हमें ठेस पहुँचाने वालों को क्षमा करनानमूना
क्षमा की जीवन शैली
अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखाने के बाद, यीशु ने उन्हें महत्वपूर्ण अनुभव दिया कि वे इस टूटी दुनिया में कैसे एक साथ मिल कर चल सकते हैं। उसने दिखाया कि स्वर्गीय पिता उनके आपसी संबंधों को कैसे देखता है, और उन्हें अपने अनुग्रह के प्रकाश में चलने का मार्ग दिखाया।
हमारा स्वर्गीय पिता न केवल हमें प्रति दिन की रोटी देता है, बल्कि दैनिक अनुशासन भी प्रदान करता है। इस वाक्य में पापों की क्षमा, यह गिरी हुई दुनिया में प्रतिदिन एकत्र हुए कुकर्मों, दुखों और गलतियों के मध्य से हम विश्वास में दृढ़ तरीके से जीने के विषय में बता रहे हैं। हमारा पिता हमें जीवन के इस क्षेत्र में भी सीखाना चाहता है। यदि हम दूसरों के प्रति कठोर हो जाते और क्षमा नहीं करते हैं (क्योंकि वे हमें अक्सर चोट पहुँचाते हैं), तो हमारा पिता हमें अपनी ताड़ना के अधीन में रखने को ही अच्छा समझेगा, जब तक हम क्षमा करना न सीखें। वह अपनी दया से हमारे गर्व का सामना करता और हमारे अपने स्वयं के दोषारोपण याद दिलाता है।
क्षमा में चलने का अर्थ है कि हम दूसरों के विरुद्ध किए अपने पापों को स्वीकार करने के लिए तत्पर हैं और जितना जल्दी हो सके हम उनकी क्षमा चाहते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह भी है कि हम उन लोगों को भी क्षमा करने के लिए तैयार हैं जो हमारे विरुद्ध पाप करते हैं। ऐसी क्षमा तभी संभव होती है जब हम समझते हैं कि स्वर्गीय पिता ने पहले ही हमें यीशु मसीह में क्षमा कर दिया है (इफिसियों 4:32)। हमें दूसरों के द्वारा पहुँचाया गया अपमान और चोटें उसकी तुलना में छोटी हैं, जो हमारे मसीह के विरुद्ध किए पापों के परिणाम से कष्ट जो मसीह ने हमारे बदले में उठाया है।
क्षमा की जीवन शैली जीने के लिए हम छोटी गलतियों पर ध्यान न देकर ऐसे संबंध बनाकर रख सकते हैं जिससे गंभीर पारस्परिक पापों का विरोध बनाए रख सकते हैं। ऐसी जीवन शैली हमें अन्याय से भरी दुनिया को जैसे हमारा स्वर्गीय पिता इसे देखता है वैसे ही हमें भी देखने में मदद कर सकती है –हमें इस दुनिया में उद्धारकर्ता की बड़ी जरूरत है। तब हम अपने जीवन में सुसमाचार की सच्चाई को प्रतिरूपित करके दुनिया को मुक्ति दिलाने में उसकी बड़ी योजना में भाग ले सकते हैं।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
चाहे हम भावनात्मक या शारीरिक घाव से कष्ट झेल रहे हों, मसीही जीवन का आधारशिला तो क्षमा ही है। यीशु मसीह ने हर प्रकार के अनुचित और अन्यायपूर्ण व्यवहार को सहा, यहाँ तक कि अन्याययुक्त मौत भी! फिर भी अपने अंतिम समय में अपने समीप क्रूस पर चढ़ाए गए चोर जो उसे ठट्ठा कर रहा था, और जल्लादों को माफ़ किया।
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