केवल यीशुनमूना

केवल यीशु

दिन 7 का 9

केवल यीशु- सच्चा राजा 

यीशु राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु था। उसकी राज सत्ता उस समय प्रमाणित हो गयी जब उसने लादू के बच्चे पर बैठकर यरूशलेम में प्रवेश  किया और जिससे यह बात साबित हो गयी कि वह ही प्रतिज्ञा किया हुआ अभिषिक्त जन अर्थात मसीह है। उसे किसी मनुष्य के द्वारा नहीं वरन परमेश्वर के द्वारा अधिकार दिया गया था और उसका राज्य इस संसार का नहीं था । यीशु ने इस धरती पर आकर लोगों को शिक्षा दी, उन्हें चंगा किया और उन्हें स्वयं परमेश्वर की शक्ति और अधिकार के द्वारा छुड़ाया। जब लोग यीशु से मिले तो उन्होंने उसमें मौजूद सामर्थ्य और अधिकार को देखा और उस पर विश्वास किया। जिसके कारण उनके जीवनों में बेदारी आ गयी। यीशु के अनुयायी होने के नाते, हमारे पास भी वही सामर्थ्य और विश्वास है जो यीशु में था। दुर्भाग्य की बात है कि हमें जिस तरह से उनका इस्तेमाल करना चाहिए, हम उनका इस्तेमाल उस तरह से नहीं करते हैं। यह सामर्थ्य और अधिकार का अर्थ अभिमान करना या दूसरों को नीचा दिखाना नहीं वरन मसीह में अपनी जगह (स्थिति) को समझना है । यह ये जानना है कि हम मसीह के साथ सह-वारिस हैं । यह इस बात पर विश्वास करना है कि हम भी उन कामों को कर सकते हैं जो यीशु ने किये वरन अगर हम उस में बने रहें तो उससे भी बड़े-बड़े काम कर सकते हैं । यदि हम हमारे जीवन में पूरी तरह से मसीह की प्रभुता के अधीन नहीं होते हैं तो हम कभी भी उसकी सामर्थ्य और उसके अधिकार के भागीदार नहीं हो सकते हैं। हमें पूरी तरह से विनम्र और उसके अधीन होने की जरूरत है। 

यीशु एक ऐसे राज्य का राजा है जो किसी और के पास नहीं है। यह राज्य उन लोगों के हृदय में पाया जाता है जो मसीह को प्रेम करते और अपने जीवन को उसकी सेवा के लिए अर्पित कर देते हैं । यह राज्य अदृश्य लेकिन वास्तविक है, यह प्रारम्भ में छोटा होता है लेकिन मिनट के हिसाब से बढ़ता है, वह अपने विस्तार में आलौकिक है और इसमें सब कुछ शामिल है। यह उलट पलट- सही तरह का राज्य होता है जो अपने नागरिकों को धरती पर रहते हुए सामर्थी और प्रभावशाली जीवन व्यतीत करने के योग्य बनाता है। जब हम इस राज्य के नियमों के आधार पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं तो हमारा नज़रिया बदल जाता है और जिससे बाद में हमारा जीवन भी बदल जाता है । जिसके परिणाम स्वरुप हम अपने लिये नहीं लेकिन परमेश्वर और लोगों के लिए जीवन व्यतीत करते हैं । हम अपने लिए चीज़ों को जमा नहीं करते वरन जरूरत मन्द लोगों को देने के लिए तैयार रहते हैं । हम अपने संसार के लिए नमक और ज्योति बन जाते हैं जहां पर हमारे भले काम और हम में पायी जाने वाली मसीह की समानता हमें हमारे समाज में परम आवश्यक और प्रतिष्ठित जन बना देती है । हम लोगों को उनकी पृष्ठभूमि और उनकी सम्पत्ति के आधार पर न देखकर उन्हें उनके मूल्यों के आधार पर देखने लगते हैं। हमारे राजा,यीशु द्वारा हमारे दृष्टिकोण के बदलने के कारण हम हर इन्सान और हर चीज़ में सोना देखते हैं। हम उसके लिए जीते हैं और जहां कहीं वह जाता है उसका अनुसरण करते हैं और जो कुछ वह हम से करने के लिए कहता है वही करते हैं। 

प्रार्थनाः प्रिय परमेश्वर, मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप आपकी अगुवाई के अधीन होने में मेरी सहायता करें। मैं सारी बातों को समझने और उन्हें नियन्त्रित करने की अपनी जरूरत को आपके हाथों में सौंपता हूं, प्रभु आप मेरे जीवन का नियन्त्रण अपने हाथो में ले लीजिए और अपने स्थिर हाथों के द्वारा मेरी अगुवाई करें। मैं प्रार्थना करता हूं कि मेरे जीवन में आपका राज्य आये और जैसे स्वर्ग में आपकी इच्छा पूरी होती है ठीक उसी प्रकार से इस धरती पर रहते हुए मेरे जीवन में आपकी इच्छा पूरी हो । यीशु के नाम में, आमीन। 

दिन 6दिन 8

इस योजना के बारें में

केवल यीशु

इस दुविधाजनक समय में मसीह को और गहराई से जानने और इस अनिश्चित समय में भय से बढ़कर भरोसा करने का चुनाव करें। हम विश्वास करते हैं जब आप इस योजनाबद्ध अध्ययन का अनुपालन करेगें तो आप भविष्य में एक नये आत्म विश्वास के साथ प्रवेष करेगें, फिर चाहे रोज़मर्रा की परिस्थितियां जैसी भी हों।

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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए We Are Zion को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://www.wearezion.in