जानो, बढ़ो, दिखाओ: यूहन्ना 15 पर मनन -Jaano, Badho, Dikhao: Yoohanna 15 Par Mananनमूना
दिन 2 - सच्ची दाखलता
आयत 1 “ सच्ची दाखलता में हूं।”
यूहन्ना 15 का यह शुरुआती वाक्य निशाने पर लगता है। यीशु शुरुआत करता है “मैं हूं” से। यीशु ने कुछ उत्तम “मैं हूं” घोषणाएं की अपनी साढ़े तीन साल की सेवकाई के दौरान। यह अंतिम वाला था। कुछ और इस तरह थे: मैं द्वार हूं, मैं मार्ग, सत्य, जीवन हूं, मैं पुनरुत्थान और जीवन हूं, अच्छा चरवाहा में हूं, मैं जगत की ज्योति हूं, मैं जीवन की रोटी हूं, वगैरह।
उसने इस “मैं हूं” को अंत के लिए क्यों रखा? मेरा मानना है उन सब में यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यीशु को एक सच्ची दाखलता के रूप में जानने पर ही हमारा विश्वास, फलवंत होना और एक दूसरे से संगति टिके हुए हैं । इस “मैं हूं” पर मनन करने के लिए मेरी अगुवाई हुई। क्या मैं सिर्फ यीशु को जानने और उसके साथ मधुर संगति रखने मात्र से संतुष्ट हो जाऊंगी। क्या मैं सिर्फ उस में बने रहने और उसकी उपस्थिति में लिपटे रहने और मगन रहने में ही खुश रह सकती हूं?
जब मैं इस तरह यीशु को जानता हूं, तो मुझे यह भी एहसास होता है कि मैं कौन हूं। मैं उसका एक भाग हूं। मैं जोड़ा गया हूं उसके अस्तित्व में, उसके परिवार में। मुझे पहचान मिलती है दाखलता का भाग होने से। मैं जानता हूं मैं कौन हूं क्योंकि मैं जानता हूं मैं किसका हूं। मेरी पहचान गड़बड़ाई हुई या कमजोर नहीं होगी बल्कि मजबूत, सुरक्षित और फलवंत होगी।
इसका मतलब है कई और दाखलताएं हैं जिनसे मैं जुड़ सकती हूं। लेकिन, एकमात्र सच्ची दाखलता यीशु ही है। क्या मैं सच्ची दाखलता में जुड़ी हुई हूं? क्या मैं यीशु की हूं? क्या जीवन उसी से बहता है या किसी और साधन से? क्या मैंने उसे अपने जीवन का मध्य, अपना प्रभु, अपना उद्धारकर्ता बनाया है? यीशु हमें बुलाता है उसके पास आने और उस में बने रहने के लिए।
सच कहें तो इस आयत के कई अनुवाद हैं। मैं सिर्फ उनका जिक्र करूंगी। कुछ कहते हैं यह उस नई व्यवस्था की बात करता है जो यीशु ला रहा है। इस्राएल को भी दाखलता बुलाया गया है यशायाह 5:1-7 में जो कि अब एक निष्फल डाली थी और काटी जा रही थी। हालांकि यह भी सच हो सकता है पर यह आज का विषय नहीं है।
अब वह कह रहा है सच्ची दाखलता मैं हूं
मसीही होने के नाते, हमें अपने आप को याद दिलाना होगा कि मसीह के साथ हमारी एकता का हमें आनंद लेना चाहिए। हमेशा से ऐसा नहीं था। हम सच्ची दाखलता से जुड़े हुए नहीं थे। एक समय था जब हम परमेश्वर के दुश्मन थे, उसके रास्तों के बैरी। हम उसके राज्य से बाहर थे। फिर एक चमत्कार हुआ। हमने सुसमाचार के जीवनदाई शब्द सुने और उसकी महान दया और कृपा ने हमें पश्चाताप की ओर खींचा। हमने यीशु में विश्वास का ऐलान किया और हमारा नया जन्म हुआ। उस समय से , हमें मसीह में नई सृष्टि बना दिया गया, हमें अंधकार के राज्य से निकालकर ज्योति के राज्य में डाल दिया गया। हमें एक नई पहचान और एक नया समाज दिया गया।
ध्यान दें वह कहता है एक राज्य से दूसरे राज्य में डाला गया नाकि एक कलीसिया से दूसरी कलीसिया में। कलीसिया परमेश्वर के राज्य का भाग है। कलीसिया हमारे विश्वास की सामूहिक अभिव्यक्ति है और परमेश्वर की भलाई का सामूहिक जश्न है। यह वह जगह है जहां हम एक दूसरे को उत्साहित करते हैं और उत्साह पाते हैं।
जिस दिन हमारा नया जन्म हुआ उसी दिन हम पूरे समय के लिए मसीह के राजदूत बन गए। यहां कोई धार्मिक और सांसारिक का विभाजन नहीं है।
इसलिए, जब हमारा नया जन्म होते ही, हम मसीह में होते हैं, उसके राज्य में होते हैं हालांकि अभी भी हम इस संसार में है। हमें उस सच्ची दाखलता में जोड़ा गया है जो कि यीशु है।
वचन उल्लेख
यूहन्ना 15:1
रोमियो 11:17-21
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
कुछ समय से परमेश्वर मुझे दोबारा यूहन्ना 15 के पास ले आ रहा है। इन हालातों में यह मेरे पावों के लिए दीपक और रास्ते के लिए ज्योति बन गया है। मैं आपको आमंत्रित करती हूं इन वचनों के कुछ मुख्य विषयों पर मनन करने; जानने, बढ़ने, और प्रेम करने के लिए। English Title: Know, Grow, Show - Reflections on John 15 by Navaz DCruz
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए वर्ड ऑफ ग्रेस चर्च को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://somequietthoughts.blogspot.com/