मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 7 का 100

दोषारोपण का खेल

कई वर्ष पहले, एक हास्य कलाकार की मुख्य पंक्ति थी, ‘‘शैतान ने मुझसे ऐसा करवाया।'' श्रोतागण ठहाके लगाते थे। लोग ऐसे क्यों व्हाके लगाते थे ? क्या इसलिये कि लोग इसे सच होते देखना चाहते थे? क्या वे बाहरी शक्ति की ओर इशारा करके अपने कायोर्ं के लिए स्वयं के उत्तरदायित्व से बचना चाहते थे ?

अपने कायोर्ं के लिए किसी ओर पर या किसी बाहरी दबाव पर दोष लगाना सदा आसान होता है। हम ने लोगों को हमेशा यह कहते सुनते हैं, ‘‘मेरे पिता ने कभी भी मुझ से एक अच्छा शब्द नहीं कहा।'' मेरे भाई ने मुझ से बुरा व्यवहार किया। ‘‘फटे, पुराने कपड़े पहनने के कारण मेरे पड़ोसियों ने मेरा तिरस्कार किया‘‘। ‘‘मेरे पास कभी भी पैसा नहीं होथा था, इसिलिए जब तनख्वाह मिलती है तो वह जल्द ही खत्म हो जाती है''।

सम्भवतः ये सभी सत्य सच है। और ये वर्णन कर सकते है कि हम क्यों दुख उठा रहे हैं। वे भयानक परिस्थितियाँ हैं और दुखद हैं कि लोग ऐसे तकलीफ से होकर गुजरें।

फिर भी हमें अपने व्यवहार के लिए अन्य लोगों या परिस्थितियों को दोष देने का अधिकार नहीं है। गुलामी में रहने के लिए उन्हें हम बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। मसीह हमें स्वतंत्र करने के लिए आया। प्रारम्भ के पद में पौलुस इस बात को स्पष्ट करता हैं कि हम सबके अपनी परीक्षाओं का पुलिंदा होता है, और हम में से प्रत्येक की परिस्थितियाँ भिन्न हो सकती है। हमारी परिस्थितियों से परे परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ इससे बचने का निश्चित मार्ग हमें प्रदान करती हैं। बचाव हमें दिया गया है और हमें इसका अपयोंग करना है।

सुबह के समाचार में संवादाता ने एक रेस्टोरेन्ट दिखाया जिस में आग लगी थी। एक महिला पीछे के निकास द्वार के पास ही खड़ी थी, लेकिन बाहर नहीं निकल रही थी। वह मात्र बीस (20) फीट दूर खड़ी होकर रो रही थी। एक सहकर्मी जल्दी से भीतर की ओर दौड़कर ही उसे पकड़ा। वह उस से लड़ने लगी, पर अतः उसने उसे बाहर निकाल लिया।

क्या ऐसा ही कुछ परमेश्वर के लोगों के साथ भी होता है ? हम बचाव का मार्ग जानते हैं लेकिन लोग लकवा मारे हुए के समान हो जाते हैं। या हम हटने की अपनी अयोग्यता के लिए किसी पर या किसी वस्तु पर दोष लगाते हैं। या हम सोचते हैं, कि यह फिर आ गया। मैं जानता हूँ कि मुझे सीखना चाहिए कि, ऐसी परिस्थितियों से कैसे निपटा जाए। लेकिन हमेशा की तरह मैं हार मान लूँगी। मैं जानता हूँ कि ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए मैं अभी कमजोर हूँ।

हमारी कमजोरी हमारे सबसे बड़े बहानों में से एक है। हम कमजोर हो सकते हैं पर परमेश्वर सामर्थी है, और वह हमारा सामर्थ बनना चाहता है। यदि हम उस पर भरोसा रखेंगे और विश्वास के अनिवार्य कदम उठाएँगे, तो वह गुलामी से छूटने में हमारी सहायता करेगा।

