परमेश्वर की ओर अपने रास्ते को वापिस ढूँढनानमूना
मैं ये अपने बलबूते नहीं कर सकता
हम परमेश्वर को खोजने की यात्रा में चाहे कहीं भी क्यूँ न हों , हमारे जीवन में बहुत सी चीज़ें हैं जिसको हम पकडे रहते हैं l कुछ लोगों के लिए ये एक गोपनीय काम या आदत हो सकती है जिसके बारे में दूसरों को पता नहीं. दूसरों के लिए, ये स्पष्ट रूप से वे चीज़ें होंगी जिनका की हम अभीतक जिसका पीछा कर रहे हैं
आपके लिए ये क्या है ? आपको क्या त्याग देने की ज़रुरत है ? परमेश्वर तबतक आपके जीवन में कुछ नया नहीं करता जबतक आप पुरानी और टूटी चीज़ों को त्याग नहीं देते.
इसीलिए पश्चाताप की जागृति से बढ़कर है मदद करने की जागृति . ये तीसरी जागृति हमें परमेश्वर के और भी ज्यादा करीब ले आती है क्यूंकि हमें ये एहसास होता है की हम इसे अपने बलबूते नहीं कर सकते . फिर क्या होता है ?
हम कॉल करते हैं , हम उसपे बातचीत करते हैं . और हम एक सहयोगी दल में शामिल हो जाते हैं . हम खुदको चर्च में सबसे पीछे सरकते हुए पाते हैं . हम अपने घुटनों के बल आकर रोते हैं ,“परमेश्वर क्या आप वास्तव में हो. . .”
विनाशकारी चुनावों से अलग हटकर सहायता खोजना पश्चाताप का एक भाग है . पश्चाताप करना घर लौटने के समान है , वहीँ वापस आना जहां से हम आये और हम जहाँ से सम्बन्ध रखते हैं . घर वापसी माफ़ी पाने और इस जीवन के बाद के जीवन को पाने की निश्चितता के बारे मैं है लेकिन ये जीवन के नए अर्थ खोजने और नयी दिशा पाने के बारे में भी है जो आप कहीं और नहीं पा सकते . ये परमेश्वर के साथ एक रिश्ता रखने के बारे में है . ये अपने जीवन को फिर से नयी दिशा देकर वापस वहीँ लौटने के बारे में है जहाँ से आप आये हैं और जहाँ से आप सम्बन्ध रखते हैं. जब आप पश्चाताप करते हैं , तब परमेश्वर आपको बदलता है . आप बदल जाते हैं . बाइबिल बताती है की परमेश्वर की आत्मा आपके अन्दर आती है , परिणामस्वरूप एक उत्कृष्ट और सतत रूपांतरण की प्रक्रिया शुरू होती है
ध्यान रखिये की पश्चाताप का अर्थ बुरा महसूस करना नहीं है . बल्कि बाइबिल बताती है की सच्चा पश्चाताप परमेश्वर की ओर से मिलने वाले
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
क्या आप अपने जीवन से कुछ और अधिक अपेक्षा कर रहें हैं? परमेश्वर के साथ आपका संबंध अभी जहाँ भी हो—और अधिक चाहने का अर्थ है वास्तव में परमेश्वर की ओर मुड़ने/जाने की लालसा/तड़प होना। जब हम परमेश्वर के पास वापिस जाने का रास्ता ढूँढ लेते हैं —तब हम सब मील का पत्थर —या जागृति का अनुभव करतें हैं। यह सब जाग़ृतियों के बीच का सफ़र, औऱ वो स्थान जहाँ आप अभी हों और जहां आप पहुँचना चाहते हो, की दूरी को कम करता है। हम परमेश्वर को ढूँढ़ना चाहते हैं, लेकिन उससे अधिक परमेश्वर चाहतें है कि हम उन्हें ढूंढें।
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