भजन संहिता 2
2
प्रभु के अभिषिक्त राजा की घोषणा
1क्यों राष्ट्र षड्यन्त्र करते हैं?
क्यों विभिन्न देश व्यर्थ जाल फैलाते हैं?#प्रे 4:25-26
2प्रभु और उसके अभिषिक्त राजा के विरोध
में,
संसार के राजाओं ने संकल्प किया है,
शासकों ने एक साथ मन्त्रणा की है।
3वे कहते हैं, “आओ, हम उनकी बेड़ियां तोड़
डालें,
अपने ऊपर से उनके बन्धन की रस्सियां
उतार फेंकें।”
4स्वामी, जो स्वर्ग में विराजमान है, हंसता है;
वह उनका उपहास करता है।#यश 40:15-17,22-24
5तब वह अपने क्रोध से उनको आतंकित
करेगा,
वह रोष में उनसे यह कहेगा,
6“मैंने अपने पवित्र पर्वत सियोन के सिंहासन
पर
अपने राजा को प्रतिष्ठित किया है।”
7मैं प्रभु के निश्चय की घोषणा करूंगा :
उसने मुझसे यह कहा है : “तू मेरा पुत्र है,
आज मैंने तुझे उत्पन्न किया है।#2 शम 7:14; मत 3:17; प्रे 13:33; इब्र 1:5; 5:5; 2 पत 1:17
8मुझसे मांग, और मैं राष्ट्रों को तेरी पैतृक-
सम्पत्ति
और सम्पूर्ण पृथ्वी को तेरे अधिकार में कर
दूंगा।#दान 7:14
9तू उन्हें लौह-दंड से खण्ड-खण्ड करेगा,
कुम्हार के पात्र-सदृश उन्हें चूर-चूर
करेगा।” #भज 110:5-6; प्रक 2:27; 12:5; 19:15
10अत: राजाओ, अब बुद्धिमान हो
पृथ्वी के शासको, सावधान हो!
11भयभाव से प्रभु की सेवा करो,
कांपते हुए उसके चरण चूमो।#2:11 मूल में, “आनन्दित हो, कांपते हुए पुत्र को चूमो”
12ऐसा न हो कि प्रभु क्रुद्ध हो, और तुम मार्ग
में ही नष्ट हो जाओ,
क्योंकि उसका क्रोध तुरन्त भड़कता है।
धन्य हैं वे सब, जो प्रभु की शरण में आते हैं।#भज 34:8
वर्तमान में चयनित:
भजन संहिता 2: HINCLBSI
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