दुविधा?नमूना
"उत्कृष्टता/सिद्धता की आवश्यकता नहीं"
जब आप पहली बार महसूस करतें हैं कि परमेश्वर ने इस सारी सृष्टि की योजना, अपने सन्देश के साथ, आप तक पहुँचने के लिए की है, यह बात आकर्षक हो सकती है--और शायद हर्षोल्लास की भी। फिर तब, आपको स्मरण होता है कि आप कितने अपूर्ण हैं। जब आप परमेश्वर के निकट आना शुरू करतें हैं, तो यह एक प्राकृतिक/स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है। वह सिद्ध/पूर्ण हैं।यीशु मसीह का सुसमाचार "अच्छा समाचार" माना जाता है--और यही सुसमाचार शब्द का अर्थ है। लेकिन कटु सत्य ये है कि हम, हमारी अपूर्णता/कमियों के कारण परमेश्वर से अलग हो जाते हैं। हमारे पाप एक बीमारी की तरह होतें हैं जो हमें अलग कर देतें हैं। परमेश्वर की सिद्धता/पूर्णता के कारण, वो पाप को बिना दण्ड के जाने की अनुमति नहीं देते। उपचाररहित छोड़ दिए जाने पर, आपके पाप रोग, आपको धीरे-धीरे उस स्थान में ले जाते हैं जो खुद शैतान को दण्डित करने के लिए सुरक्षित रखा जाता है। उसे नरक कहते हैं -- अन्धकार, आग और दर्द से भरा स्थान।
अच्छी खबर ये है कि परमेश्वर की सिद्धता/पूर्णता और पवित्रता उनकी दया और करुणा से समान रूप से मेल खातें हैं। वो नहीं चाहते कि एकरुणा से समान रूपक भी व्यक्ति नरक की यातनाएँ सहे, इसलिए उन्होंने उपचार को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की। हमारे पापों के दण्ड को संतुष्ट करने के लिए, उन्होंने अपने पुत्र यीशु को हमारे स्थान पर दण्ड भुगतने की अनुमति दी। उसके बदले में, परमेश्वर ने हमें क्षमा प्रदान की -- सम्पूर्ण क्षमादान।
यदि आप यीशु का चेला बनने का चुनाव करोगे, तो आपको अपने सारे संगीर्ण पापों को बराबरी से स्वीकार करने होंगे और उसकी बहुत बड़ी क्षमा को ग्रहण करना होगा। सुसमाचार, हर जगह सभी जातियों के टूटे लोगों के लिए एक सर्वव्यापक निवेदन है। यदि आप सोचते हो कि आपके पास परमेश्वर को प्रदान करने के लिए ऐसा कुछ है जिससे अपने आपको उसके ग्रहण योग्य बनाने की और अधिक सम्भावना बन जाएगी, तो आप इसे भूल जाएँ। हम में से कोई बहुत उत्तम भी अगर इसका प्रबंध कर सके तो वह बेतुके ढंग से महत्त्वहीन और बेतुके ढंग से अनावश्यक होगा।
पूर्वकाल से ही सिर्फ यीशु हमारे दण्ड का भुगतान करने के योग्य थे, वे एकमात्र वो दरवाज़ा बने, जिसके द्वारा हम परमेश्वर के पास जा सकते हैं। यीशु ने अपने घनिष्ट चेलों से कहा था, "मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।" उसका विशिष्ट दावा काफी दृढ़ है, लेकिन इस बात की पुष्टि के लिए, हमारे स्थान पर उसने अपनी जान दे दी।सब लोगों के साथ साझा करने के लिए, बाइबिल में से मेरे मनपसन्द उदाहरणों में से एक ये है, "परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे, तभी यीशु मसीह हमारे लिए मरा।" पौलुस ने रोमियो की कलीसिया के नाम अपनी पत्री में यह लिखा जो चारों ओर से मूर्तिपूजकों से घिरी हुई थी और परमेश्वर से बहुत दूर थी।
