मन की युद्धभूमिनमूना
सुनियोजित योजनाएँ
‘‘आप एैसा कैसे कर सकें?“ रूचि चिल्लाई। ”आप ऐसा काम कर कैसे सकते थे?“
अमन ने असहाय होकर अपनी पत्नी की ओर आँखें फाड़कर देखा। उसने व्यभिचार किया था और अब अपने पापमय आचरण के लिए अपनी पत्नी से क्षमा की याचना कर रहा था।
‘‘लेकिन आप जानते थे कि यह गलत है‘‘ उसने कहा। ‘‘आप जानते थे कि यह अपने वैवाहिक जीवन का सबसे बडा विश्वासघात था।“
‘‘मैंने कभी भी विवाहेत्तर संबंध की योजना नहीं बनाई थी।“ अश्रुपूरित आँखों से अमन ने कहा।
अमन झूठ नहीं बोल रहा था। वह जानता था कि वह कुछ गलत चुनाव कर रहा है, परन्तु उसने अपने कायोर्ं से होनेवाले परिणामों के बारे में नहीं सोचा। लगभग एक घंटे के याचना के बाद, उसने जो कुछ कहा उससे रूचि ने समस्या को समझना प्रारंभ किया और वह क्रमशः उसे माफ करने लगी।
‘‘व्यभिचार करने से पूर्व सैकड़ों बातों में मैं तुम्हारे प्रति अविश्वासयोग्य था‘‘। उसने उनकी अति व्यस्तता के कारण साथ समय न गुजार पाने, अपने नाजुक स्वभाव, भावनात्मक प्रतिक्रिया की कमी, अपने कार्यस्थल की समस्याओं के विषय बात करते समय रूचि की ध्यान न देने के बारें में बात की। ‘‘मात्र छोटी — छोटी बातें, हमेशा वही छोटी बातें“ उसने कहा। ‘‘कमसे — कम प्रारंभ में वें ऐसे ही लगते।‘‘
वास्तव में इसी तरह शैतान मानवीय जीवन में काम करता है। वह योजनाबद्ध रीति से इजाद की गई क्षोभ, असंतुष्टि, तंग करनेवाले विचार, संदेह, भय, तर्क, घृणा जैसी विधियों से हमारे मनों पर गोलीबारी करता है। वह धीमे और सावधानीपूर्वक आगे बढ़ता हैय (सुनियोजित योजनाएँ समय लेती ही हैं)
अमन ने यह संदेह करना शुरू किया कि रूचि उससे प्यार करती भी हैं या नहीं। न केवल ध्यान देने में बल्कि उसके प्रणय निवेदन के प्रति भी वह प्रतिक्रिया नहीं देती थी। ये विचार उसके मन में बसी रहें। जब भी वह कुछ ऐसा करती जो उसे पसंद नहीं होता तो वह उनका हिसाब रखा। वह उसका हिसाब याद कर के रखता और अपने नापसंद कार्यो की सूची में उसे जोड़ता जाता।
उसके सहकर्मियों में से एक ने उस पर ध्यान दिया और सहानुभूति दर्शायी। एक बार उसने कहा, ‘‘रूचि, आप जैसे भले और प्रेमी पुरूष को पाने की हकदार नहीं है।‘‘ (शैतान उस महिला के द्वारा भी काम कर रहा था)। जब भी सही राह छोड़कर अमन एक छोटा सा कदम भी बढ़ाता तो वह अपने कदम को सही ठहराने का प्रयास मन में करताः यदि रूचि मेरी बातों पर ध्यान नहीं देती, तो और भी लोग हैं जो ध्यान देंगें। यद्यपि उसने लोग शब्द अपने आप से कहा, पर उसका इशारा बगल के केबिन वाली स्त्री की ओर थी।
सहकर्मी ध्यान से सुनती थी। हफ्तों पश्चात्, उसने उसका आलिंगन किया और ऐसा करते हुए, उसने अपनी पत्नी से भी इसी प्रेममय व्यवहार की अपेक्षा की। यह एक हानिरहित कदम था — या कम से कम ऐसा लग रहा था। अमन नहीं समझ पाया कि शैतान जल्दी में नहीं होता है। वह अपनी योजना पूरी करने के लिए पर्याप्त समय लेता है। वह अचानक ही लोगों में बलवती इच्छाएँ उत्पन्न नहीं कर देता है। बल्कि हमारे मन का शत्रु छोटी बातों से शुरूआत करता है दृ छोटी असंतुष्टियाँ, छोटी सी इच्छाएँ — और यहीं से निर्माण प्रारंभ करता है।
अमन की कहानी उस 42 वर्षीया महिला के समान है, जिसपे अपनी संस्था से लगभग 30 लाख डालर चुराने के संकेत थे। उसने कहा, ‘‘पहली बार मैंने केवल 12 डालर चुराये थे। ‘‘अपने क्रेडीट कार्ड के न्यूनतम भुगतान करने के लिए मुझे उतने ही धन की आवश्यकता थी। मेरी योजना थी कि मैं उसे वापस कर दूंगी।‘‘ किसी ने उसे नहीं पकड़ा और दो महिने पश्चात् उसने पुनः ‘‘उधार‘‘ लिया।
जब उन्होने उसे पकड़ा, तब तक वह कंपनी दिवालिया होने के कगार पर पहुँच चुकी थी। ‘‘मैं कभी किसी को चोट पहुँचाना या कुछ गलत करना नहीं चाहती थी,‘‘ उसने कहा। वह कभी भी बड़ी राशि निकालना नहीं चाहती थी — सदा छोटी राशि ही निकालती थी। कंपनी के वकील ने कहा कि वह 20 वषोर्ं से धन चुरा रही थी।
शैतान इसी प्रकार कार्य करता है — धीमे, यत्नपूर्वक, और छोटे रूप में। वह विरलेही हम पर सामने से आक्रमण करता है। शैतान केवल अवसर की ताक में रहता है — अपवित्र, स्वार्थी विचारों को हमारे हृदयों में प्रवेश कराने का एक अवसर। यदि हम उन्हे भगा नहीं देंगे तो वे भीतर ही रह जाते हैं। और शैतान अपने बुरी, विनाशक योजना को पूरी कर सकता है।
हमें उन बुरे विचारों को अपने भीतर घर नहीं बनाने देना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने लिखा, ‘‘हमारे लड़ाई के हथियार .....गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी है। .....हम कल्पनाओं का और हर एक ऊँची बात का जो परमेश्वर की सच्ची पहचान के विरोध में उठती है खण्डन करते हैं और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। (2 कुरि 10ः4,5)
प्रभु यीशु, आप के नाम में मैं विजय की दुहाई देता हूँ। अपने हर विचार को आज्ञाकारिता के दायरे में लाने में मेरी सहायता करें। मेरी सहायता करे कि शैतान के शब्द मेरे भीतर घर न करे और मेरे विजय को चुरा न लें। आमीन।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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हम इस पढ़ने की योजना प्रदान करने के लिए जॉइस मेयर मिनिस्ट्रीज इंडिया को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: https://tv.joycemeyer.org/hindi/