मन की युद्धभूमिनमूना
आत्मिका प्रार्थना
पूर्व में मैंने मन को पोषित करनेवाले आत्मा के बारे में बात की थी। बहुत से लोगों के लिए यह बात ग्रहण करना मुश्किल है। मैं समझती हूँ कि पौलुस का तात्पर्य क्या था। क्योंकि स्वयं की आत्मिक उन्नति के लिए मैंने इस को इस्तेमाल करना सिखा है।
उदाहरण के लिए — मैंने एक सुबह को अलग रखा, ताकि मैं प्रार्थना करूँ। मैंने प्रार्थना करना प्रारम्भ किया, परन्तु मेरी प्रार्थना यूं ही थी, इस में कुछ भी ऊर्जा नहीं थी, और मेरी आत्मा से कोई सहायता नहीं प्राप्त हो रही थी। जब मैंने संघर्ष किया तो मैंने स्वयं को स्मरण दिलाया, कि मैंने स्वयं को परमेश्वर के लिए उपलब्ध कराया था, और चाहती थी कि आत्मा मुझे जीवनों को बदलने के लिए इस्तेमाल करे।
मैंने लगातार प्रार्थना करना जारी रखा, परन्तु कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ। ऐसा पहले भी हुआ था इसलिए मैं निरूत्साहित नहीं हुई। जिन बातों के प्रति मैं अधिक चिन्तित थी, उन बातों के लिए प्रार्थना करना और परमेश्वर से कहना मैंने जारी रखा। बहुत समय के बाद एक सामर्थी ऊर्जा ने मुझे संभाल लिया। मैं जान गई कि मैंने उस क्षेत्र को छू लिया है जिस के लिए पवित्र आत्मा मुझसे प्रार्थना करवाना चाहता है। यह मेरी चिन्ता से भी बड़ी बन गई क्योंकि यह परमेश्वर की चिन्ता थी।
मैं अपने मन से प्रार्थना करने लगी। जिन बातों को मैं जानती थी और जिन बातों को मैं आवश्यक समझती थी। मैं अंग्रजी भाषा में प्रार्थना कर रही थी, क्योंकि यह मेरी साधारण भाषा थीं, और मैं समझती थी कि मैं क्या कह रही हूँ। किन्तु जब आत्मा की सामर्थ मुझ पर आयी तो मैं बिना किसी होशो हावास अपनी प्रार्थना की भाषा में प्रार्थना करने लगी। या जिसे कुछ लोग अनजान भाषा कहते हैं।
इस क्षेत्र में पौलुस हमारा उदाहरण और शिक्षक था। उसने कहा कि वह जानता है कि आत्मा में कैसे प्रार्थना करना चाहिए और समझ के साथ कैसे प्रार्थना करना चाहिए। यह हर किसी को उचित नहीं लगता है, और यह निश्चित रूप से बहुत से लोगों को पहले सन्देह में ला सकता है। फिर भी मैं आप को उत्साहित करती हूँ कि केवल इसलिए आप परमेश्वर के किसी वरदान को इनकार न करें, क्योकि आप ने उसका अनुभव नहीं किया है और आप उसे समझते नहीं हैं। परमेश्वर के लिए खुला हृदय रखें और उस से कहें कि वह आप को अन्य भाषा में बात करना सिखाए।
इसे इस प्रकार से सोचें। परमेश्वर हमको प्रार्थना के लिए बुलाता है। यह हमारा आनन्द और हमारा दायित्य भी है। तभी जब हम परमेश्वर से बात करते हैं, तो हमें नहीं मालूम होता है कि हमें क्या कहना हैं। हम प्रार्थना करते हैं लेकिन हमें हमारा शब्द उचित नहीं लगते हैं। यह ऐसा लगता है, मानो हमारे बोझ कहीं गहरे हो जो शब्दों को उत्पन्न करते हों। हमारे भीतर कुछ मजबूत चल रहा है, बहुत ही छलकनेवाले कि हमारे पास बात करने के लिए शब्द नहीं। भाषा का इस्तेमाल करना सर्वथा व्यर्थ लगता है। चाहे हम ईश्वर से अपनी समझ के द्वारा कुछ भी कहें। हमें महसूस होतो है कि हम टूटे हुए नहीं हैं तब वह बात आती है जिस मैं प्रार्थना में मुक्ति कहती हूँ। मैं ऐसी शब्दों में प्रार्थना करती हूँ जिसे मैं नहीं समझती। ऐसी शब्द जिसे मेरा मानवीय मन ग्रहण नहीं कर पाता है। फिर भी मेरी आत्मा उसे समझती हैं, या गवाही देती हैं कि मेरी प्रार्थनाए सही हैं और मैं अपना कार्य पूरा कर रही हूँ।