परमेश्वर की असीम क्षमा के बारे में सबसे ज़्यादा डराने वाली बात यह है कि वो हम सबको बिना क्षमा के नहीं छोड़ता। सम्पूर्ण मानवजाति के लिए परमेश्वर ने स्वर्ग के दरवाज़े खोल दिए हैं। इस तरह का खुला निमंत्रण होने के बाद भी, यदि हम उसे अस्वीकार करेंगें, तो हम अपने उद्धार के एकमात्र रास्ते का इंकार/मना करेंगें। इसका कोई विकल्प नहीं है। न ही पीछे कोई दरवाज़ा है। सामने का दरवाज़ा खुला है, और बिना किसी पक्षपात के निमंत्रण जारी कर दिया गया है।
बहुत सामर्थी असीम यहोवा, आपको एक मित्र जैसे विचार करना चाहेंगें। आप उनके निमंत्रण को अनदेखा कर सकते हो, लेकिन जब तक आपकी सांस में साँस है, तब तक दरवाज़ा बंद नहीं होगा। आप एक बाग़ी हो सकते हो, लेकिन आपमें इतनी सामर्थ नहीं है कि आप उनका मन परिवर्तन कर सको। वह अपने निमंत्रण को रद्द नहीं करेंगें।
प्रार्थना
हे प्रभू, मैं जनता/जानती हूँ कि मैं पूर्णता/सिद्धता से बहुत दूर हूँ। तेरी क्षमा और पुनः स्थापन/नवीनीकरण की योजना को समझने में मेरी सहायता कीजिये। यीशु, मुझे साहस दीजिये कि मैं आपको परमेश्वर की ओर जाने वाले एकमात्र दरवाज़े के रूप में ग्रहण कर सकूँ।
जब आप पहली बार महसूस करतें हैं कि परमेश्वर ने इस सारी सृष्टि की योजना, अपने सन्देश के साथ, आप तक पहुँचने के लिए की है, यह बात आकर्षक हो सकती है--और शायद हर्षोल्लास की भी। फिर तब, आपको स्मरण होता है कि आप कितने अपूर्ण हैं। जब आप परमेश्वर के निकट आना शुरू करतें हैं, तो यह एक प्राकृतिक/स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है। वह सिद्ध/पूर्ण हैं।यीशु मसीह का सुसमाचार "अच्छा समाचार" माना जाता है--और यही सुसमाचार शब्द का अर्थ है। लेकिन कटु सत्य ये है कि हम, हमारी अपूर्णता/कमियों के कारण परमेश्वर से अलग हो जाते हैं। हमारे पाप एक बीमारी की तरह होतें हैं जो हमें अलग कर देतें हैं। परमेश्वर की सिद्धता/पूर्णता के कारण, वो पाप को बिना दण्ड के जाने की अनुमति नहीं देते। उपचाररहित छोड़ दिए जाने पर, आपके पाप रोग, आपको धीरे-धीरे उस स्थान में ले जाते हैं जो खुद शैतान को दण्डित करने के लिए सुरक्षित रखा जाता है। उसे नरक कहते हैं -- अन्धकार, आग और दर्द से भरा स्थान।
अच्छी खबर ये है कि परमेश्वर की सिद्धता/पूर्णता और पवित्रता उनकी दया और करुणा से समान रूप से मेल खातें हैं। वो नहीं चाहते कि एकरुणा से समान रूपक भी व्यक्ति नरक की यातनाएँ सहे, इसलिए उन्होंने उपचार को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की। हमारे पापों के दण्ड को संतुष्ट करने के लिए, उन्होंने अपने पुत्र यीशु को हमारे स्थान पर दण्ड भुगतने की अनुमति दी। उसके बदले में, परमेश्वर ने हमें क्षमा प्रदान की -- सम्पूर्ण क्षमादान।
