मन की युद्धभूमिनमूना
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अपने जीभ पर नियंत्रण रखें
आपको वास्तव में बोलने का वरदान है। वषोर्ं पूर्व मुझे किसी ने यह बात कहा था जब मैंने अपनी सेवकाई प्रारम्भ की थी। उसने कुछ ऐसी बात की ओर संकेत किया था जिस को मैं पहले से जानती थी। परमेश्वर ने मुझे एक तैयार जीभ दिया था, जिसे मैं आसानी से बोल लेती थी। शब्द मेरे उपकरण थे। परमेश्वर ने पहले मुझे यह उपहार दिया और तब उसने मुझे अपने सेवकाई के लिए बुलाया, ताकि मैं इसे योग्यता से उपयोग उसकी काम के लिए करूं।
मुझे बोलने में कोई परेशानी नहीं होती है। यह मेरा वरदान है। यह मेरी सबसे बड़ी समस्या भी है। क्योंकि हमेशा मेरे पास कुछ न कुछ बोलने के लिए रहता है। इसलिए मैं वषोर्ं तक अपने जीभ के सही उपयोग का संघर्ष करती रही।
यह एक आसान युद्ध नहीं था।
इन वषोर्ं में मैंने अलग अलग लोगों के द्वारा ऐसी बातें कहते सुनी थी, अपने जीभ पर नियंत्रण रखो। क्या आपके मन में जो भी शब्द आते हैं उनको बोलना जरूरी है? क्या आप पहले बोलती हैं फिर आप सोचती हैं? आप बहुत कठोर दिखाई पड़ती हैं। क्या मैं सच्च में लोगों के विचारों पर या उनके कथनों पर ध्यान दी थी? मुझे इस बात को समझना था, परमेश्वर मुझ से कुछ कहने का प्रयास कर रहा है। परन्तु मैंने लोगों के विचारों को अनदेखा किया और अपने कठोर रास्तों पर चलती रही।
मैं जानती हूँ कि भूत काल में मैंने अपने शब्दों के द्वारा लोगों को चोट पहुँचाई और मैं इसके लिए क्षमा चाहती हूँ। मैं धन्यवादी भी हूँ कि परमेश्वर ने मुझे क्षमा किया।
वषोर्ं पूर्व मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मेरे जीवन को इस्तमाल करने जा रहा है। मुझे अपने जीभ पर नियंत्रण करना चाहिये। केवल बात बन्द करने से नहीं, परन्तु बुरी बातों से अपने जीभ को और धोखे भरी बातों को बोलने से अपने होठों को, जैसे कि भजनकार दाऊद कहता है।
मेरे पास एक चुनाव था। मैं अपने शब्दों के द्वारा लोगों को चोट पहुँचा सकती थी, और मैं इसे बहुत अच्छी रीति से कर सकती थी। या फिर मैं अपने होठों को परमेश्वर के अधिनता में ला सकती थी। निश्चय, मैं अपने आपको परमेश्वर की आधिन में लाना चहती थी, लेकिन यह अभी भी एक युद्ध ही था।
हमारे शब्द हमारे हृदय के अभिव्यक्ति होती है। अर्थात हमारे भीतर क्या कुछ चल रहा है। यदि हम जानना चाहते हैं कि एक व्यक्ति वास्तव में कौन है? उसमें केवल इतना करना है कि उनके शब्दों पर हम ध्यान दें। यदि हम पर्याप्त समय किसी व्यक्ति पर ध्यान दें, तो हम उनके बारे में काफी कुछ जान सकते हैं।
जब मैंने अपने स्वयं के शब्दों पर ध्यान देना सिखा, तो मैंने अपने आप के बारे में भी बहुत कुछ सीखना शुरू किया। कुछ बातें जो मैंने सीखा वह मुझे अच्छी नहीं लगी, परन्तु यह इतना समझने में मेरी सहायता की कि मेरा एक ऐसा स्वभाव था जिस से बात करनी चाहिए थी। मेरे शब्द परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाले नहीं थे और मैं चाहती थी कि वह प्रसन्न करनेवाले हों। एक बार जब मैंने अपने पराजय को परमेश्वर के सामने मान लिया, तब विजय आया। तुरन्त नहीं और सिद्धता के साथ भी नहीं, परन्तु परमेश्वर मेरे साथ धीरजवन्त था। मैं बढ़ती रही, और मेरी बढ़ौती मेरे होठों को बुराई से दूर रकती है।
आप चाहे कितने भी नकारात्मक हों या रहे हों या फिर आप कितने भी समय से उस पर चल रहे हों, परमेश्वर आपको बदलना चाहता है। परमेश्वर के सामने अपने अंगिकार के आरम्भिक दिनों में, मैं फिर भी सफलता के मुकाबले में असफलता ही पाती थी। लेकिन प्रत्येक बार जब मैं सफल होती थी, मैं जान जाती थी कि मैं अपने जीवन के लिए परमेश्वर के योजना के और निकट हूँ। परमेश्वर आपके लिए भी यही कर सकता है।
यह आसान नहीं होगा, परन्तु आप जीत सकते हैं और प्रयास व्यर्थ नहीं जाएगा।
‘‘परमेश्वर मेरी सहायता कर कि मैं अपने मुँह का सही इस्तेमाल कर सकूं। मेरे मुँह पर पहरा बैठा दे, ताकि मैं अपने जीभ से तेरे विरूद्ध कम से कम बात करूँ। मेरे मुँह के शब्द और मेरे हृदय के विचार आपको स्वीकार्य हों। यीशु के अद्भुत नाम से माँगती हूँ। आमीन।।''
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
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जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/