फिलिप्पियों 4
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1इसलिए प्रिय भाइयो और बहिनो, प्रभु में इस तरह दृढ़ रहिए। मेरे प्राणप्यारो! मुझे आप लोगों से मिलने की बड़ी इच्छा है। आप मेरे आनन्द और मेरे मुकुट हैं।#2 कुर 1:14; 1 थिस 2:19-20
एकता, आनन्द और शान्ति
2मैं युओदिया और सुनतुखे, दोनों बहिनों से अनुरोध करता हूँ कि तुम प्रभु में समझौता कर लो#4:2 अथवा, “एक भावना से रहो”। 3सुजुगस! मैं तुमसे, अपने सच्चे साथी#4:3 मूल नाम “सुजुगस” का वही अर्थ है : एक जूए में संयुक्त से प्रार्थना करता हूँ कि तुम इन दोनों की सहायता करो। इन दोनों बहिनों ने, क्लेमेंस और मेरे अन्य सहयोगियों सहित, जिनके नाम जीवन की पुस्तक में हैं, शुभसमाचार के प्रचार में मेरे साथ कठोर परिश्रम किया है।#भज 69:28; लू 10:20
4आप लोग प्रभु में हर समय आनन्दित रहें। मैं फिर कहता हूँ, आनन्दित रहें।#2 कुर 13:11; फिल 3:1; 1 थिस 5:16 5सब लोग आपके सौम्य स्वभाव को जान जायें। प्रभु निकट हैं।#इब्र 10:37; याक 5:8-9 6किसी बात की चिन्ता न करें। हर जरूरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें।#मत 6:25-34; कुल 4:2; 1 पत 5:7; भज 145:18; यो 14:27 7और परमेश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से परे है, आपके हृदय और विचारों को येशु मसीह में सुरक्षित रखेगी।#कुल 3:15
8भाइयो और बहिनो! अन्त में यह : जो कुछ सच है, आदरणीय है; जो कुछ न्यायसंगत है, निर्दोष है; जो कुछ प्रीतिकर है, मनोहर है, जो कुछ भी उत्तम है, प्रशंसनीय है : ऐसी बातों का मनन किया करें।#रोम 12:17; 2 कुर 13:11-13 9आप लोगों ने मुझ से जो सीखा, ग्रहण किया, सुना और मुझ में देखा, उसके अनुसार आचरण करें और शान्ति का परमेश्वर आप लोगों के साथ रहेगा।#1 थिस 5:23; रोम 16:20; 1 कुर 14:33
आर्थिक सहायता के लिए धन्यवाद
10मुझे प्रभु में बड़ा आनन्द इसलिए हुआ कि मेरे प्रति आप लोगों की शुभचिंता इतने दिनों के बाद फिर पल्लवित हुई। इस से पहले भी आप को मेरी चिन्ता अवश्य थी, किन्तु उसे प्रकट करने का सुअवसर नहीं मिल रहा था। 11मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मुझे किसी बात की कमी है, क्योंकि मैंने हर परिस्थिति में स्वावलम्बी होना सीख लिया है।#1 तिम 6:6 12मैं दरिद्रता तथा सम्पन्नता, दोनों से परिचित हूँ। चाहे परितृप्ति हो या भूख, समृद्धि हो या अभाव-मुझे जीवन के उतार-चढ़ाव का पूरा अनुभव है#4:12 शब्दश: “हर दशा और सब परिस्थितियों में मुझे इनके रहस्य की दीक्षा मिली”।#2 कुर 6:10 13जो मुझे बल प्रदान करता है, उसकी सहायता से मैं सब कुछ कर सकता हूँ।#2 कुर 12:10; 2 तिम 4:17
14फिर भी आप लोगों ने संकट में मेरा साथ दे कर अच्छा किया। 15फिलिप्पी निवासियो! आप लोग जानते हैं कि अपने शुभसमाचार-प्रचार के प्रारम्भ में जब मैं मकिदुनिया प्रदेश से चला गया, तो आप लोगों को छोड़ कर किसी भी कलीसिया ने मेरे साथ लेन-देन का सम्बन्ध नहीं रखा।#2 कुर 11:9 16जब मैं थिस्सलुनीके नगर में था, तो आप लोगों ने मेरी आवश्यकता पूरी करने के लिए एक बार नहीं, बल्कि दो बार बहुत कुछ भेजा था। 17मैं दान पाने के लिए उत्सुक नहीं हूं। मैं इसलिए उत्सुक हूँ कि हिसाब में आपकी जमा-बाकी बढ़ती जाये।#1 कुर 9:11 18अब मुझे पूर्ण राशि प्राप्त हो गई है; मैं सम्पन्न हूँ। इपफ्रोदितुस से आपकी भेजी हुई वस्तुएँ पा कर मैं समृद्ध हो गया हूँ। आप लोगों की यह भेंट एक मधुर सुगन्ध है, एक सुग्राह्य बलि है, जो परमेश्वर को प्रिय है।#फिल 2:25; नि 29:18; यहेज 20:41 19मेरा परमेश्वर येशु मसीह द्वारा#4:19 अथवा, “येशु मसीह में संचित” अपनी अतुल महिमा के कोष से आपकी सब आवश्यकताओं को पूरा करेगा। 20हमारे पिता परमेश्वर की महिमा युगानुयुग हो! आमेन।
नमस्कार और आशीर्वाद
21-22येशु मसीह की संगति में प्रत्येक सन्त को मेरा नमस्कार। जो भाई मेरे साथ हैं और सभी सन्त, विशेष कर रोमन सम्राट के कर्मचारी, आप लोगों को नमस्कार कहते हैं।#फिल 1:13
23प्रभु येशु मसीह की कृपा आप लोगों पर बनी रहे!
वर्तमान में चयनित:
फिलिप्पियों 4: HINCLBSI
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