योना की संस्कृति को तोड़नानमूना
सेवा करने की संस्कृति
योना में स्वार्थ नामक बीमारी के लक्षण प्रगट हो रहे थे । ‘पापी’ जाति में जाकर प्रचार करने के बजाय समुद्र की ओर भागने तक, परमेश्वर को उसकी दया दिखाने के लिए फटकारने से लेकर उसके ऊपर छाया करने वाले पेड़ को हटाने के लिए परमेश्वर पर चिल्लाने तक, वह केवल अपने बारे में सोचने वाले इन्सान का एक अनोखा उदाहरण है । ऐसा प्रतीत होता है कि, ‘उसे केवल अपनी और सिर्फ अपनी ही पड़ी थी’।
वह केवल उन बातों पर अपना ध्यान लगाता है जो उसकी इच्छा के अनुसार नहीं होता, उसे कैसे पता था कि परमेश्वर उसे उसके शत्रुओं के सामने नीचा दिखाएगा और फिर उसे तपती गर्मी में मरने देगा और फिर उस बड़ी तस्वीर को देखेगा । एक ऐसी तस्वीर जो बताती है की वह सबकुछ उसके बारे में नहीं था वरन् निनवे के लोगों और जानवरों के प्रति छुटकारा देने वाले प्रेम के बारे में था । पूरी कहानी में योना की निरर्थकता पर केवल भविष्यद्वक्ता द्वारा बोले गए एक पंक्ति के प्रचार पर आधारित पूर्ण रीति से पश्चाताप करने वाले लोगों द्वारा जोर दिया गया था । सन्देश अस्पष्ट, गुप्त, सूखा होने के कगार तक ख़स्ता था और फिर भी वह निशाने पर लगा था ।
कई बार हम सुसमाचार में केवल अपना ही उल्लेख करने लगते हैं । कलीसिया को भी केवल अपने ही कामों से परिभाषित करते हैं । लेकिन ऐसा नहीं है ! सुसमाचार यीशु और मानव जाति के प्रति प्रभु यीशु के प्रेम के बारे में है । जिसके द्वारा हमारे लिए अनन्त जीवन को सुरक्षित किया गया है । कलीसिया मानव जाति की समस्याओं के लिए परमेश्वर का जवाब है । कलीसिया भटके हुओं का स्वागत करने और उनकी अगुवाई यीशु की ओर करने के लिए है ।
कुरिन्थियों की कलीसिया अनेकों समूहों में बंट गयी थी और उनमें से हर समूह एक पसन्दीदा अगुवे से जुड़ गया और वे भूल गये थे कि सबका केन्द्र बिन्दु यीशु मसीह था । हालांकि पौलुस और अपुल्लोस अपने विश्वास और परिपक्वता के साथ एक अहम भूमिका निभा रहे थे, मगर इसके बावजूद वे प्रभु के हाथ में एक औजार के समान थे जिन्हें पूरा करने के लिए एक काम सौंपा गया था ।
केवल प्रभु और प्रभु ही थे जिन्होंने मानव जाति को उद्धार और कलीसिया को बढ़ोत्तरी प्रदान की थी। इस तथ्य को जानकर हमारा रूख दर्शक और ग्राहक से बदलकर दल के खिलाड़ी और एक कार्यकर्ता का हो जाना चाहिए।
रूपान्तरण केवल पवित्र आत्मा के द्वारा आया है, हम तो केवल वे माध्यम हैं जिसके द्वारा प्रभु काम करते हैं, क्या हमें उसे काम करने की अनुमति देनी चाहिए। रोमियों की पत्री अध्याय 15 पद 1 व 2 कहते हैं कि, ‘बल दूसरों की सेवा करने के लिए है, अपने आप को प्रसन्न करने के लिए नहीं। हर एक जन को यह पूछते हुए कि “मैं कैसे मदद कर सकता हूं?” एक दूसरे की भलाई करनी चाहिए।
स्वार्थ मसीह की देह के काम में बाधा डालता है। मसीह के शिष्य होने के नाते हमें निःस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करनी चाहिए और प्रभु को अपने भीतर और अपने द्वारा काम करने का मौका देना चाहिए।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में
योना की पुस्तक एक ऐसा महान रास्ता है जिसके द्वारा हम बाइबल में दर्पण के समान अपने जीवन का अध्ययन कर सकते और हमारे छुपी हुई धारणाओं और गलतियों का पता कर सकते हैं और इसी बीच में हम यह भी पता लगा सकते हैं कि जिस स्थान पर परमेश्वर ने हमें रखा है उस क्षेत्र में हम परमेश्वर की सेवा कैसे कर सकते हैं ।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए We Are Zion को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: http://www.wearezion.co