मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 47 का 100

वचन के अनुसार करो

एक मसीही के रूप में बहुत वषोर्ं तक मैं यह नहीं जानती थी कि विश्वासी यह जान सकता है कि परमेश्वर उस से क्या चाहता है, और तब जान बूझकर ना कहते। मैं उन लोगों के बारे में बात नहीं कर रही हूँ जो यीशु मसीह को अपना पीठ दिखाते और उसके उद्धार के बारे में कुछ नहीं करना चाहते हैं। मैं उन लोगों के बारे में बोल रही हूँ जो दृष्टिगोचर छोटी बातों पर अनाज्ञाकारिता दिखाते हैं और इस प्रकार करने से कुछ भी कष्ट महसूस नहीं करते हैं।

23 और 24 पद में याकूब आगे कहता है, कि ‘‘यदि हम वचन पर केवल ध्यान देते हैं परन्तु उसका पालन नहीं करते, तो यह आईने में अपने प्रतिबिम्ब को देखने के समान है।'' देखने और तब दूर जाने और उसको भूल जाने के समान है जो हम ने देखा है। परंतु वचन को करनेवाला उस व्यक्ति के समान है जो सावधानी पूर्वक निर्दोष व्यवस्था में देखता है, जो संस्था का व्यवस्था है और उसके प्रति विश्वासयोग्य रहता है और उस पर बना रहता है। और वह सिर रहित सुननेवाले के रूप में नहीं है जो सुन कर भूल जाता है। परन्तु एक सक्रिय काम करनेवाला है, जो पालन करता है वह अपने काम में आशीष पाएगा। (25वां पद)।

सभी मसीहियों का सामना परमेश्वर के वचन से होता है और वह उन्हें सक्रिय होने के लिए बुलाता है। परंतु वे मानने से इनकार करते हैं, उनका स्वयं का मानविय तर्क वितर्क ही उसका कारण होता है। सत्य के बदले और उन्होंने कुछ को विश्वास करने के द्वारा उन्होंने स्वयं को धोखा दिया है। यह ऐसा है मानो वे अपने आपको परमेश्वर के बदले ज्यादा चतुर समझते हैं।

मैं ऐसे लोगों से मिली हूँ जो सोचते हैं कि परमेश्वर चाहता है कि वे हमेशा अच्छा महसूस करें, और यदि उनके साथ कुछ बुरा होता हैं तो वे विश्वास नहीं करते कि यह परमेश्वर की इच्छा है, और वे इन बातों का इनकार करते हैं जो बाइबल पढ़ते समय उन्हें प्राप्त हुआ। यह कहते हुए कि इसका कोई अर्थ नहीं है।

1 थिस्सलुनिकियों 5:17 के पौलुस के निर्देश कि लगातार प्रार्थना करो पर टिप्पणी करते हुए एक महिला ने कहा, कि ‘‘जब भी वह प्रार्थना करती लगातार यह पद उसके पास आता रहा।''

‘‘आप क्या सोचते हैं? इसका अर्थ क्या है?'' मैंने उस महिला से पूछा।

मैं सोचती हूँ कि दिन में और दिन के बाहर हमें प्रार्थना करना चाहिए जब भी हमें कुछ चीजों की जरूरत है। उसके वचन ने मुझे झटक दिया। तब परमेश्वर के साथ संगति के विषय क्या है? क्या यह एक अच्छा कारण नहीं है? या परमेश्वर केवल चाहता है कि आप उसके वचन को पढ़ते हुए और प्रार्थना करते हुए समय व्यतीत करें। ‘‘मेरे पास बहुत कुछ काम है करने के लिए,'' उसने कहा। यह उन लोगों के लिये ठीक है जो प्रतिदिन घंटों प्रार्थना करना और बाइबल पढ़ना चाहते हैं। परंतु यह मेरे लिए स्वभाविक नहीं है। हमारे संक्षिप्त बातचीत में मैंने पाया कि परमेश्वर के वचन को मानने के बारे में उसका निर्णय इस बात में निर्भर था कि यह उसके जीवनचर्या के लिए सुविधाजनक है या नहीं। जब वह बाइबल में ऐसी बातों को पढ़ती थी जो उसके जीवनचर्या में व्यतीत नहीं होती थी। तो वह स्वयं से इसका व्याख्या इस प्रकार से करती थी कि वह अपने आपको यह मानने के लिए कायल कर लेती थी कि परमेश्वर उस से इस बात की अपेक्षा नहीं करता।

इसकी विरोधाभास के रूप में बहुत ही एक भली महिला को स्मरण करती हूँ जो अपने जीवन के अधिकतर समय एक पारम्परिक कलीसिया की सदस्य रही है। वह अक्सर कैरस्मेटीक कलीसियाओं के शोर शराबे और दुविधाओं के बारे में बात किया करती थी, यदि भी वह कभी गई नहीं थी। और तब उसने उनमें से एक आराधना में भाग लिया जहां मैंने वचन प्रचार किया थी। और वह परिवर्तित हो गई। मुझे विश्वास नहीं हो सकता था कि परमेश्वर मुझ से ताली बजाने और जोर से गाने या चिल्लाने के लिए कहेगा। परन्तु जब मैंने सभा पर उपस्थित लोगों के चेहरे पर व्याप्त आनन्द को देखा और जब मैंने आपको ऐसे पदों को पढ़ते हुए सुना कि परमेश्वर हमें ताली बजाने के लिए और चिल्लाने के वचन के अनुसार करो लिए आदेश देते हैं, तो मैं और क्या कर सकती थी? यह परमेश्वर मुझ से बात कर रहा था।

वह सही स्वभाव वाली महिला थी। वह इस बात पर तर्क वितर्क नहीं कर रही थी कि परमेश्वर ने ऐसा करने के लिए क्यों कहा। उसने वचन पर विश्वास किया और आज्ञा का पालन किया।

जब बाइबल आज्ञापालन के विषय में कहती है, तो यह एक सलाह नहीं है। उसका वचन नहीं पूछता है, क्या तुम आज्ञापालन करना चाहते हो? परमेश्वर हमें आज्ञा देता है कि हम उसके वचन करनेवाले के रूप में कार्य करें और जब हम आज्ञाकारी होते हैं, तब वह हमें आशीषों की प्रतिज्ञा देता है।

‘‘प्रिय पवित्र प्रेमी पिता, आपके वचन में पाए जानेवाले निर्देशों के लिए मैं आपका धन्यवाद करता हूँ। हो सकता है मैं इन बातों के समान नहीं हूँ जो मैंने पढ़ा, और कभी कभी बिना हिचक के आपका अनुकरण करना कठिन होता है। परन्तु मैं जानती हूँ कि यह मेरे भलाई के लिए है। हमेशा आज्ञाकारी बने रहने के लिए और आपको आदर महिमा देने के लिए मेरी सहायता करें। आमीन। ‘‘


पवित्र शास्त्र

दिन 46दिन 48

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/