मन की युद्धभूमिनमूना
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पीड़ा पहले
”हम दुःख क्यों उठाते हैं?“ ‘‘यदि परमेश्वर सच में हम से प्यार करता है, तो हमारे साथ सारी बुरी बातें क्यों होती है?'' मैं ऐसे प्रश्न अक्सर सुनती हूँ। हजारों वषोर्ं से मुझ से भी अच्छे लोग इन प्रश्नों के साथ संघर्ष करते आ रहे हैं और उन्होंने अब तक इसका उत्तर प्राप्त नहीं किया है। मैं इन प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश भी नहीं करती हूँ। मैं एक बात कहती हूँ, ‘‘यदि परमेश्वर हमें आशीष केवल विश्वासी होने के बाद ही देता — यदि उसने सारे कठिनाईयों को, दुखों और कष्टों को मसीहियों से अलग कर दिया होता, तो क्या विश्वास में आने के लिये यह लोगों को दी जानेवाली रिश्वत नहीं होती?''
यह परमेश्वर के कार्य करने का तरीका नहीं है। परमेश्वर चाहता है कि हम उसके पास प्रेम के कारण आएँ और इसलिये कि हम जानते हैं कि हम जरूरतमंद है। हमारी आवश्यकताएँ जो केवल वही पूरा कर सकता है।
वास्तविकता यह है कि हमारी जन्म से लेकर यीशु के साथ रेहने के लिये हम घर जाने तक हमें कभी—कभी दुःख उठाना पड़ेगा। कुछ लोगों का जीवन दूसरों से अधिक कठिन होता है। लेकिन पीड़ा, पीड़ा ही होता है।
मैं यह भी सोचती हूँ कि लोग जब हमें कठिनाईयों में सहायता पाने के लिए परमेश्वर की ओर मुड़ते हुए देखते हैं और वे हमारे विजय भी देखते हैं जो उनके लिये गवाही बन जाती है। यह गवाही हमेशा उन्हें मसीह की ओर नहीं मोडती हैं, लेकिन यह हमारे जीवन में परमेश्वर की उपस्थिति को दिखाती है और उन्हें यह बात समझने में सहायता करती है कि उनके जीवन में क्या कोया हैं?
हाँ, हम पीड़ा उठायेंगे। पिछले दिन मेरे मन में एक नया विचार आयाः दुःख का परिणाम धन्यवाद होता है। जब हमारा जीवन अत्यन्त दुःखदायी हो जाता है, और हम नहीं जानते कि हमें क्या करना चाहिये। हम सहायता के लिए परमेश्वर की ओर मुड़ते हैं और वह हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है और हमें मुक्त करता है। परमेश्वर हमसे बात करता है और हमें सांत्वना देता है और परिणाम यह होता है कि हम धन्यवादी बनते हैं।
दुःख उठाने और धन्यवाद देने के बीच का समय ही हमारे विचारों पर शैतान के आक्रमण का समय होता है। वह इस तरह कहकर प्रारम्भ कर सकता है, ‘‘यदि परमेश्वर तुमसे सचमुच में प्रेम करता है, तो तुम्हें ऐसी अवस्था से नहीं गुजरना पड़ता। सच तो यह है, यदि हम विश्वासी हैं तो हमारे सामनें समस्याएँ तो आऐंगे ही। यदि हम अविश्वासी हैं तो भी हमारे सामनें समस्याएँ आऐंगी। लेकिन विश्वासी होने के कारण हमारी विजय होगी। मसीह के विश्वासी होने के कारण हम आन्धियों के बीच में भी शान्त रह सकेंगे। हम कठिनाईयों के बीच में भी अपने जीवन का आनन्द उठा सकते हैं क्योंकि हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर छुटकारे के लिये हमारे बदले में काम करता है।
शैतान का अगला आक्रमण फुसफुसाना है, ‘‘अब और अच्छा नहीं होनेवाला है। परमेश्वर की सेवा करना तुम्हारे लिये व्यर्थ हुआ। देखो जब तुम्हें सही में परमेश्वर की आवश्यकता होती है, और तुम उस पर भरोसा करते हो, तब ऐसा होता है। वह तुम्हारी चिन्ता नहीं करता। यदि वह सही में चिन्ता करता, तो यह दुख तुम्हारे जीवन में क्यों आएँ?''
