पहाड़ी उपदेश नमूना
अब यीशु जब अपने सन्देश की समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं , तो वह दो फाटक वाले दो रास्तों के बारे में , दो फल वाले दो पेड़ के बारे में और दो नींव वाले दो घरों की बात करते हैं ।
इस वृत्तान्त में जो अद्भुत बात है वह यह है कि : जो मार्ग और दरवाज़ा अनंत जीवन कि ओर जाता है और खुलता है , वह खुद यीशु ही है –“मार्ग मैं हूँ” (युहन्ना 14:6) । यीशु इस संसार में सिर्फ़ हमको मार्ग दिखाने नहीं आया । वह तो खुद मार्ग है जो अनंत जीवन की ओर ले जाता है । उसने यह भी कहा, “द्वार मैं हूँ” (युहन्ना 10:9) । वह इस संसार में सिर्फ़ हमको द्वार दिखाने नहीं आया । वह तो खुद द्वार है जो अनंत जीवन की ओर खुलता है ।
इसी प्रकार , जो पेड़ अच्छा फल लाता है वह स्वम् यीशु है - “सच्ची दाखलता मैं हूँ” (युहन्ना 15:1) । एक अच्छा पेड़ होने के लिए जो अच्छा फल लाता है आवश्यक है वह यीशु में बना रहे और उससे लिपटा रहे । यीशु के बिना हमारे मानवीय प्रयत्नों के द्वारा खुद के संसाधन-प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, दया,भलाई, विश्वास, नम्रता, संयम (गलातियों 5:22-23 ) को निर्मित करना अपराध है । जब मसीह की आत्मा हममे होती है और हमें निरंतर नियंत्रित करती है कि मसीह हममे बना रहे तब आत्मा के फल हमारे जीवनों में जन्म लेते हैं ।
हमारे जीवन भी हमारे मकानों की तरह हैं जो हम बनाते हैं । बाहर से सुंदर दिखाई देते हैं । लेकिन बड़े अंतर की बात यह है कि हमारे जीवन की नींव किस पर बनी है । हमारे जीवन की मजबूत और स्थाई नींव मसीह ही है । “यह (यीशु) वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया” (प्रेरितों के काम 4:11)
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
इस क्रम में पहाड़ी उपदेशों को देखा जाएगा (मत्ती 5-7)। इससे पाठक को पहाड़ी उपदेश को बेहतर तरीके से समझने में सहायता मिलेगी और उससे जुड़ी बातों को रोज़मर्रा के जीवन में लागू करने की समझ भी प्राप्त होगी ।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए RZIM भारत को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://rzimindia.in/