मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 46 का 100

आज्ञा मानो

बहुत से गैर मसीही सुसमाचार को वास्तव में नहीं समझते हैं। यह कोई नई बात नहीं है कि हमारे दिनों के लिए अनोखी हो। जब पौलुस ने कुरिन्थियों को पत्र लिखा तो उसने कहा कि यूनानी लोगों ने इसे मूर्खता समझा, और स्वभाविक मन के लिए यह मूर्खता ही है। परमेश्वरने यीशु को भेजा जो निर्दोष था, ताकि वह मरके दुष्ट और पापी लोगों पर परमेश्वर की योजना को प्रकट करें। अविश्वासियों के लिए यह मूर्खता है। स्वभावविक मनुष्य सुसमाचार की सामर्थ को नहीं समझ सकता। इसे केवल आत्मिक रूप से ही परखा जा सकता है।

दैनिक जीवन के समान ही यह भी सच है, कभी परमेश्वर हम से बात करता है और जब हम उसे ऐसे लोगों से बताने का प्रयास करते हैं जो यीशु को नहीं जानते हैं, तो यह कुछ भी फर्क नहीं लाता है। उदाहरण के लिए मैं एक दम्पत्ति को याद करती हूँ जो मिशनरी रूप में अफ्रिका गए थे। उनके समर्थन में कोई कलीसिया का विभाग या बड़ी कलीसिया नहीं थी जो उन्हें सहायता करती। उनके पास जो कुछ था उसे उन्होंने बेच दिया, जिसमें उनके शादी की अंगूठी भी शामिल थी।

‘‘शादी की अंगूठी,'' उनके एक रिश्तेदार ने पूछा। ‘‘क्या आपका तात्पर्य यह है कि परमेश्वर आपके लिए प्रबन्ध नहीं करता इसलिए स्वयं करना है।''

पत्नी मुस्कुराई। ‘‘नहीं मैं यह सोचती हूँ कि हमें यह निर्णय करना था कि हमें अन्य लोगों के समान नहीं होना हैं जो यीशु की तुलना में वस्तुओं को अधिक महत्व देते हैं। उन दम्पतियों को कभी भी यह सन्देह नहीं था कि उन्होंने सही किया है। परन्तु उनके अविश्वासी रिश्तेदारों के लिए इस बात का कोई तात्पर्य नहीं था।

बहुत से लोगों के लिए यह बहुत कठिन है कि वे परमेश्वर के लोगों को बात करते हुए सुने और बिना प्रश्न के आज्ञा का पालन करें। परन्तु यीशु ने यही किया और न केवल क्रूस पर भी। यूहन्ना 4 में कूएँ पर यीशु मसीह और सामरी स्त्री का वर्णन है। आधुनिक पाठकों को जो बात समझ में नहीं आती वह है, ‘‘उसका सामरिया से होकर जाना अवश्य था।'' यीशु मसीह यरूशलेम में था और वह उत्तरी गलील की ओर जाना चाहता था। सामरियों का देश बीच में था। परन्तु यीशु को उस देश से होकर जानेवाला रास्ता चुन कर जाने की आवश्यकता नहीं थी। वह सामरिया से न जाकर दूसरा रास्ता भी अपना सकता था। अधिकतर यहूदि सामरिया से होकर नहीं जाते थे, क्योंकि वे सामरियों से घृणा करते थे। क्योंकि वे अन्य देशों के लोगों से मेल जोल रखते थे और उनमें से शादी व्याह का सम्बन्ध भी रखते थे।

परंतु यीशु सामरिया गया। यद्यपि यह एक साधारण या आवश्यक कार्य नहीं था। वह वहां गया क्योंकि वहां एक महिला रहती थी और क्रमशः सम्पूर्ण गाँव, और उसे उस सन्देश के आवश्यकता थी जो केवल वही दे सकता था। साधारण लोग जिनके मन पवित्र आत्मा के द्वारा प्रकाशित नहीं किए गए हैं। वे हम पर उपहास करेंगे। जो हम करते हैं उसका उनके लिए कुछ अर्थ नहीं होता है। परंतु तब कौन कहता है कि हमारे कायोर्ं का अर्थ होना चाहिए। बाइबल का सिद्धान्त यह है कि साधारण मनुष्य आत्मिक बातों को नहीं समझता। बहुधा हमारे मन में एक विचार आता है और उसे हम यह कहते हुए बाहर निकालते हैं कि इसका कोई मतलब नहीं है, और हम वास्तव में ईश्वरीय मार्ग दर्शन को अनदेखा करते हैं। निश्चय ही यह सच है कि शैतान हमारे मन में जंगली विचारों की बाढ़ ला सकता है, परंतु यदि हम प्रार्थना करके और आत्मा के लिए अपने आपको खोलते हैं, तो जल्द ही हम फरक जानेंगे।

पतरस के कहानी पर विचार करें जिसने सारी रात परिश्रम किया था। यीशु, जो एक बढ़ई था, वह उसके पास आया और उससे कहा, जो एक व्यवसायिक मछुवारा था, ‘‘गहरे में जाल डालो।'' लूका 5ः4।

पतरस ने उसके साथ तर्क किया और उसे स्मरण दिलाया कि सारी रात हम ने परिश्रम किया और कुछ नहीं पकड़ा। परन्तु यहां पर पतरस को इस बात की श्रेय जाता है कि रात भर की परिश्रम के आज्ञा मानो बावजूद उसने प्रभु की बात मानी। मैं फिर से कहूँगी पतरस ने प्रभु को सुना और कहा, ‘‘तेरे वचन से मैं जाल डालता हूँ'' (पद 5) और पतरस निराश नहीं हुआ। उन्होंने बहूत सारे मछलियों को पकड़ा कि जाल लगभग टूट गई।

आज्ञाकारिता का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है जिसे हमे समझना है, तक वितर्क करने के बजाय आज्ञा का पालन करें। या फिर जैसा मेरा एक मित्र इसे कहता है, ‘‘सिद्ध पर भी सिद्धान्त।'' वह कहती है कि वह महसूस करती है कि कभी कभी परमेश्वर उसके अगुवाई ऐसी बातें करने के लिए कर रहा है जिनका अक्सर कुछ अर्थ नहीं होता है। जब वह स्वयं को ऐसे भावना को अभिव्यक्त करते हुए सुनती है, वह तुरन्त उस में जोड़ती है सिद्ध पर भी। तब वह आज्ञा पालन करती है। 

वास्तव में परमेश्वर हम से यही चाहता है कि हम तर्क वितर्क करने के बजाय आज्ञा का पालन करें।

‘‘बुद्धिमान और अद्‌भूत परमेश्वर कभी कभी मेरे लिए कुछ अर्थ नहीं निकलता है। परन्तु इस पर भी मैं तेरी इच्छा में रहना चाहती हूँ। आत्मिक परख को विकषित करने में मेरी सहायता कर। और तेरी सेवा करने का ईश्वरीय अवसर मुझे न खोने दे। तूझ पर और अधिक भरोसा करना मुझे सिखा और तर्क वितर्क करने के बजाय तुरन्त तेरी आज्ञा पालने करने के लिए मेरी सहायता करें। आज मेरी सुनने के लिए तुझे धन्यवाद। आमीन।''

पवित्र शास्त्र

दिन 45दिन 47

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/