मन की युद्धभूमिनमूना
विश्वास करने का निर्णय
जब मैं लोगों से विश्वास करने का निर्णय लेने को कहती हूँ, तो बहुधा लोग मेरी तरफ सूनी सूनी निगाहों से देखने लगते हैं। मानो मैं उनसे कोई बहुत बड़ा कार्य करने को कह रही हूँ। विश्वास परमेश्वर के वचन को सुनने से आता है। (रोमियों 10:17 देखें)। परन्तु इसमें निर्णय भी शामिल है।
यीशु मसीह में विश्वास करने के द्वारा हम परमेश्वर के साथ एक संबंध में प्रवेश करते हैं। परन्तु यह केवल एक शुरूवात है। विश्वास यहाँ समाप्त नहीं हो जाता है। जब मैं आत्मा कार्य क्षेत्र को समझती हूँ यदि हम प्रभु के पीछे चलते हैं तो हम एक बढ़ने वाले विश्वास के साथ जीते हैं। इसका तात्पर्य है कि हम बड़ी बातों के लिए विश्वास करना सीखते हैं। हम ऐसी चीजों के लिये परमेश्वर पर विश्वास करना सीखते हैं जिसके बारे में हम मसीही जीवन के प्राथमिक दिनों में सोचें भी नहीं थे। जब हम मसीही बनते हैं, बाइबल कहती है कि हम परमेश्वर के परिवार में शामिल किए जाते हैं। ‘‘हमें लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कह कर पुकारते हैं।'' (रोमियों 8:15)।
यह शुरूवात है, और यहीं पर बहुत से मसीही रूक जाते हैं। आत्मा आपके हाथों तक पहुँचता रहता है ताकि वह आपको आगे ले चले। यही समय है जब आपको विश्वास करने का निर्णय लेना है, या आप अपने मसीही अनुभव के साथ जहाँ पर हैं वहीं रूकने का निर्णय करते हैं और विरोध करते हैं। इस शीर्षक में प्रथम भाग में दिए गए पदों को पढ़ें। यह कहता है कि आपके विश्वास परखे जाऐंगे। परंतु आपको इसे थामे रखना है और आगे बढ़ते जाना है। फरक तब आ सकती है जब शैतान आपको दी गइ परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के प्रति आपके मन में सन्देह डाल सकता है।
आपके आत्मिक उन्नति में कहीं रूकने का स्थान नहीं है। परमेश्वर आपको आगे लेके जाना चाहता है। परन्तु विश्वास करने का चुनाव आपको करना है। कभी कभी इसमें साहस की आवश्यकता होती है। परन्तु मसीही जीवन इसी प्रकार कार्य करता है। हम विश्वास के कदम उठाने द्वारा बढ़ते हैं। जब परमेश्वर आपके हृदय से बात करता है। जब आपके आन्तरिक अस्तित्व से बात करता है, आपको बिना हिचक कहने की आवश्यकता है। ‘‘प्रभु ऐसा ही हो।'' परमेश्वर का आत्मा जो कुछ कहता या चाहता है, उसके साथ सहमत होना सीखने की आपको आवश्यकता है।
इसके बजाय बहुत से लोग प्रतिरोध करने की भावना रखते हैं, वे ना नहीं कहते हैं। शैतान इतना चालाक है कि उनसे वह हां में सिर हिलवाता है। वह उनके मनों में प्रश्न डालता है, और उन्हें पूछने के लिए कहता है, यह कैसे होगा? वे परमेश्वर से समझने में सहायता माँगने लगते हैं। यदि आपका अधिकारी आपसे कुछ काम करने के लिए कहता है, तो क्या आप पूछते हैं, ‘‘क्यों?'' या फिर स्पष्टीकरण माँगते हैं।
परन्तु पवित्र आत्मा ऐसे काम नहीं करता है। आप कहते हैं, ‘‘प्रभु, यदि आप समझने में मेरी सहायता करेंगे तो मैं, विश्वास करूँगा और आज्ञा पालन करूँगा।'' परमेश्वर कहता है, केवल आज्ञा पालन करो। यदि मै चाहता हूँ कि तुम समझो, तो मैं इसे और अधिक स्पष्ट करूँगा। परमेश्वर को किसी भी स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता नहीं है।
अक्सर ऐसा होता है विश्वासी अपने हृदय की गहराई मे कुछ बातों को जानते हैं, या अपनी आन्तरिक अस्तित्व में। परंतु उनका मन उनके विरूद्ध लड़ाई लड़ता है। वे अपने आपको अयोग्य समझते हैं। वे पूछ सकते हैं, मै कौन हूँ कि आप मुझे इस्तमाल करें, कि मैं जीवनों को परिवर्तित करूँ? वे परमेश्वर से यह कहने के द्वारा बहुत सारे ऊर्जा व्यर्थ करते हैं, कि वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते जो परमेश्वर उनसे चाहता है। परमेश्वर सब कुछ पहले से जानता है कि क्या कुछ हमारे साथ गलत है, या कभी भी क्या गलत होगा? और फिर भी वह हमारे द्वारा काम करना चाहता है। परमेश्वर उपलब्धता चाहता है, योग्यता नहीं। परमेश्वर कुछ साधारण कार्य करने के लिए कहता है, विश्वास करो, बस। यदि परमेश्वर कहता है, तो आपको कहने की आवश्यकता है, यद्यपि मैं नहीं समझता फिर भी मैं करूंगा। बाइबल में सब से अच्छा उदाहरण जो मैं सोच सकती हूँ, वह यह है, दमिश्क के हनन्याह का उदाहरण। परमेश्वर ने उसे कहा, कि शाऊल अन्धा है और वह किसी विशेष घर में है। उसे वहाँ जाना था और उसे उसके सिर पर हाथ रखना था और परमेश्वर उसे चंगा करता। (प्रेरितों 9:10—19 देखें)।
हन्नाह डर गया। शाऊल मसीहियों को सब से अधिक सतानेवाला था। परन्तु परमेश्वर ने उस से जाने के लिए कहा, क्योंकि वह अन्धा व्यक्ति परमेश्वर का चुना हुआ पात्र था। उसके डर और यह समझने में अयोग्यता के बावजूद भी परमेश्वर ने ऐसे बड़े सतानेवाले को क्यों पात्र के रूप में चुना। हनन्याह गया और शाऊल के लिए प्रार्थना की, और भविष्य का प्रेरित चंगा हुआ।
परमेश्वर हम से यही व्यवहार चाहता है। वह चाहता है कि हम विश्वास करने का चुनाव करें। चाहे जो हम से करने के लिए कह रहा है हमारे विचारों से परे हो।
‘‘परमेश्वर के पवित्र आत्मा, आपके प्रतिज्ञाओं में विश्वास करने में मेरी हमेशा सहायता करें। चाहे मैं उसे न समझूं आपनी इच्छा से मैं आप पर भरोसा करना सीखना चाहती हूँ। जैसे मैं विश्वास में आगे बढ़ती हूँ, कि आपके पास मेरे लिए करने के लिए जो कुछ भी हों। मेरी हमेशा सहायता करें कि मैं आज्ञाकारी रहूँ। यीशु के नाम में प्रार्थना माँगती हूँ। आमीन।''
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/