मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 16 का 100

आशाहीन

‘‘क्या फायदा?'' समीर ने मुझ से कहा। ‘‘मैंने बहुत बार परमेश्वर के काम करने के लिये प्रयास किया और उसके लिये महान कार्य करूँ। मैं कितना भी, कुछ भी करूँ अन्त में मैं पराजित ही होता हूँ।''

‘‘मैने रोज परमेश्वर के लिये समय निकालने का प्रतिज्ञा किया है।'' शमा ने कहा। इस वर्ष के लिये मेरी यही प्रतिज्ञा थी।'' उसने कहा। ‘‘अब अप्रेल आ गया है, और मैं तीन हप्तों से अपनी इस योजना से परेशान हूँ। मैं इसमें आगे नहीं बढ़ पायी हूँ। मैं अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण कामों को पूरा नहीं कर पायी हूँ।''

समीर और शमा ऐसे लोगों के दो उदाहरण मात्र हैं जो अपने आपको आशा रहित मानते हैं। वे जानते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिये, पर वे अपने इच्छा के मुताबिक कर नहीं पाते हैं।

सारे पराजयों का वर्णन करने के लिये एक मात्र रास्ता ही नहीं है। लेकिन यह दोनों विश्वासी आशा रहित हो चुके थे। उन्हें निश्चय हो गया था कि वे नहीं कर सकते हैं। मैं पहले भी कोशिश की हूँ और पराजित हो गई। उन्होंने कहा। आगे प्रयास करने के लिये कोई बात ही नहीं थी।

मैं फिर से कोशिश करूँगा और मैं फिर से हार जाऊँगा। समीर ने कहा। मुझे बहुत बुरा लगता है, मैं और क्यों बदतर महसूस करूँ?

वह नहीं जानती था कि नकारात्मक विचार और नकारात्मक शब्द हीं उसके पराजय के कारण थे। शैतान उस पर आक्रमण करना और उसे निरूत्साहित करना चाहता था। लेकिन कई काम तो वह स्वयं ही कर लेता था। अपने आशारहित व्यवहार के कारण अन्त में मेरा हार ही होता है। यह सतीश के शब्द थे। मैं अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण कामों को पूरा नहीं कर पाती हूँ। उसके कहने का यही तरीका था।

उनके स्वयं के शब्दों के द्वारा समीर और शमा ने अपने हार का जरिया ढूँढ लिया था। और उनके शब्द अकेले नहीं थे, जो उन्हें हरा रहे थे। यह उनके शब्दों के पीछे की विचार थे।

निरूत्साह, आशा को समाप्त कर देता है। पराजय आसानी से और पराजय की ओर ले जाता है। और यदि एक बार हम अपने मन को यह कहने की अनुमति देते हैं, कि ऐसा ही हमेशा होता है, तो शैतान हमारे ऊपर विजय प्राप्त कर लेता है।

मैंने समीर और शमा से अपने वैचारिक जीवन को जाँचने के लिये कहा। मैंने कहा, अपने कार्य के परिणाम या फल पर ध्यान केन्द्रित मत करों। अपने स्वभाव और वैचारिक तरीके पर पुर्णविचार करें।

जैसे जैसे हमने बातें की, यह स्पष्ट हुआ कि समीर पराजय की अपेक्षा करता था। शैतान ने पहले ही उसके मन को गुलाम कर दिया था, और निश्चय ही वह पराजित हो जाता था। उसने वही पाया जो वह अपेक्षा कर रहा था। यही बात शमा के लिये भी सच्छ थी। दोनों पराजय पर विचार करते थे और उस पर ही ध्यान केन्द्रित करते थे। वे और कुछ की अपेक्षा नहीं करते थे। वे आरम्भ से ही डरने लगते थे कि वे हार जाएँगे, और बाइबल कहती है कि जिस से हम डरते हैं वही हमारे ऊपर आ जाती है। अयूब 3:25 देखिए।

‘‘स्वयं से पूछिये'', मैने कहा, आप किस प्रकार का विचार का समर्थन करते हैं? यदि हम अपने विचारों को बदलते हैं, तो हम उसके परिणाम को भी बदल सकते हैं। शमा और समीर दोनों विश्वास करते थे कि वे हार जाएँगे। लेकिन मैं चाहती थी कि वे विश्वास करें कि वे जीतेंगे।

अगले कुछ हफ्तों में समीर ने बहुत कुछ उन्नति की। जब भी वह किसी नए प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू करता वह कहता, कार्य काफी धिमा चल रहा है, परन्तु मैं उन्नति कर रहा हूँ। कल कठिन था और मैं निरूत्साहित होने लगा था और मैं स्वयं के प्रति दया भी करने लगा। किन्तु वह केवल इसिलिये था क्योंकि मैं गलत विचार को चुन रहा था।

यही बात शमा के लिये भी सच्छ थी। उसने कहा। ‘‘अब मैं निरूत्साहित होने से इनकार करती हूँ। पिछले मंगलवार की रात को जब मैं बिस्तर पर गयी मुझे याद आया, कि मैं इतनी जल्दी मचा रही थी कि मैं परमेश्वर के साथ भी समय व्यतीत नहीं कर पायी और मैं बहुत थकी हुई थी।'' उसने परमेश्वर से कहा, ‘‘मुझे क्षमा कर'', और मेरी सहायता कर कि मै हार न मानूँ।

शमा को याद आया कि पिछले हप्ते वह एक बार हारी थी। और एक हफ्ते पहले वह दो बार हारी थी। उसने स्वयं को याद दिलाया कि वह दूसरों के प्रति विश्वासयोग्य रही है। इस बात ने उसे आशा दी। यह 100 प्रतिशत विजय नहीं है, लेकिन यह शुन्य से बहुत ही अच्छा है।

समीर और शमा इन दोनों ने अन्ततः इस शक्तिशाली सच्चाई को जाना, और हमें भी इसको जानने की आवश्यकता है। यीशु हमें दोषी नहीं ठहराता। हम स्वयं को दोषी ठहराते हैं। हम निरूत्साह और मन की शान्ति को खो देते हैं और इन बातों से अपने मन को भर लेते हैं। अब हमें इस बात के प्रति सचेत होना चाहिये कि हम इन विचारों को अपने से, दूर कर सकते हैं और कह सकते है, यीशु मसीह की नाम से मैं इसको कर सकता हूँ।

‘‘प्रभु यीशु आपकी सहायता से मैं ऐसा कर सकती हूँ। आपकी सहायता से मैं निरूत्साहित नहीं होऊँगी और आशा रहित नहीं महसूस करूँगी। आपकी सहायता से मैं शैतान के हर उन विचारों पर मैं विजय पाऊँगी जो वह मेरे मन में डालता है। विजय के लिये धन्यवाद। आमीन।''

पवित्र शास्त्र

दिन 15दिन 17

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

More

हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/