यदि आप यीशु का चेला बनने का चुनाव करोगे, तो आपको अपने सारे संगीर्ण पापों को बराबरी से स्वीकार करने होंगे और उसकी बहुत बड़ी क्षमा को ग्रहण करना होगा। सुसमाचार, हर जगह सभी जातियों के टूटे लोगों के लिए एक सर्वव्यापक निवेदन है। यदि आप सोचते हो कि आपके पास परमेश्वर को प्रदान करने के लिए ऐसा कुछ है जिससे अपने आपको उसके ग्रहण योग्य बनाने की और अधिक सम्भावना बन जाएगी, तो आप इसे भूल जाएँ। हम में से कोई बहुत उत्तम भी अगर इसका प्रबंध कर सके तो वह बेतुके ढंग से महत्त्वहीन और बेतुके ढंग से अनावश्यक होगा।
पूर्वकाल से ही सिर्फ यीशु हमारे दण्ड का भुगतान करने के योग्य थे, वे एकमात्र वो दरवाज़ा बने, जिसके द्वारा हम परमेश्वर के पास जा सकते हैं। यीशु ने अपने घनिष्ट चेलों से कहा था, "मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ। बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।" उसका विशिष्ट दावा काफी दृढ़ है, लेकिन इस बात की पुष्टि के लिए, हमारे स्थान पर उसने अपनी जान दे दी।सब लोगों के साथ साझा करने के लिए, बाइबिल में से मेरे मनपसन्द उदाहरणों में से एक ये है, "परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है कि जब हम पापी ही थे, तभी यीशु मसीह हमारे लिए मरा।" पौलुस ने रोमियो की कलीसिया के नाम अपनी पत्री में यह लिखा जो चारों ओर से मूर्तिपूजकों से घिरी हुई थी और परमेश्वर से बहुत दूर थी।
परमेश्वर की असीम क्षमा के बारे में सबसे ज़्यादा डराने वाली बात यह है कि वो हम सबको बिना क्षमा के नहीं छोड़ता। सम्पूर्ण मानवजाति के लिए परमेश्वर ने स्वर्ग के दरवाज़े खोल दिए हैं। इस तरह का खुला निमंत्रण होने के बाद भी, यदि हम उसे अस्वीकार करेंगें, तो हम अपने उद्धार के एकमात्र रास्ते का इंकार/मना करेंगें। इसका कोई विकल्प नहीं है। न ही पीछे कोई दरवाज़ा है। सामने का दरवाज़ा खुला है, और बिना किसी पक्षपात के निमंत्रण जारी कर दिया गया है।
बहुत सामर्थी असीम यहोवा, आपको एक मित्र जैसे विचार करना चाहेंगें। आप उनके निमंत्रण को अनदेखा कर सकते हो, लेकिन जब तक आपकी सांस में साँस है, तब तक दरवाज़ा बंद नहीं होगा। आप एक बाग़ी हो सकते हो, लेकिन आपमें इतनी सामर्थ नहीं है कि आप उनका मन परिवर्तन कर सको। वह अपने निमंत्रण को रद्द नहीं करेंगें।
प्रार्थना
हे प्रभू, मैं जनता/जानती हूँ कि मैं पूर्णता/सिद्धता से बहुत दूर हूँ। तेरी क्षमा और पुनः स्थापन/नवीनीकरण की योजना को समझने में मेरी सहायता कीजिये। यीशु, मुझे साहस दीजिये कि मैं आपको परमेश्वर की ओर जाने वाले एकमात्र दरवाज़े के रूप में ग्रहण कर सकूँ।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
अभी भी परमेश्वर के बारे में आपने अपना मन नहीं बनाया है? वास्तव में यकीन नहीं है कि आप क्या मानते हैं? अगले सात दिन बाइबल की खोज में बिताइए और देखिए कि परमेश्वर ने आपको उसके वास्तविक स्वरूप के बारे में क्या बताया। यह आपके लिए कहानी को स्वयं पढ़ने और यह तय करने का अवसर है कि आप क्या मानते हैं। परमेश्वर का विचार आपके लिए अभी भी अनिर्दिष्ट है।
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