यीशु मसीह के दृष्टांतनमूना

The Parables of Jesus

दिन 32 का 36

फ़रीसी और चुँगी कर लेने वाले
यीशु एक बार फिर हमें चुनौती देते हुए पूछ रहे हैं कि हमारी धार्मिकता में हमारा आत्म-विशवास कहाँ से आता है -- यीशु से या हमारे आत्म-संयम से?

हमारी क्रियाएँ या हमारा चाल-चलन बहुत महत्वपूर्ण हैं, इस बात का ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है, और ईश्वरीय जीवन, केवल ईश्वरीय सोच-विचार ही नहीं, किसी भी चेले के लिए लगातार चलते रहने वाली एक प्रक्रिया है, जिसे पवित्रीकरण कहतें हैं। लेकिन हमारे ये काम हमे बचा नहीं सकते; यह सब काम तो हमें उद्धार मिलने के परिणामस्वरूप हमें करने ही चाहिए। हमें बचाने के लिए, हमारा आत्म-विश्वास कभी भी हमारे कामों में नहीं गिना जाता; वो तो सिर्फ़ और सिर्फ़ यीशु के द्वारा ही संभव है। हमारे नए काम या बदला हुआ जीवन उस प्रेम के जिसके हम योग्य नहीं थे और यीशु की क्षमा के प्रति हमारी प्रतिक्रिया के रूप में आता है, उस प्रेम को कमाने या रखने के द्वारा नहीं।

आज, जब आप यीशु के पास आये, तो क्या आप अपने आत्म-विश्वास के अहंकार से भरकर आये कि आपने सारे नियमों का पालन किया है या फिर नम्र होकर कि आप यीशु से दूर होकर धर्मी नहीं बन सकते? क्या अच्छे और भले काम करके आपकी आत्मा फूल गई है, या फिर प्रेम करने में असफ़ल और यीशु के साथ मेल-जोल न कर पाने की भावना से जीतकर, आपकी आत्मा यीशु के प्रेम से नम्र हो गई है?

पवित्र शास्त्र

दिन 31दिन 33

इस योजना के बारें में

The Parables of Jesus

यह पाठ योजना आपको यीशु द्वारा सुनाये दृष्टांतों में से लेकर जायेगी, जिससे आप यह जान सकोगे कि उसके कुछ महान उपदेश आपके लिए कितना महत्त्व रखतें हैं! बहुत से दिनों की यह पठन योजना पाठकों को चिंतन-मनन करने का समय देती है और उन्हें वर्तमान से जोड़े रहती है और उन्हें यीशु के प्रेम तथा सामर्थ के द्वारा उत्साहित करती है!

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We would like to thank Trinity New Life Church for this plan. For more information, please visit: http://www.trinitynewlife.com/