भजन संहिता 1

1
पहला खण्‍ड
धार्मिक मनुष्‍य; अधार्मिक मनुष्‍य : दो अलग मार्ग
1धन्‍य है वह मनुष्‍य
जो दुर्जनों की सम्‍मति पर नहीं चलता,
जो पापियों के मार्ग पर खड़ा नहीं होता,
और जो उपहास-प्रिय झुण्‍ड में नहीं बैठता;
2पर उसका सुख प्रभु की व्‍यवस्‍था में है,
और वह दिन-रात उस का पाठ#1:2 अथवा, ‘मनन’ करता है।
3वह उस वृक्ष के समान है
जो नहर के तट पर रोपा गया,
जो अपनी ऋतु में फलता है,
और जिसके पत्ते मुरझाते नहीं।
जो कुछ धार्मिक मनुष्‍य करता है, वह सफल
होता है।#यिर 17:8
4पर अधार्मिक मनुष्‍य ऐसे नहीं होते!
वे भूसे के समान हैं, जिसे पवन उड़ाता है।#अय्‍य 21:18
5अत: न अधार्मिक मनुष्‍य अदालत में,
और न पापी मनुष्‍य धार्मिकों की मंडली में
खड़े हो सकेंगे।
6प्रभु धार्मिकों का आचरण#1:6 शब्‍दश: ‘मार्ग’ जानता है।
परन्‍तु अधार्मिक अपने आचरण के कारण
नष्‍ट हो जाएंगे।#व्‍य 30:15-20; मत 7:13-14

वर्तमान में चयनित:

भजन संहिता 1: HINCLBSI

हाइलाइट

शेयर

कॉपी

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in

YouVersion आपके अनुभव को वैयक्तिकृत करने के लिए कुकीज़ का उपयोग करता है। हमारी वेबसाइट का उपयोग करके, आप हमारी गोपनीयता नीति में वर्णित कुकीज़ के हमारे उपयोग को स्वीकार करते हैं।