पहाड़ी उपदेश नमूना
मत्ती 5 के एक तिहाई के अपने उपदेश में यीशु “सिद्ध बनो” से समाप्त करते हैं , और मत्ती 6 के दो तिहाई में “दयालु बनो” से आरंभ करते हैं । उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनको मालूम था कि “सच्ची धार्मिकता” की इच्छा जिसके विषय वे मत्ती 5 में कह रहे हैं आसानी से “झूठी धार्मिकता” से बदली जा सकती है जिसके विषय वे मत्ती 6 में कहते हैं । यीशु , परमेश्वर को खुश करने और मनुष्य को खुश करने के बीच एक पतली लकीर को जानते हैं ।
इस स्पष्ट और वर्तमान खतरे का सामना जिसे मसीह का हर अनुयायी कर रहा है , एक नाम दिया गया है – कपटीपन । और कपटीपन सार है जिसके द्वारा हम व्यक्ति की प्रशंसा कर उसको सर्वोत्तम प्राथमिकता देते हैं ।
कपटीपन के बारे में यीशु की चेतावनी है – जो तुम चाहते हो वह तुम्हे मिलता है । चाहे वो प्रार्थना , उपवास , या देने के द्वारा हो , यदि तुम्हारा इरादा लोगों का ध्यान और प्रशंसा पाना है तो वह तुमको प्राप्त होगा और उससे अधिक कुछ भी नहीं । परमेश्वर का ध्यान और प्रतिफल तो बिलकुल भी नहीं । और इसके लिए आपको अचम्भित नहीं होना है क्योंकि आप परमेश्वर के ध्यान और प्रतिफल के खोजी नहीं थे । जो तुम चाहते हो वह तुम्हे मिलता है ।
मसीहों के लिए, जीवन को जीना ‘कोरम दियो’ (लैटिन शब्द ) होना है , परमेश्वर के सामने, परमेश्वर के अधिकार में, और परमेश्वर के सम्मान और महिमा के लिए । यह केवल इस प्रकार का जीवन है जो परमेश्वर की वास्तविकता से बंधे हैं और मनुष्य की प्रशंसा से मुक्त हैं ।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
इस क्रम में पहाड़ी उपदेशों को देखा जाएगा (मत्ती 5-7)। इससे पाठक को पहाड़ी उपदेश को बेहतर तरीके से समझने में सहायता मिलेगी और उससे जुड़ी बातों को रोज़मर्रा के जीवन में लागू करने की समझ भी प्राप्त होगी ।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए RZIM भारत को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://rzimindia.in/