इस अनुभव के लिए सब से उत्तम पद जो मैं दे सकती हूं वह प्रेरितों के काम 2 अध्याय है, जिस में पिन्तेकुस्त की कहानी है। श्ष्यिगण उपरौठी कठोरी में प्रार्थना कर रहे थे जब संसार भर से यहूदि लोग यरूशलेम में आए हुए थे। उस कमरे से एक सौ बीस लोग आत्मा में इतना अधिक भर गए, कि उन्होंने अन्य भाषाओं में बात करना प्रारम्भकर दिया, जो उनके लिए अनजान थी। लेकिन श्रोताओं ने उन्हें सुना, और जब यह शब्द सुना गया तो भीड़ इकट्ठी हुई और आश्चर्य हुआ, क्योंकि प्रत्येक ने उनकी भाषा (हर अपने बोली) में बात करते सुना। (पे्ररितों के काम 2ः6)।
प्रेरित पौलुस परमेश्वर का धन्यवाद करता है कि वह अन्य भाषा में बात कर सकता है, और उसने यह भी कहा कि कोई भी किसी को ऐसा कहने से मना न करे। अन्य भाषा में बात करने के बारे में कलीसिया में बहुत से मतभेद थे, परन्तु मैं आपको उत्साहित करती हूँ, कि आप सीधे परमेश्वर के वचन में जाए और देखे कि वचन इस बारे में क्या कहता है। पवित्र आत्मा के किसी भी बहुमूल्य उपहार के प्रति अपने मन को बन्द न करें। हमें हर प्रकार की अलौकिक सहायता की आवश्यकता होती है, ताकि हम अपने जीवन को विजयी रूप से बिताने के लिए सहायता प्राप्त कर सकें। कुछ लेाग सिखाते हैं कि अन्य भाषा में बोलने का वरदान प्राथमिक कलीसिया के साथ ही लुप्त हो गया है, लेकिन वर्तमान समय में अभी भी संसार भर की कलीसिया में ऐसे लोग हैं जो अन्य भाषा में बोलते हैं। वे जो अन्य भाषा में बोलते हैं, निश्चय ही हमसे बेहतर नहीं हैं, न ही वे उन से अधिक आत्मिक हैं जो अन्य भाषा में नहीं बोलते हैं। मैं फिर से आप को एक बार उत्साहित करूँगी कि आप इस क्षेत्र में अपने लिए परमेश्वर को खोजें, ताकि आपकी प्राथनाए यथा सम्भव सामर्थी हों। जब हम आत्मा मे प्रार्थना करते हैं तो हमारे मन और आत्मा एक साथ काम करते हैं। हमारा मन हमारी आत्मा से मेल करता है और ऐसी प्राथना करते हैं जैसा परमेश्वर चाहता है।
‘‘पवित्र आत्मा, मैं उन सब अलौकिक उपहारों को चाहती हूँ जो आपने उपलब्ध कराया है। मैं सारी सहायता चाहती हूँ, जो मैं प्राप्त कर सकती हूँ, तथा मुझे जयवन्त जीवन जीने में सहायक कर। मैं सामर्थी प्रार्थनाए करना चाहती हूँ, जो पवित्र आत्मा की अगुवाई से होती है। मैं जानती हूँ कि मैं अपनी भाषा में जो प्रार्थनाए करती हूँ उन्हें आप सुनते हैं। परंतु मैं अन्य भाषा का वरदान पाना चाहती हूँ जो मुझे तूझ से भेद की बात करने में सहायता दे। मैं विश्वास करती हूँ कि यीशु मुझे सही दिशा में ले जाएगा। आमीन।।''
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/