मन की युद्धभूमिनमूना

मन की युद्धभूमि

दिन 54 का 100

आराधना करने का समय

इस कहानी पर और बारीकी से दृष्टि डालें। पतरस ने विश्वास किया और बाहर कदम रखा और तब शंका उसके मन में भर गया और वह डूबने लगा। उसकी तार्किक मन ने उसे याद दिलाया कि मनुष्य पानी पर चल नहीं सकता है। जैसे जैसे उसका मन अलौकिकता से हटता गया वह पराजित हो गया। यीशु ने उससे कहा था, ‘‘साहस रखो और डरना छोड़ो।'' (पद 27)। यह कुछ शब्द शिष्यों को यह निश्चय दिलाने के लिए था, कि यीशु मसीह की उपस्थिति और सामर्थ उन्हें संभालने के लिए वहां पर है। फिर भी एक व्यक्ति ने प्रतिक्रिया दी। बारह में से एक। पतरस बाहर निकला और अपने स्वामी की ओर पानी पर चलने लगा। तब वह डूबने लगा। वह यीशु मसीह के उपस्थिति के बजाय आन्धी पर अपना ध्यान दिया जो उससे केवल थोड़ी ही दूर था। जैसे ही उसने अपना ध्यान हटाया शंका और अविश्वास ने उस पर दबाव बनाया।

मैं अक्सर ऐसा सोचती हँू कि उसका पाँव पानी में डूबने लगा होगा और वह नीचे की ओर जाने लगा होगा। बाइबल हमें और ज्यादा सोचने नहीं देती है, लेकिन यह यीशु की प्रतिक्रिया हमें बताते है। उसने पतरस को थाम लिया और उसे आन्धी और तुफान से बचा लिया।

यह भी कहानी का अन्त नहीं है। जब यीशु और पतरस नाव पर चढ़ गए, तब और एक आश्चर्यकर्म हुआ। आन्धी और तुफान थम गया। इस कहानी को आत्मिक बताना आसान है, और यह बताना कि जब भी यीशु हमारे साथ है, जीवन के आन्धियाँ और तुफान खतम हो जाते हैं, और शान्ति हमारे हृदयों में भर जाती है। यह सच है, लेकिन यह एक वास्तविक आन्धी था, न कि कोई काल्पनिक या आत्मिक आन्धी। और आन्धी तुरन्त रूक गया।

मत्ती हमको बताता है कि आन्धी तुफान के बाद क्या हुआ। तुफान के दौरान पतरस ने विश्वास का अभ्यास किया। उसने विश्वास किया और उसे प्रमाणित किया। अन्य लोगों ने उसे देखा और ध्यान दिया। लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। 

मैं विश्वास करती हूँ कि वे अभी भी बहुत डरे हुए थे कि वे आगे भी नहीं बढ़ सके। वे यीशु की आवाज को यह कहते हुए सुना कि उन्हें अविश्वास नहीं करना है। परन्तु वे अभी भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। किसी ने भी हलचल नहीं दिखाई और कुछ नही बोला।

पद 33 कहता है, कि आन्धी के बाद अन्य चेले यीशु मसीह के सामने झूके और उसकी आराधना किए। मैं निश्चित ही इस बात की आशा करती हँू। उसके आश्चयकर्म को देखिए जिसकी वे गवाह थे। आन्धी आया, तुफान आया, और यीशु उनके पास आया, और पानी से चलते हुए वह उनके भय को दूर करने का प्रयास किया यह कहते हुए कि ‘‘मत डरो।'' लेकिन वे उसकी सुनने के लिए तैयार नहीं थे। जब पतरस ने अपने विश्वास को प्रगट किया और यीशु ने आन्धी तुफान को थाम लिया। तब वे कह सके, ‘‘निश्चय ही तू परमेश्वर का पुत्र है।'' मुझे आनन्द है कि वे अन्ततः इस शब्द को कह सके। यह दर्शाता है कि उन्हें सन्देश मिला। लेकिन इतना समय क्यों लगा। उन्हें और कितना प्रमाण चाहिये था कि वे यीशु की आराधना के लिए तैयार होते। आपके जीवन में यीशु के प्रेम और उसकी प्रतीति के लिए और कितना प्रमाण आपको चाहिये।

‘‘प्रभु यीशु, कभी कभी मैं भी इन बन्धे हुए शिष्यों में से एक के समान होता हूँ। जिसे और अधिक प्रकार के प्रमाणों की आवश्यकता होती है, कि इससे पहले कि मैं आप पर विश्वास करूँ। आप को परमेश्वर का पुत्र कहने से पहले मुझे और कितना आश्चर्यकर्म देखने की आवश्यकता है। और अधिक पतरस के समान बनने के लिए मेरी सहायता कर, जो पानी पर आपके साथ चलने के लिए तैयार हुआ। चाहे जीवन में कितने भी तुफान आए। मुझे प्रेम करने के लिए और आपके पीछे विश्वास में चलने के लिए उत्साहित करने के लिए धन्यवाद। आमीन।।''


पवित्र शास्त्र

दिन 53दिन 55

इस योजना के बारें में

मन की युद्धभूमि

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .

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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/