मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 18 का 100

सकारात्मक मन

कभी कभी जब मैं पूलपीट के पीछे खड़ी होती हँू, तो बोलना प्रारम्भ करने से पहले मैं अपनी श्रोताओं के ऊपर एक सनसनी निगाह डालती हूँ। मैं लोगों के चहरों को देखती हूँ। मैं उनके मुस्कुराते चेहरों को देखना चाहती हूँ, जिनमे से आशा टपकती है। लेकिन उनमें कुछ ऐसे चेहरे भी होते हैं, जो निराश और हतोत्साहित दिखाई देते हैं। मैं उनके बारे में कुछ नहीं जानती और उनका न्याय भी नहीं करना चाहती। लेकिन उनके चेहरे उदास दिखाई देते हैं। वे ऐसे दिखाई देते हैं मानो उन्होंने आशा खो दी हो और उनके जीवन में कुछ भी सकारात्मक होने की संभावना नहीं हो। और बहुधा वे यही प्राप्त करते हैं, जो वास्तव में वे अपेक्षा करते हैं।

मैं उन निरूत्साहित लोगों को समझती हूँ। क्योंकि मैं भी कभी उन मे से एक थी।

यहाँ पर एक उदाहरण है जो मैंने सीखा। सकारात्मक मन सकारात्मक जीवन उत्पन्न करता है। लेकिन नकारात्मक मन नकारात्मक जीवन उत्पन्न करता है। नया नियम एक रोमी सुबेदार की कहानी का वर्णन करता है जिसका नौकर बिमार पड़ गया था और वह चाहता था कि यीशु उसे चंगाई दे। उन दिनों यह बात असाधारण सी बात थी। बहुत से लोग स्वयं के लिये चंगाई चाहते थे या फिर अपने किसी प्रियों के लिये वे चंगाई चाहते थे। लेकिन यह सुबेदार यीशु से अपने सेवक के पास आने के लिये कहने के बजाय, उसने विश्वास व्यक्त किया कि यदि यीशु कह दे तो वह चंगा हो जायेगा। (मत्ती 8ः8 देखें)। यीशु ने उसके विश्वास पर आश्चर्य व्यक्त किया और उसके सेवक को चंगा करने की अपने वचन को भेजे। इस सुबेदार के सकारात्मक मन ने उसके लिये सकारात्मक फल उत्पन्न किया। उसने चंगाई की अपेक्षा की और वास्तव में वही हुआ।

बहुधा हम यीशु से स्वयं की चंगाई के लिये दोहाई देते हैं और अपनी सम्पत्ति की चिन्ता करने के लिये या समस्याओं से छुड़ाने के लिये मांग करते हैं। लेकिन हम पूर्ण रूप से विश्वास नहीं करते कि हमारे प्रति भलाई होगी। हम अपने मनों को अनुमति देते हैं कि हम अपने नकारात्मक बातों पर, नकारात्मक पहलूओं पर अपना ध्यान लगायें। सन्देह और अविश्वास हमारे मन के विरूद्ध युद्ध करते हैं और हमारे विश्वास को छुड़ा लेते हैं, जब उनको अनुमति देते हैं।

जैसे मैंने अपने किताब, ‘‘मन की युद्ध भूमि'' में लिखा। बहुत वषोर्ं पूर्व मैं बहुत ही नकारात्मक थी। मैं कहा करती थी कि यदि मेरे मन में दो सकारात्मक विचार एक ही पंक्ति में हैं, तो मेरा मन फट जाएगा। यह अतिशय युक्ति थी। परन्तु मैं इसी प्रकार अपने स्वयं को देखती थी। मैं दूसरे लोगों के समान ही विचार धारा रखती थी। यदि हम कुछ भी भला होने की अपेक्षा नहीं करते हैं, तो ऐसा न होने पर हम निरूत्साहित नहीं होते हैं।

मैं सब से अपने जीवन की निराशाओं के बारे में वर्णन करके अपने जीवन के नकारात्मक स्वभावों का बहाना बना सकती थी, और में ऐसा करती भी थी। यह मेरे उम्मीद की कमी नहीं थी। यह इस से भी बढ़कर थी। क्योंकि मैं नकारात्मक रूप से सोचती थी, इसलिये मैं नकारात्मक बोलती भी थी। जब लोगों ने मुझ से अपनी आत्मिक विजय के बारे में कहा, तो मैं सोचती थी कि यह बहुत ज्यादा नहीं दिखेगा। जब लोगों ने अपने विश्वास के बारे में चर्चा की, तो मैं मुस्कुराती थी। किन्तु भीतर ही भीतर मैं सोचती थी कि वे धोखे में हैं। मैं अक्सर यह कल्पनाए किया करती थीं कि योजनाएँ गलत हो जाऐगी और लोग मुझे निराश करेंगे।

क्या मैं खुश थी? निश्चय ही नहीं। नकारात्मक रूप से सोचनेवाले कभी प्रसन्न नहीं रहते। यह बहुत लम्बी कहानी होगी यदि मैं वर्णन करूँ कि मैं कैसे इस वास्तविकता का सामना करी, लेकिन एक बार जब मैंने महसूस किया कि मैं एक नकारात्मक व्यक्ति हूँ। तो मैं परमेश्वर की दोहाई देने लगी कि वह मेरी सहायता करे।

मैंने सीखा कि यदि मैं लगातार परमेश्वर की वचन का अध्ययन करती रहूँ, तो मैं नकारात्मक विचारों को धक्के मारकर दूर कर सकती हूँ। परमेश्वर का वचन सकारात्मक है, ऊपर उठानेवाला है। मेरा उत्तरदायित्व था कि मैं ऐसा विश्वासी बनू जो अपने विचारों में परमेश्वर का आदर करता हो, और अपने कायोर्ं में भी परमेश्वर का आदर करता हो।

मैं समझती हूँ दाऊद की वह भावना जब दाऊद ने भजन 51 लिखा। ‘‘हे परमेश्वर, मुझ पर दया कर, अपने प्रेम के कारण।'' इसी प्रकार से वह प्रारम्भ करता है। मैंने विशेष रीति से पद 9 पर विचार किया। मेरे पापों की ओर से अपना मुख फेर ले और मेरे सारे अधर्म के कामों को मिटा डाल। मैंने दाऊद के समान पाप नहीं किया था। परंतु निश्चय ही नकारात्मक सोच और बुरा व्यवहार का पाप था। यह कमजोरी या बुरी आदत ही नहीं थी। जब मैंने नकारात्मक विचारों पर ध्यान केन्द्रित किया तो मैं परमेश्वर के प्रति विद्रोह कर रही थी।

परमेश्वर मुझ पर दया कर रहा था। जब मैंने उसके वचन और प्रार्थना के साथ समय बिताना प्रारम्भ किया, तब उसने मुझे शैतान के दृढ़ गढ़ों से छुटकारा दिया। स्वतंत्रता हम सब के लिये उपलब्ध है।

‘‘अनुग्रहकारी प्रभु, मेरे जीवन के सभी छुटकारे के लिये आपको धन्यवाद। मुझे नकारात्मक विचारों और गलत विचारों से मुक्त करने के लिये आपको धन्यवाद। मेरे जीवन के उस क्षेत्र में शैतान को परजित करने के लिये आपको धन्यवाद। आमीन।''

पवित्र शास्त्र

दिन 17दिन 19

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/