मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 41 का 100

आपके लिए परमेश्वर का दर्शन

इस्राएल राष्ट्र के लिए परमेश्वर की योजना केवल उनकी भलाई के लिए थी। फिर भी वे चालीस वषोर्ं तक जंगल में भटकते रहे। जब कि वास्तव में उनकी यात्रा मात्र ग्यारह दिनों की थी। क्यों? क्या यह उनके शत्रुओं, या उनकी परिस्थितियों, या मार्ग की परीक्षाओं या अन्य किसी बात में उनको समय पर पहुँचने से रोक रखा था?

परमेश्वर ने इस्राएल के सन्तानों को मिश्र की गुलामी से बाहर बुलाया था, कि वे प्रतिज्ञात देश में जाए जिसकी प्रतिज्ञा विरासत के रूप में परमेश्वर ने दिया था। एक देश जिस में दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं, जो उनकी सोच से भी अधिक अच्छा था। एक ऐसा देश जिस में किसी भी प्रकार की कमी घटी नहीं होगी, और वहां पर हर प्रकार की समृद्धि होगी।

परन्तु इस्राएलियों के पास कोई भी सकारात्मक दर्शन नहीं था। कोई भी स्वप्न नहीं था। वे जानते थे कि कहां से आ रहे हैं, परन्तु वे नहीं जानते थे कि वे कहां जा रहे हैं। सब कुछ उनके द्वारा भूत काल में देखी हुई बातों पर निर्भर था, या वर्तमान में जो कुछ वे देख सकते थे। वे नहीं जानते थे कि विश्वास की आँखों से कैसे देखा जाता है।

हमे इस्राएलियों को आश्चर्यपूर्वक नहीं देखना चाहिए, क्योंकि हम में से अधिकतर लोग भी इसी समान करते हैं। हम उसी समस्याओं के साथ बार बार प्रयास करते रहते हैं। निरूत्साहित करनेवाला परिणाम यह कि हमें विजय का अनुभव करने में वषोर्ं लग जाते हैं। जिस पर हम चुटकियों में विजय प्राप्त कर सकते हैं।

मैं एक ऐसे पृष्ठभूमि से आती हूँ, जहां मुझे बुरा व्यवहार किया जाता था। मेरा बचपन भय और बुरे व्यवहार में गुजरा, और मेरा व्यक्तित्व बहुत दुविधा में था। मैंने स्वयं को लोगों की चोट से बचाने के लिए अपने चारों ओर एक सुरक्षा की दीवार बना लिया था। और मैं यह नहीं समझ रही थी कि जब मैं दूसरों को बाहर रोक रही हूँ तो मैं स्वयं को भीतर बन्द कर रही हूँ। मैं भयग्रस्त थी, और मैं विश्वास करती थी कि जिन्दगी का सामना करने का एक मात्र तरीका है, सब कुछ को अपने नियंत्रण में रखना, ताकि कोई मुझे चोट न पहुँचाने पाए।

एक जवान के रूप में मसीह के लिए जीने और मसीही दिनचर्या का पालन करने के कोशीश में, मैं जानती थी कि मैं कहां से आयी हूँ, पर नहीं जानती थी कि कहां जा रही हूँ, मेरो भविष्य हमेशा मेरे अथित पर आधारित है। मैं सोचती थी कि मेरे जैसा भूतकाल वाला व्यक्ति कैसे सही रह सकता है। यह असम्भव है।

परन्तु यीशु की योजना भिन्न थी। उस ने कहा, प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिए कि उस ने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिए भेजा है कि बन्धिओं को छुटकारे का, और अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूँ और कूचले हुओं को छुड़ाऊं। लूका 4ः18।

यीशु मसीह कैद खानों के दरबाजों को खोलने और बन्धुओं को छुड़ाने आया, जिसमें मैं भी शामिल हूँ। फिर भी मैं तब तक तरक्की नहीं की जब तक मैंने विश्वास नहीं किया कि मैं स्वतंत्र हो सकती हूँ। मुझे अपने नकारात्मक विचारों से मुक्त होना था और उसके स्थान पर सकारात्मक दर्शन को लाना था। मुझे विश्वास करना था कि न तो मेरा भूतकाल और न वर्तमान काल मेरे भविष्य को निर्धारित करता है। तभी यीशु मुझे मेरे भूतकाल और वर्तमान काल के बन्धन से छुड़ा सकता था, और उस ने ऐसा किया। कितना अद्‌भूत आश्चर्यकर्म!

आप का भूतकाल बहुत दुखदायी हो सकता है। हो सकता है आप अपने वर्तमान समय में भी नकारात्मक और निराशा भरे समय से गुजर रहे हों। आप ऐसी परिस्थिति का सामना कर रहे हों और आपको लगता हो कि आशा की कोई बात नहीं है, परन्तु मैं आपसे दृढ़ता पूर्वक कहती हूँ कि आप का भविष्य काल भूतकाल और वर्तमान काल पर निर्भर नहीं है।

मिश्र से परमेश्वर ने जिन पीढ़ियो को बुलाया उन में से अधिकतर प्रतिज्ञात देश में प्रवेश नहीं कर पाए, बल्कि वे जंगल में मर गए। मेरे लिए यह दुखदायी बातों में से एक है जो परमेश्वर के सन्तानो के साथ हो सकता है, बहुत कुछ उनके लिए उपलब्ध हों और वे कुछ भी न भोग सके।

यह विश्वास करना प्रारम्भ करें कि परमेश्वर का वचन सच्चा है। मरकुस 9ः23 आप को निश्चय दिलाता है कि परमेश्वर के लिए सब कुछ सम्भव है। क्योंकि आप एक ऐसे परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं जिस ने कुछ नहीं से कुछ को बनाया है। (इब्रानियों 11ः3 देखें)। आप अपना कुछ नहीं को उसे दे सकते हैं, और उसे अपने बदले में काम करते हुए देख सकते हैं। आप को केवल इतना करना है कि उस पर विश्वास रखें, और उसके वचन पर विश्वास करें, शेष वह करेगा।

‘‘पवित्र पिता, मुझ से प्रेम करने और मेरे जीवन के लिए अपनी योजना का दर्शन देने के लिए आप को धन्यवाद। चाहे भूतकाल की हों या वर्तमान काल की, मेरे मन के विरूद्ध आनेवाली किसी भी समस्या के नकारात्मक विचारों पर विजय पाने के लिए आप मेरी सहायता करें। और मेरे जीवन को आप जैसा चाहते हैं वैसा बनाए। आमीन।''


पवित्र शास्त्र

दिन 40दिन 42

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/