परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 3- राजवंशजों का राज)नमूना

परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 3- राजवंशजों का राज)

दिन 2 का 8

दाऊद की द्विमुखी जीत(अर्थातदोनोंपक्षोंकोप्रसन्नकरनेकेतरीके को अपनाया)

दाऊद ने बहुत समय पहले ही संचारण के आधुनिक द्विमुखी जीतके तरीके ”win-win” अर्थात दोनों पक्षों को प्रसन्न करने के तरीके अपना लिया था। राजा शाऊल और उसकी सेना द्वारा पीछा किये जाने पर,उसने हियाव और विश्वास के साथ सहज दायरे से बाहर निकलकर मेल मिलाप करने का प्रयास किया।

1शमूएल 24 अध्याय में पायी जाने वाली घटना इस सन्दर्भ में एक सुन्दर उदाहरण है। वर्षों तक अपने प्राण को बचाने के लिए भागते भागते, एक ऐसा अवसर आया जिसमें वह (दाऊद) उस राजा को मार सकता था,जो उस समय उसका पीछा कर रहा था। दाऊद ने उस समय पर न तो आक्रामक और न ही रक्षात्मक प्रतिक्रिया की,वरन उसने राजा के परिधान का एक टुकड़ा यह दिखाने के लिए काट लिया कि अगर वह चाहता तो वह राजा को घात कर सकता था। इसके बाद वह अपने आप को राजा पर ज़ाहिर करता है,वरन वह उसे “पिता” कह कर सम्बोधित करता है और “प्रभु के अभिषिक्त” के प्रति आदर को दर्शाता है।

मज़ेदार बात यह है कि, इस समय पर दाऊद स्वयं “प्रभु का अभिषिक्त” है जिसे एक निजी समारोह में अभिषिक्त किया गया था, लेकिन वह अभी अपने समय की प्रतीक्षा कर रहा था । एक और मज़े की बात है कि, शाऊल से शमूएल का बागा फट गया था (1शमूएल 15:28)जिसके परिणाम स्वरूप शमूएल ने शाऊल से कहा कि परमेश्वर ने इस्राएल के राज्य को फाड़कर तुझसे छीन लिया है।

दाऊद कीद्विमुखी जीतअर्थात दोनों पक्षों को प्रसन्न करने वाले स्वभाव की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं, वह:

  • धोखा खाने के बाद भी साहसी था- 1शमूएल 18:21-30 में,जब शाऊल ने अपनी बेटी को विवाह में देने के लिए 100 शत्रुओं के प्राण मांगकर दाऊद को मृत्यु जाल में फंसाने की कोशिश की,लेकिन दाऊद ने मांग से दोगुने शत्रुओं को मारा और चुनौति को जीत लिया। विश्वास ने ही उसे वह साहस प्रदान किया जिसके वसीले से उसने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया।
  • क्लेशों में भी अधीन था- 1शमूएल अध्याय 20 पद 41व 42जब योनातान ने इस बात की पुष्टि कर दी कि शाऊल उसे घात करना चाहता है और उसे वहां से भागना ही होगा,दाऊद ने उस समय पर अपनी किस्मत को नहीं कोसा। वह योनातान से मिलकर रोया और उसे अलविदा कह दिया। उसने इस वास्तविकता को स्वीकार किया कि शाऊल एक शिकारी के समान उसकी तलाश में है लेकिन इस बात की शपथ खाई की परमेश्वर उन दोनों के वंश के बीच में सदा रहे।
  • नफरत करने पर भी उसमें कड़वाहट नहीं थी- शिकार बनने के बावजूद,जब उसके परिवार के लोग उसके पास आए जिसमें उसके माता पिता भी शामिल थे,उसने उनकी जिम्मेदारी उठायी (1शमूएल 22:1-3, 22)। बल्कि उसने अपने पास आने वाले ऋणी व उदास लोगों को लेकर एक सेना तैयार की। जिस समय शाऊल उसे मारने का बार बार प्रयास कर रहा था, उसी दौरान ये शिकार लोग विजेता बन गये।

दाऊद ने न केवल लड़ाईयां जीतीं, वरन उसने रिश्तों को भी जीता।

परमेश्वर का हाथ उसके वचन का आदर करने वाले लोगों पर बना रहता है। क्या हमारे भीतर मसीह के लिए रिश्तों को जीतने का साहस है? क्या हमारे भीतर विपरीत परिस्थितियों के बीच में प्रेम में दृढ़ बने रहने तथा विजेता बनकर उभरने का साहस है?

“मुझे अगुवाई करने वाला प्रेम दे

ऐसा विश्वास दे जिसे कोई हिला न सके

ऐसी आशा दे जिसे कोई निराशा थका न सके

ऐसा जुनून दे जो अग्नि के समान जले

मैं किसी ढेले के पानी में डूब न जाऊँ

मुझें अपना ईंधन, परमेश्वर की आग बना।“
- ऐमी कार्मिशैल

पवित्र शास्त्र

दिन 1दिन 3

इस योजना के बारें में

परमेश्वर का सम्पर्क - पुराने नियम की यात्रा (भाग 3- राजवंशजों का राज)

वे समुद्र के बीच में से होकर गुज़रे, बादल के खम्बे और आग के खम्बे ने उनकी अगुवाई की, उन्होंने शहरपनाहों को तोड़ डाला और शक्शिाली शत्रुओं को हराया। इसके बावज़ूद भी इस्राएल एक राजा की मांग करता है,वह परमेश्वर की अवज्ञा करता है,जिसने उन्हें चेतावनी दे रखी थी। कुछ ही राजाओं ने परमेश्वर का आदर किया, और बाकि राजाओं ने इस्राएल को निर्वासन,गुलामी और विखण्डन में धकेल दिया।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए बेला पिल्लई को धन्यवाद देना चाहते हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://www.bibletransforms.com/