यही वह समय है जब हमें दृढ़ रहना है। हम अय्यूब की कहानी से साहस ले सकते हैं। हम में से बहुत कम लोगों ने अय्यूब के समान कठिनाई भोगी होगी। उसने अपने बच्चों को खो दिया, उसने अपनी सम्पत्ति को खो दिया और वह अपने स्वास्थ्य को खो दिया। उसके आलोचक उसे पाखण्डी और धोखेबाज कहने लगे। क्योंकि हम जानते हैं कि शैतान किस प्रकार काम करता है, इसलिये हम समझ सकते हैं कि उसके मित्रगण शैतान के हथियार थे। मुझे निश्चय है कि वे नहीं जानते थे कि वे अय्यूब को निराश करने के लिये शैतान के द्वारा उपयोग किए जा रहें है। लेकिन उनके न जानने का मतलब यह नहीं है कि शैतान ने उन्हें इस्तेमाल नहीं किया।
फिर भी, अय्यूब ने जो एक इश्वरीय मनुष्य था, उनके बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने कहा, ‘‘वह मुझे घात करेगा, मुझे कुछ आशा नहीं; तौभी मैं अपनी चाल चलन का पक्ष लूँगा।'' (अय्यूब 13ः15)। उसने शैतान को अपने मन पर आक्रमण करने नहीं दिया और परमेश्वर से सवाल जवाब नहीं करने दिया। वह नहीं जानता था कि परमेश्वर ने क्या किया है। ऐसी कोई सूचना नहीं है कि अय्यूब ने इस बात को कभी समझा हो। लेकिन एक बात वह जानता था, कि परमेश्वर उसके साथ है उसने कभी भी परमेश्वर के प्रेम और उसकी उपस्थिति पर शक नहीं किया।
यही स्वभाव हमें भी चाहिये। परमेश्वर के प्रेम की वह शान्त निश्चयता, ‘‘यद्यपि वह मुझे काट डालता है, फिर भी मैं उसकी बाट जोहूँगा और उस पर भरोसा करूँगा।'' हमे समझने और व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में मैंने ऐसा कहते हुए सुना है, ‘‘आज्ञाकारिता उपेक्षित है, और समझ एक विकल्प है।''
अन्त में, यदि हम दुख उठाते हैं, तो यह एक प्रभावशाली स्मरण दिलानेवाली बात होगी, कि हम परमेश्वर के उन कुछ महान सन्तों के साथ चल रहे हैं, जो इसी मार्ग में थे। पतरस के समय में भी उन्होंने दुख उठाया। उस समय यह रोम का सताव था; हमारे समय में यह ऐसे लोगों के द्वारा हो सकता है जो इसे नहीं समझते या पारिवारिक सदस्य जो हमारे विरूद्ध उठते हैं। कुछ भी हो दुख का अन्त धन्यवाद में होना चाहिये।
‘‘मेरे स्वामी, और मेरे परमेश्वर, हमेशा एक सरल जीवन पाने की मेरी इच्छा को क्षमा करें। मैं स्वीकार करती हूँ कि मैं कठिनाई नहीं चाहती, दुःख नहीं चाहती। और जब कठिनाईयाँ आती है, तो मैं इसे पसंद नहीं करती। लेकिन मैं आपसे माँगती हूँ कि आप एक अच्छी अभिवृति लाने में मेरी मदद करे और विश्वास करती हूँ कि आप अच्छा करेंगे। मैं यीशु मसीह की नाम से प्रार्थना करती हूँ। आमीन।''
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
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जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/