हमें ये समझना है कि हमारी परिस्थितियाँ चाहें कैसी भी हों, शैतान उन्हें हमारे जीवनों में अपने गढ बनाने में इस्तेमाल करता है। वह उन सभी चीजों का उपयोग करता है, चाहे वह हमारी कमजोरी की भावनाएँ हो, या बचपन से हमारी समस्याएँ हों, या गलत कार्य हो जो हम ने किशेरावस्था में किये हों। यदि शैतान हमारे मनों में अन्धेरा कर सकता है — हमें ऐसे सोचने पर मजबूर करता है कि हमारी विजय सम्भव नहीं है, हम खो गये हैं। हमें स्वयं को याद दिलाते रहने की आवश्यकता है कि हम एक विजयी परमेश्वर की सेवा करते हैं, जिसने हमें शैतान के गढ़ों को ढा देने के लिये आत्मिक हथियार दिये है।

एक और बात, जब हम परीक्षा में पड़ पड़कर हार जाते हैं, तो क्या हम यह नहीं कह रहे होते हैं कि परमेश्वर हमारी सहायता नहीं कर सकता है। हम अपनें कायोर्ं के पूर्ण उत्तरदायित्व उठाना पसंद नहीं करते पर हमें ऐसा करना चाहिए। हमें अपने लिये खेद करना, दूसरों पर आरोप मढ़ना, और परिस्थितियों पर ध्यान न देना छोड़ देना चाहिये। हमें परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करना चाहिए जो घोषणा करती है कि वह विश्वासयोग्य है और वह हमेशा हमें छुड़ायेगा। हमें भय में जीने की आवश्यकता नहीं है और हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हमारी समस्या हमारे वश से बाहर की है। हमारा खैया यह हो कि हम ‘‘कर सकते‘‘ हैं। एक ऐसा रूख जो कहता है, मुझे जो करने की आवश्यकता है, वह जब करने की आवश्यकता है तब मैं कर सकता हूँ‘‘। कभी—कभी हम पर परीक्षा आती है कि हम परमेश्वर पर दोष लगायें, परन्तु पहले उद्धरित वचन को हमें अवश्य याद रखना चाहिये। परन्तु परमेश्वर विश्वासयोग्य है और (उस पर भरोसा किया जा सकता है कि) वह तुम्हें तुम्हारे सहने से बाहर परीक्षा में पड़ने नहीं देगा।

यह परमेश्वर की प्रतिज्ञा है, और वह इस पंक्ति में अपने सम्मान को ताक पर रखता है। परमेश्वर कभी भी हमें त्यागता या असहाय नहीं छोड़ता है। हम उस महिला के समान हो सकतें हैं जो चिल्ला तो रही थी पर हट नहीं रही थी। या हम ऐसा भी कह सकते हैं, ‘‘देखो, बचने का रास्ता वहाँ से है! मार्ग सुलभ कराने के लिये धन्यवाद।''

हमारी समस्यायें व्यक्तिगत होती है और अधिकांशतः यह आन्तरिक होती है। वे हमारे विचारों और व्यवहार को भी शामिल करती है। फल स्वरूप — बाहरी व्यवहार — उन विचारों और स्वभाव से निकला होता है। यदि हम अपने मन को यीशु की तरफ लगाएँ रहेंगे और यदि हम उसकी आवाज पर ध्यान देंगे, तो सदा बचाव का मार्ग उपलब्ध है हमेशा।

पिता परमेश्वर, अपनी असफलता के लिये आप पर, अपनी परिस्थितियों पर और दूसरे लोगों पर दोष लगाने के लिये मुझे क्षमा कीजिये। आप हर परीक्षा में मेरे लिये मार्ग निकालते हैं। शैतान के दृढ़ किलों को ढा देने के लिये मैं आप पर भरोसा करूँगी । यीशु के नाम में। आमीन।।

पवित्र शास्त्र

दिन 6दिन 8

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/