मन की युद्धभूमिनमूना
हार न मानें
‘‘मैं 23 वषोर्ं से मसीही हूँ। मैं कहीं नहीं पहुँची हूँ। मैं अब भी वहीं की वहीं हूँ जहाँ वषोर्ं पूर्व यीशु का ग्रहण करते समय थी। मैं आज भी पराजित हो जाती हूँ। मुझे नहीं मालूम कि ऐसा क्यों है?'' शेरिल ने कहा। अपने पराजय के बारे में बात करते हुए उसके गालों से आँसू बह चले। ‘‘मैं सही बातों को करना जानती हूँ, पर नहीं करती हूँ। कभी कभी तो मैं जानबूझ कर कुछ नीच हरकत कर बैठती हूँ। मैं किस प्रकार की मसीही हूँ।''
‘‘संभवतः एक बढ़ने वाली मसीही....'' मैंने कहा।
शेरिल के चेहरे पर अजीब से भाव आए। ‘‘बढ़ने वाली...?'' क्या आप ने सुना?''
‘‘हाँ, मैंनें सुना। किन्तु यदि आप बढ़ने वाली न होती तो अपने वर्तमान दशा में संतुष्ट रहती। अपने पराजयों पर नहीं रोती और अपने आप से कहती कि आप कितनी अच्छे हैं''।
‘‘परन्तु मैं बहुत ही निराश हूँ। मैंने कई बार परमेश्वर को फेल किया।''
मैंने शेरिल से कहा कि उसका कहना सही है कि वह पराजित है। अक्सर हम सब के साथ भी ऐसा ही होता है। हममें से कोई भी सिद्ध नहीं है। यदि हम सचेत नहीं हैं, तो हम शैतान को मौका देते हैं वह हमें बताए कि हमने किन किन कायोर्ं को पूरा नहीं किया है और हम कहाँ पर कमजोर थे। जब ऐसा होता है तो बहुत बुरा लगता है और मन करता है कि सब छोड़ दें।
यह आत्मा का तरीका नहीं है। चाहे हम अपने जीवन को कैसी भी दुर्दशा में डाल दें परमेश्वर हमारे विषय में हार नहीं मानता है। आत्मा लगातार हमारे साथ कार्य करती रहती है।
हम अपने विचारों को उन बातों पर ठहरे रहने दे सकते हैं जिसे हमने नहीं किया है। हम क्यों अधिक आत्मिक होना चाहिए? मसीही विश्वास में आने से लेकर अब तक हमें कितना अधिक आत्मिक होना चाहिए। यह शैतान की एक चाल है कि वह हमें अपने पराजयों और घटियों के विषय में सोचने पर मजबूर करता है। यदि हम यह विचार करते रहें कि हम क्या नहीं हैं या क्या नहीं कर पाए हैं, तो हम शैतान को अपने मन की युद्धभूमि में आगे बढ़ने दे रहे हैं।
यह तथ्य कि मेरे समस्याग्रस्त मित्र निराश थी एक स्वस्थ चिन्ह था, यद्यपि उसने इसे इस रीति से नहीं देखा था। पवित्र आत्मा की सहायता से वह शैतान को पीछे धकेल सकती है। वह उन क्षेत्रों को पुनः पा सकती है जिन्हे शैतान ने उससे चुरा लिया है।
शेरिल सोचती थी कि पवित्र और विजयी जीवन एक के बाद एक बड़ी विजय के परिणाम स्वरूप है। हाँ, हमारे जीवन में ऐसे समय आते हैं जब हम बहुत बड़ी घटनाओं से होकर गुजरते हैं यद्यपि हमारी बहुत सारे विजय धीमी से आती हैं। वे थोड़ा थोड़ा करके आती हैं। यह ऐसा है कि मानो हम इंच इंच करके आगे बढ़ते हैं। क्योंकि हम अपनी आत्मिक उन्नति में धीरे धीरे करके आगे बढ़ते हैं, इसलिए हम अक्सर इस बात के प्रति अनजान रहते हैं कि हम कितना आगे बढ़े हैं। यदि शैतान हमें ऐसा सोचने देता है कि हमें एक के बाद एक निर्णायक आत्मिक जीत हासिल करनी थी या हम हारे हुए हैं। तो उसने हमारे मन के भीतर एक गढ़ को जीत लिया है।
शेरिल और इस प्रकार अंधकार के क्षणों का सामना करनेवाले सभी मसीहियों के लिए मेरी यह सलाह है कि वे प्ररित पौलुस के उन शब्दों पर ध्यान दें। वह हमें सलाह देता है कि हम थकित और श्रमित न हों एक अन्य अनुवाद कहता है कि हम हार न मानें हम अपने हृदय को कच्चा न करें व लड़ते रहें।
जीवन एक संघर्ष हैं। शैतान हमें पराजित और नाश करने के लिए कृतसंकल्प है। हम कभी भी ऐसे स्थान पर नही होंगे जहाँ संघर्ष नहीं होगा। यीशु न केवल हमारे साथ है परन्तु वह हमारे लिए है। वह हमारे बगल में हमें सामर्थी बनाने और आगे बढ़ाने के लिए है।
मेरी सहेली लगातार उन बातों को सोचना जारी रखी थी, जब वह हार गई थी। किन्तु मैंने उसे उसकी सफलताएँ स्मरण दिलाई। ‘‘तुम सोचती हो कि शैतान सबकुछ पर नियंत्रण रखता है पर यह सच नहीं है। तुम यदि हारी हो, तो तुम जीती भी तो हो। तुम अपने भूमि पर खड़ी रही हो और सफल हुई हो।
हार नहीं मानना है।'' यही संदेश सुनने की हमें आवश्यकता है। मैं यशायाह के शब्दों पर विचार करती हूँ, ‘‘मत डर क्योंकि मैंने तुझे छुड़ा लिया है'' मैंने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है। जब तू जल में होकर जाए, मैं तेरे संग संग रहूँगा और जब तू नदियों में होकर चले तब वे तुझे न डुबा सकेंगीः जब तू आग में चले तब तुझे आंच न लगेगी और उसकी लौ तुझे न जला सकेगी।
यह परमेश्वर की प्रतिज्ञा है। वह हमें संपूर्ण रीति से समस्याओं से बाहर निकालने की प्रतिज्ञा नहीं करता है। लेकिन इन समस्याओं में हमारे साथ रहने की प्रतिज्ञा वह करता है। उसने कहा, ‘‘मत डर''। हमें आज इसी संदेश पर ध्यान लगाना चाहिए। हमे डरना नहीं है क्योंकि परमेश्वर हमारे साथ है, और जब परमेश्वर हमारे साथ है तो हम किस बात के लिए चिंता करें?
परमेश्वर, मेरे पराजयों के बावजूद आप मेरे साथ हो। आप मुझे प्रोत्साहित करते है कि मैं हार न मानूँ। कृपया मेरी मदद कीजिए कि मैं यह याद रखें कि आपकी सहायता से मैं जीत सकती हूँ। यीशु के नाम से, आमीन।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/