1 कुरिन्थियों 13:4-13

1 कुरिन्थियों 13:4-13 HINOVBSI

प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं, वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुँझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियाँ हों, तो समाप्‍त हो जाएँगी; भाषाएँ हों, तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी; परन्तु जब सर्वसिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। जब मैं बालक था, तो मैं बालकों के समान बोलता था, बालकों का सा मन था, बालकों की सी समझ थी; परन्तु जब सियाना हो गया तो बालकों की बातें छोड़ दीं। अभी हमें दर्पण में धुँधला सा दिखाई देता है, परन्तु उस समय आमने–सामने देखेंगे; इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है, परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूँगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूँ। पर अब विश्‍वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी हैं, पर इन में सबसे बड़ा प्रेम है।