मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 26 का 100

इन्तजार करने वाला परमेश्वर

यह पद मेरे पसन्दिता पदों में एक बन गया है, और यह अब तक मेरे लिये एक उत्साह का श्रोत बनता है जब मेरे पास कठिन समय आते थे। बाइबल के एक अनुवाद में इस पद को इस प्रकार से कहा गया है, ”फिर भी परमेश्वर अब तक तुम्हारे लिये इन्तजार कर रहा हैं, कि तुम उसके पास आओ ताकि वह तुम्हें अपना प्रेम दिखाये। वह आशीष देने के लिये तुम्हें जीत लेगा जैसा उसने कहा। क्योंकि परमेश्वर अपने प्रतिज्ञाओं में विश्वासयोग्य है। धन्य हैं वे सभी जो परमेश्वर के सहायता के लिये इन्तजार करते हैं“। प्रतिज्ञा के लागू करने के बारे में विचार करें। परमेश्वर हमारे लिये इन्तजार करता है, जब मैं उस प्रतिज्ञा पर विचार करती हूँ। वह मेरे मन को विचलित करती है। जगत का सृष्टिकर्ता और सारे जीवन का दाता हमारे लिये इन्तजार करने को चुनता है। इन्तजार करता है कि हम अपने होश में आ जाए, इन्तजार करता है कि हम उसके प्रेम के प्रति उत्तर दें, इन्तजार करता है कि हम उसकी तरफ उसकी सहायता के लिये मुड़े।

यह एक विचलित करनेवाला विचार है। परमेश्वर हमें प्रेम दिखाना चाहता है।

सम्भवतः और कहीं से अधिक शैतान यहाँ पर एक मानसिक दृढ़ गढ़ बनाने का प्रयास करता है। जब हम परमेश्वर के प्रेम को अपने लिए प्राप्त करते हैं, हम में से बहुत लोग उसे ग्रहण नहीं कर पाते। हम केवल अपने पराजय के बारे में सोच सकते हैं और अपनी घटी और दर्जनों और अन्य कारणों के बारे में कि परमेश्वर क्यों उसको प्रेम नहीं करना चाहिये?

यह मुझे एक दयालु मनुष्य का स्मरण दिलाती है, जिन्हें मैं बहुत वषोर्ं से जानती हूँ। एक दिन उन्होंने एक मौके पर मेरी सहायता कि, उन्हें करने की आवश्यकता नहीं थी। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और इस बात ने मुझे गहराई से छुआ। ‘‘आप सम्भवतः मेरी जानकारी में सब से दयालु मनुष्य हैं,'' मैंने कहा। उन्होंने मेरी तरफ आश्चर्य से देखकर सिर हिलाया। ‘‘मैं और दयालु? मैं तो बहुत नीच और क्रूर मनुष्य हूँ,'' उसने कहा। बहुत समय तक वह यह वर्णन करते रहे, कि वह सम्भवतः दयालु व्यक्ति नहीं हैं। ‘‘मैं हमेशा अपने हिसाब से जीता हूँ, और अपने सारी त्रुटियों को देखता हूँ।''

‘‘शायद यही परेशानी है'', मैंने उनसे कहा। ‘‘आप अपने त्रुटियों को बहुत स्पष्ट देखते हैं, आप अपने कमियों को नहीं देखते हैं। आप अनुभव करें। आप अपने दया और अन्य विशेषता को नहीं देखते हैं। आप उन सारी चीजों को कम करके आंकते हैं।''

वह कभी भी यह स्वीकार नहीं कर पाते कि वह दयालु हैं। मैंने सभ्य शब्द भी इस्तेमाल किया, जिस से उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ।

अक्सर ऐसा बहुत से परमेश्वर के लोगों के साथ होता है। हम अपने पराजयों के कारण इतना अधिक चिन्तित रहते हैं, और अपने सारे बुरी बातों से भी जो हम अपने विषय में देखते हैं। यह कथिन होता है कि हम विश्वास करें परमेश्वर हमें आशीष देना चाहता है। यदि हम पढ़ते है, यदि परमेश्वर हमें दण्ड देना चाहता है, तो हमें यह कहने में परेशानी नहीं होती, हाँ, हम इसी के हकदार हैं।

लेकिन हम तब क्या उत्तर देंगे जब कोई ऐसा कहे, परमेश्वर आपको आशीष देना चाहता है। हम शायद कहेंगे, मैं इसका हकदार नहीं हूँ।

हम में से कितने लोग विश्वास करते हैं कि हम परमेश्वर के आशीषों के हकदार हैं? हम भली बातें चाहते हैं। हम चाहते हैं कि परमेश्वर हम से प्रेम करे, उत्साहित करे, आशीष दे, हमें विवेक दे। परन्तु यह कहना कि मैं आशीषों का अधिकारी हूँ, हमे उनके आशीषों को ग्रहण करने की इच्छुक से बढ़कर होगा।

हक की अवधारण पर हम क्यों संघर्ष करते हैं? हमारा स्वभाव यह सोचता है कि आशीष पाने के लिए हमें कुछ करना होता है, कि हम इतने अच्छे हों या विश्वासयोग्य हों।

हम परमेश्वर के आशीषों के भागी एक ही कारण से हो सकते हैं, क्योंकि हम उसकी सन्तान हैं। यह बहुत सरल बात है। हम में से जो माता पिता हैं वे इस अवधारणा को अपने बच्चों के सम्बन्ध में समझते हैं। हमने उन्हें इस संसार में लाया और वे हमारे प्रेम के हकदार हैं। हम उन्हें अपना प्रेम मुफ्त में देते हैं, इस से पहले कि वे कुछ भी भला या बुरा करें वे हमारी सुरक्षा और उन सभी अच्छी बातें जो हम उन्हें देने के लिये चुनते हैं, उसके हकदार हैं। वे इन बातों की इसलिये हकदार नहीं हैं, कि उन्हें पाने के लिये कुछ किया। परन्तु इसलिए कि वे हमारी सन्तान हैं।

शैतान इस एक बात में हमें फंसाना चाहता है, जितना जल्दी हम यह सोचते हैं कि आशीष पाना हमारा अधिकार है। वह हमारी कमजोरी और पराजय की ओर संकेत करता है। परमेश्वर हमारे संबन्ध की ओर इशारा करता है। यही अन्तर है।

‘‘प्रेमी और अनुग्रहकारी परमेश्वर मुझे आशीष देने के लिये आप इच्छुक हैं, इसलिये आपको धन्यवाद। यद्यपि शैतान मुझे यह महसूस कराता है कि मैं इसका हकदार नहीं हूँ, कृपया मुझे स्मरण दिलाए कि मैं आपके पुत्र हूँ और आप मेरे पिता हैं। आपके साथ मेरा संबन्ध मुझे इसका हकदार बनाता है, और इसलिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। यीशु मसीह की नाम से। आमीन।''


पवित्र शास्त्र

दिन 25दिन 27

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/