पहाड़ी उपदेश नमूना
यीशु का अनुसरण करना सिर्फ यही नहीं है जो हम बोलते हैं । मसीहत में, मसीह को स्वीकारना और जो कुछ भी आप मसीह के लिए बोलते हैं महत्वपूर्ण है । लेकिन सिर्फ बोलने मात्र से स्वीकार करना पर्याप्त नहीं है : “हर कोई जो प्रभु प्रभु कहता है , उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करेगा” ।
यीशु का अनुसरण करने का अर्थ सिर्फ यह नहीं है कि हम क्या कर रहे हैं और यह भी नहीं है कि हम मसीह के लिए मसीह के नाम से क्या कर रहे हैं , “बहुत से कहेंगे कि ‘प्रभु , प्रभु क्या हमने तेरे नाम से भविष्यवाणी नहीं की, दुष्ट आत्माओं को नहीं निकाला और क्या तेरे नाम से पराक्रमी काम नहीं किये ?” हमारे मसीही जीवन में , सेवकाई के माध्यम से मसीह को और उसके उद्धेश्य की सेवा करना महत्वपूर्ण है लेकिन पर्याप्त नहीं ।
यीशु का अनुसरण करने का अर्थ यह नहीं है कि हम क्या जानते हैं या हमने क्या सीखा है । यीशु कहते हैं कि सिर्फ उसकी आवाज़ को सुनना ही पर्याप्त नहीं है । यह बात फिर से बहुत ही महत्वपूर्ण है कि यीशु की शिक्षाओं को और बाइबिल को भी सही तरीके से जाना जाए । लेकिन फिर से यह पर्याप्त नहीं है ।
यीशु का अनुसरण ज्ञान के बारे में : “जो कोई मेरे वचनों को सुनता और मानता है वह बुद्धिमान व्यक्ति के समान होगा” । बुद्धि , समझ की सही अनुप्रयोग है । मसीह जीवन की सबसे बड़ी चुनौती मसीही जीवन को जीना है ।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
इस क्रम में पहाड़ी उपदेशों को देखा जाएगा (मत्ती 5-7)। इससे पाठक को पहाड़ी उपदेश को बेहतर तरीके से समझने में सहायता मिलेगी और उससे जुड़ी बातों को रोज़मर्रा के जीवन में लागू करने की समझ भी प्राप्त होगी ।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए RZIM भारत को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://rzimindia.in/