यशायाह 3

3
यहूदा प्रदेश और यरूशलेम नगर का न्‍याय
1देखो, स्‍वर्गिक सेनाओं का प्रभु, स्‍वामी,
यरूशलेम नगर से,
यहूदा प्रदेश से जीवन का आधार और सहारा
समस्‍त भोजन-वस्‍तु का आधार,
सम्‍पूर्ण पेय-जल का आधार
छीन रहा है।
2महायोद्धा और सैनिक को
प्रशासक और नबी को,
सगुन विचारने वाले को,
और धर्मवृद्ध को,
3पचास सैनिकों के नायक को,
और उच्‍च प्रतिष्‍ठित नागरिकों को,
मंत्रियों और निपुण जादूगर को,
कुशल तंत्र-मंत्र के ज्ञाता को
प्रभु समाज से छीन रहा है।
4वह#3:4 शब्‍दश: “मैं (प्रभु)” कच्‍ची उम्र के लड़कों को
उन का शासक बनाएगा;
स्‍वेच्‍छाचारी उन पर राज्‍य करेंगे।
5लोग एक-दूसरे पर अत्‍याचार करेंगे,
प्रत्‍येक मनुष्‍य अपने साथी को,
अपने पड़ोसी को लूटेगा,
युवाजन अपने से बड़ों के प्रति,
और क्षुद्र व्यक्‍ति आदरणीय लोगों के प्रति
धृष्‍टतापूर्ण व्‍यवहार करेंगे।
6उस दिन व्यक्‍ति अपने पिता के घर में
भाई को पकड़कर यह कहेगा,
‘तुम्‍हारे पास चादर है,
तुम हमारे नेता हो।
आओ, खंडहरों के इस ढेर पर राज्‍य करो।’
7तब भाई यह उत्तर देगा,
‘मैं सुधारक कैसे बन सकता हूं?
मेरे घर में न भोजन है, और न वस्‍त्र।
तुम मुझे जनता का नेता नहीं बना सकते।’
8यरूशलेम नगर लड़खड़ाकर गिर गया;
यहूदा प्रदेश का पतन हो गया;
क्‍योंकि उन्‍होंने प्रभु की महिमामय उपस्‍थिति
की उपेक्षा की,
और अपने शब्‍दों और कामों से उसका
विरोध किया।
9उनका मुख उनके विरुद्ध साक्षी दे रहा है!
वे सदोम नगर-राज्‍य के समान
अपने पाप की घोषणा करते हैं,
वे उसको छिपाते नहीं!
धिक्‍कार है उन्‍हें!
उन्‍होंने स्‍वयं ही विपत्ति मोल ली है।
10धार्मिक व्यक्‍तियों से यह कहो,
‘चिन्‍ता मत करो,
तुम्‍हारा भला होगा,
तुम अपने परिश्रम का फल खाओगे।’
11दुर्जन को धिक्‍कार है;
क्‍योंकि उसका बुरा होगा।
जैसा उसने किया है,
वैसा ही उसके साथ किया जायेगा।
12ओ मेरे निज लोगो,
बच्‍चे तुम पर अत्‍याचार करते हैं;
स्‍त्रियाँ तुम पर राज्‍य करती हैं।
ओ मेरे निज लोगो,
तुम्‍हारे नेताओं ने तुम्‍हें पथ-भ्रष्‍ट किया;
तुम्‍हें तुम्‍हारे मार्ग से बहका दिया।
13प्रभु अपना मुकदमा लड़ने के लिए खड़ा
हुआ,
वह अपने निज लोगों का न्‍याय करने के
लिए खड़ा हुआ।
14प्रभु ने अपने निज लोगों के धर्मवृद्धों
और शासकों से बहस आरम्‍भ की :
‘तुमने ही अंगूर-उद्यान उजाड़ा है,
तुमने ही गरीब को लूटा है
और उसका माल अपने घर में रखा है।
15तुम किस उद्देश्‍य से
लोगों को रौंदते हो,
गरीबों को पीसते हो?’
स्‍वर्गिक सेनाओं के प्रभु, स्‍वामी की यह
वाणी है।
सियोन की घमण्‍डी स्‍त्रियों का न्‍याय
16प्रभु ने आगे यह कहा :
‘सियोन की स्‍त्रियाँ घमण्‍डी हैं,
वे सिर उठाये,
आंखें मटकाती और घुंघरुओं को छमछमाती,
ठुमक-ठुमक कर चलती हैं।’
17अत: स्‍वामी सियोन की पुत्रियों का सिर गंजा
करेगा;
प्रभु उनको नंगा करेगा।
18उस दिन स्‍वामी उनके इन आभूषणों को उतरवा लेगा : पैंजना, बिंदिया, चंद्राभूषण, 19बाली, कंगन, ओढ़नी, 20शिरोभूषण, बाजूबन्‍द, करधनी, इत्रदान, ताबीज, 21अंगूठी, नथ, 22सुन्‍दर वस्‍त्र, दुपट्टा, शाल, बटुआ, 23दर्पण, मलमल के वस्‍त्र, सिरपट और बुरका।
24उनकी देह में इत्र की सुगन्‍ध के स्‍थान पर
दुर्गन्‍ध,
कमर में पटुआ के बदले रस्‍सी होगी।
उनके सावधानी से गुन्‍थे केशों के स्‍थान पर
गंजापन होगा।
वे कीमती साड़ी के स्‍थान पर टाट का
कटि वस्‍त्र पहिनेंगी।
उनके सौंदर्य-चिह्‍नों के स्‍थान पर
गुलामी के दाग होंगे।
25ओ यरूशलेम नगरी,
तेरे सैनिक तलवार से मौत के घाट उतारे
जाएंगे;
तेरे वीर योद्धा युद्ध-भूमि में मारे जाएंगे।
26तेरे प्रवेश-द्वार विलाप करेंगे;
वे शोक मनाएंगे;
तू लुटी हुई, विधवा-स्‍त्री-सी
भूमि पर बैठेगी।

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