी वह सहायता करता था, लेकिन परमेश्वर की दृष्टि उस पर थी। परमेश्वर ने यूसुफ के लिये भली योजना रखी थी और यह पूर्णता में आया। अन्त में उसने कहा कि जो बातें उसके साथ हुई वह उसकी नूकसान की तो थी। लेकिन परमेश्वर ने उसमें भलाई सोच रखी थी।
यह बात हम सब के लिये भी सही हैं। यदि हम लगातार विश्वास करते रहेंगे कि परमेश्वर हमारे भलाई के लिये काम करता है, और हम लगातार उसके स्वरूप में बदलते जा रहे हैं, तो शैतान हमें पराजित नहीं कर सकता।
‘‘सब से बुद्धिमान और प्रेमि परमेश्वर मुझे और अधिक यीशु के समान बना। मैं दुरूख नहीं उठाना चाहती। मैं पराजित होने से घृणा करती हूँ। लेकिन यीशु मसीह के द्वारा मैं माँगती हूँ, कि मुझे सीखा और मुझे यह समझने की योग्य बना, कि तेरे कारण सारी बातें मिलकर भलाई को उत्पन्न करती हैं। आमीन।''
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
![मन की युद्धभूमि](/_next/image?url=https%3A%2F%2Fimageproxy.youversionapi.com%2Fhttps%3A%2F%2Fs3.amazonaws.com%2Fyvplans%2F11206%2F1280x720.jpg&w=3840&q=75)
जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
More
हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/